भारत में मुस्लिम महिला लीडरशिप तैयार होने की राह रोकती हैं दकियानूसी बातें

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 1 Years ago
अहमदाबाद के शाही इमाम के बयान से विवाद
अहमदाबाद के शाही इमाम के बयान से विवाद

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

गुजरात में अहमदाबाद की जामा मस्जिद के शाही इमाम शब्बीर अहमद सिद्दीकी के बयान से विवाद छिड़ गया है. राजनीति में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी पर इन विवादास्पद टिप्पणियों को प्रतिगामी मानसिकता या दकियानूसी ही माना जाना चाहिए क्योंकि अधिकतर उलेमा भी महिलाओं की शिक्षा और अधिकार के बारे में बात करते हैं.

लेकिन, कुछ ऐसे बयान आते हैं उससे विरोधियों को भारतीय मुसलमानों, विशेष रूप से महिलाओं के पिछड़े होने के पीछे मजहब को कारण बताने का मौका मिल जाता है.

लेकिन मुसलमान महिलाओं की राजनैतिक रूप से उपस्थिति के बारे में बात की जाए तो सचाई यही मालूम होती है कि उनकी हैसियत नगण्य जैसी ही है. मुस्लिम महिलाओं को आजादी के बाद के सियासी दौर में मौके नहीं दिए गए हैं.

बेशक, मुस्लिम महिलाएं भारत में सबसे कमजोर समूहों में से हैं. उनमें से अधिकांश में कौशल की कमी है, वे अधिकतर अशिक्षित हैं और सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतिबंधों के अधीन हैं.

बहुचर्चित सच्चर समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, “मुस्लिम महिलाओं की पिछड़ी स्थिति के पीछे मुख्य कारण सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में मुसलमानों का पिछड़ापन है. गरीबी, कम कमाई, साक्षरता की कम दर और रोजगार के अपर्याप्त अवसरों जैसे सामाजिक कारकों के कारण वे अन्य धर्मों से पिछड़ गए हैं.”

सबिहा हुसैन ने मुस्लिमों की स्थिति पर एक अध्ययन किया है.'द चेंजिंग हाफ: ए स्टडी ऑफ इंडियन मुस्लिम्स' नामक एक अध्ययन में, यह पाया गया कि अकेले धार्मिक कारकों के बजाय, अन्य संरचनात्मक और संस्थागत प्रतिमान जैसे रीति-रिवाज, परंपराएं, नैतिक व्यवस्था, पितृसत्ता, इस्लामी सिद्धांतों की गलत धारणा और पुरुष सदस्यों के समर्थन की कमी से मुस्लिम महिलाओं को विकास में बाधा आती है.

इस अध्ययन का मोटे तौर पर सार यही है कि भारतीय मुस्लिम पुरुष भारत में मुस्लिम महिलाओं की बुरी स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं.

अहमदाबाद की जामिया मस्जिद के शाही इमाम से मेल खाती प्रतिगामी मानसिकता क्या वाकई शुरू से ही ऐसी थी और क्या हमें यह मन बना लेना चाहिए कि वाकई भारत में मुस्लिम महिलाओं का न तो राजनीति में कोई स्थान था और न ही उनका कोई भविष्य है.

इसका उत्तर न में है.

सबसे पहले तो ध्यान आता है कि पैगंबर साहब की पत्नी खदीजा उनकी पहली अनुयायी थीं और पैगंबर साहब जिस क्रांति का सूत्रपात कुरैश कबीले में कर रहे थे, खदीजा उसके पक्ष में थी और इसलिए उनके इस फैसले को पहला राजनैतिक फैसला भी माना जाना चाहिए.

भारतीय संदर्भों में भी, रजिया सुल्तान और बाद में हजरत महल, नूरजहां जैसी मिसाले हैं जहां मुस्लिम महिलाओं ने अपने हाथों में शासन सूत्र पकड़े थे

और आज, शाही इमाम की प्रतिगामी टिप्पणी के खिलाफ हमारे पास बहुत सारी मिसाले हैं. मुस्लिम महिलाओं अन्य समुदायों की तुलना में भले थोड़ा कम आगे आई हों, पर वह भारत में इक्कीसवीं सदी में परिवार, समाज, समुदाय, नागरिक निकायों, संस्थानों और राज्य के कल्याण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. इसलिए राजनीति के मैदान में भी उनकी हिस्सेदारी बेहद जरूरी और महत्वपूर्ण है.

