करौली में जांबाज मधुलिका सिंह ने दंगाइयों से बचाई 14 लोगों की जान

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 16-04-2022
करौली में दंगे का दृश्य
करौली में दंगे का दृश्य

 

आवाज- द वॉयस/ जयपुर

यह दो बच्चों की सिंगल मां मधुलिका सिंह की कहानी है. यह कहानी दिलेरी की भी है और इंसानियत की भी.इस महीने की शुरुआत में राजस्थान के करौली में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी. लेकिन मधुलिका ने गुस्साई भीड़ से कम से कम 15पुरुषों को बचाया, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम समुदाय के थे.

48वर्षीय मधुलिका 2अप्रैल को हुई हिंसा के दौरान अपनी दुकान की ओर भागती भीड़ के सामने अकेली खड़ी थी. पति की मौत के बाद से मधुलिका पिछले पांच साल से गारमेंट्स का बिजनेस चला रही हैं.

जब हिंदू नव वर्ष मनाने वाला जुलूस निकाला जा रहा था, तो यह जुलूस उस क्षेत्र में प्रवेश कर गया जहां मुस्लिम समुदाय की आबाद थी. अचानक, उसने लोगों को चिल्लाते और शोर मचाते सुना.

पुलिस के अनुसार, जुलूस के दौरान लाउडस्पीकर पर "संवेदनशील" नारे लगाए गए और जल्द ही, हिंसा और पथराव होने लगा.

मधुलिका कहती हैं: "लोग भाग रहे थे ... शटर गिरा दिए ... उन्होंने कहा कि दंगे भड़क गए हैं. मैंने शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का गेट बंद कर दिया था और उनसे (जो वहां शरण लेने आए थे) चिंता न करने के लिए कहा था. मैंने उन्हें बचा लिया क्योंकि मानवता यही कहती है."

शरण लेने वाले लोगों की गिनती करीब 15 थी. वह सब डरे हुए थे और यह तय नहीं कर पा रहे थे कि वहां से निकल जाएं या वहीं छुपे रहें.

मधुलिका सिंह ने कहा कि भीड़ ने अंदर घुसने की कोशिश की लेकिन उसने उन्हें रोक दिया. उस शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में मौजूद लोगों में मोहम्मद तालिब और दानिश भी शामिल थे.

तालिब ने कहा, "मधुलिका दीदी ने हमें बचाया। उसने हमें चिंता न करने के लिए कहा." उसी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में सैलून चलाने वाले मिथिलेश सोनी ने कहा कि उसने और तीन अन्य महिलाओं ने पानी की बाल्टी से आग बुझाने का प्रयास किया.

मधुलिका सिंह ने दंगाइयों के सामने शेरनी की तरह बहादुरी दिखाई और उन्होंने 15 लोगों की जान नहीं, बल्कि इंसानियत पर लोगों का भरोसे की रक्षा की है.