 

आजादी के पहले

अगर हम भारत के राजनैतिक परिदृश्य में मुस्लिम महिलाओं के योगदान की बात करें तो हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि आजादी के पहले अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में भी उनका काफी योगदान रहा है.

आबादी बानो बेगम, बीबी अम्तुस सलाम, बेगम अनीस किदवई, बेगम निशातुन्निसा मोहनी बाजी जमालुन्निसा, हजारा बीबी इस्माइल, कुलसुम सयानी और सैयद फकरूल हाजिया हसन उन लोगों में से हैं जिन्हें अक्सर भुला दिया जाता है, लेकिन जिनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

आबादी बानो बेगम पहली मुस्लिम महिला थीं जिन्होंने सक्रिय रूप से राजनीति में भाग लिया और भारत को ब्रिटिश राज से मुक्त करने के आंदोलन का भी हिस्सा थीं. गांधी द्वारा बी अम्मा कही जाने वाली आबादी बानो बेगम का जन्म 1852में उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था.

उनके बेटे, मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली खिलाफत आंदोलन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख व्यक्ति बन गए. उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ असहयोग आंदोलन के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

एक रूढ़िवादी मुस्लिम होने के बावजूद बी अम्मा भारत की स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम महिलाओं के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक थीं. महिलाओं का समर्थन पाने के लिए, महात्मा गांधी ने उन्हें अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के एक सत्र में बोलने के लिए प्रोत्साहित किया, उन्होंने एक भाषण दिया जिसने ब्रिटिश भारत के मुसलमानों पर एक अमिट छाप छोड़ी.

उत्तर प्रदेश (यूपी) के एक राजनेता और कार्यकर्ता अनीस किदवई ने अपना अधिकांश जीवन नए स्वतंत्र भारत की सेवा करने, शांति के लिए काम करने और भारत के भयानक विभाजन के पीड़ितों के पुनर्वास के लिए समर्पित कर दिया.

उनके पति शफी अहमद किदवई की सांप्रदायिक ताकतों ने मुसलमानों और हिंदुओं के बीच सौहार्द को बढ़ावा देने और देश के विभाजन को रोकने के प्रयासों के लिए हत्या कर दी थी. पति के चले जाने से वह बुरी तरह टूट गई थी.

बेगम निशातुन्निसा मोहनी का जन्म 1884 में अवध, उत्तर प्रदेश में हुआ था और उनकी परम स्वतंत्रता की धारणा को गांधीजी ने अपनाया था.

एक दृढ़ स्वतंत्रता योद्धा मौलाना हसरत मोहानी से शादी की और ब्रिटिश सत्ता की घोर विरोधी बेगम ने स्वतंत्रता संग्राम के तत्कालीन कट्टरवादी बाल गंगाधर तिलक का समर्थन किया.

मोहम्मद इस्माइल साहब की पत्नी, हजारा बीबी इस्माइल, आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के तेनाली की एक स्वतंत्रता योद्धा थीं.

इस जोड़ी पर महात्मा गांधी का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, जिन्होंने खादी अभियान आंदोलन के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया. गुंटूर जिले में, उनके पति मोहम्मद इस्माइल ने पहला खद्दर स्टोर खोला, जिससे उन्हें “खद्दर इस्माइल” उपनाम मिला.

चूंकि हजारा और उनके पति ने गांधी का समर्थन किया, इसलिए उन्हें मुस्लिम लीग से भयंकर शत्रुता का सामना करना पड़ा. राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने पति की बार-बार गिरफ्तारी के बावजूद, हजारा बीबी ने कभी हिम्मत नहीं हारी.

 

आजादी के बाद

आजादी के बाद के भारत में मुस्लिम समुदाय पिछड़ता चला गया, और सबसे बड़ी समस्या हुई कि इस समुदाय में मध्य वर्ग था ही नहीं. ऐसे में, आजादी के बाद से अब तक हुई 16 लोकसभाओं में से 5 में एक भी मुस्लिम महिला सदस्य नहीं है.

2014 तक केवल 21 मुस्लिम महिलाएं लोकसभा के लिए चुनी गई हैं. 2010 तक केवल 15 मुस्लिम महिलाओं ने राज्यसभा में प्रवेश किया. हमारे समाज की पितृसत्तात्मक संरचना एक प्रमुख कारण रही है कि न केवल मुस्लिम महिलाएं, बल्कि पूरे देश की महिलाओं की राजनीति में भागीदारी दर इतनी कम रही है. यह प्रवृत्ति निजी क्षेत्र में भी जारी है.

आज तक, 28 राज्यों में से 24 में एक भी मुस्लिम महिला सांसद नहीं है. आजादी के बाद से लगभग 612 महिलाएं 16 लोकसभाओं के लिए चुनी गई हैं, जिनमें से लगभग 21 मुस्लिम महिलाएं हैं.

भारत में 14 मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र हैं और इसके अलावा, 13 निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुसलमानों की आबादी 40% से अधिक है. कुल 101 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमानों की आबादी 20% से अधिक है.

भारत के 2019 के चुनावों में संसद के निचले सदन में महिला राजनेताओं की रिकॉर्ड संख्या देखी गई: 78 निर्वाचित हुईं और यह कुल सदस्य संख्या का 14 प्रतिशत है. लेकिन यह प्रगति सभी समुदायों के लिए बराबर नहीं है., निचले सदन में मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम हो गया. सोलहवीं लोकसभा में चार मुस्लिम महिला सांसद थीं जो सत्रहवीं लोकसभा मे घटकर एक रह गई.

राज्य स्तर पर तस्वीर बहुत अलग नहीं है. राज्य विधानसभाओं में 8% से भी कम महिलाओं का प्रतिनिधित्व है. मुस्लिम महिलाएं लगभग नगण्य हैं. असम विधान सभा में, 14 महिला सदस्य हैं, जिनमें से केवल एक मुस्लिम महिला है.

बेशक, कुछेक मुस्लिम सियासतदान रही हैं जो ऊंचे पदों पर पहुंची हैं. मोहसिना किदवई हो या फिर असल की मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री एकमात्र अनवरा तैमूर हों. नजमा हेपतुल्ला ने भी राज्यसभा की उपसभापति के पद तक पहुंचकर साख कायम की. लेकिन ऐसी नेत्रियों की संख्या बहुत कम है.

जहां तक राज्यों का संबंध है, 29 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल तीन राज्यों की मुख्यमंत्री के रूप में महिलाएं हैं, लेकिन उनमें से कोई भी मुस्लिम नहीं है. 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों के राज्यपालों और उपराज्यपालों/प्रशासकों में से केवल दो महिलाएं हैं, लेकिन एक भी मुस्लिम महिला नहीं है.

वर्तमान में लगभग 36 लोकसभा समितियाँ हैं जिनमें से केवल तीन की अध्यक्षता महिलाएँ करती हैं और उनमें से किसी की भी अध्यक्षता मुस्लिम महिला नहीं करती है. इसी तरह, राज्यसभा में वर्तमान में 12 स्थायी समितियाँ हैं (अन्य संयुक्त समितियाँ हैं), जिनमें से किसी की भी अध्यक्षता एक मुस्लिम महिला नहीं करती है.

16 लोक सभाओं में हमने कभी किसी मुस्लिम महिला अध्यक्ष को नहीं देखा और राज्यसभा में किसी भी मुस्लिम महिला ने सभापति के पद पर कब्जा नहीं किया. राज्यसभा में अठारह बार डिप्टी चेयरमैन के पद पर चार मौकों पर एक मुस्लिम महिला का पदभार संभाला था. दिलचस्प बात यह है कि इन चारों मौकों पर सिर्फ एक नजमा हेपतुल्ला ही मौजूद थीं.

इसलिए शाही इमाम ने जो बात नकारात्मक अंदाज में कही है, उसकी सचाई यही है कि मुस्लिम महिलाओं का राजनैतिक प्रतिनिधित्व नगण्य रहा है और इसके लिए पितृसत्तात्मकता और दकियानूसी विचार ही जिम्मेदार रहे हैं.