रूना रफीक ने उद्यमी बनने के लिए छोड़ दी ऊंची सरकारी नौकरी

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 28-02-2022
रूना रफीक नवगठित क्लस्टर की महिला किसानों के साथ
रूना रफीक नवगठित क्लस्टर की महिला किसानों के साथ

 

डॉ. शिबानी सरमा / गुवाहाटी

दो बच्चों की मां और एक शिक्षित असमिया मुस्लिम महिला रूना रफीक ने एक अज्ञात क्षेत्र में उद्यम करने के लिए असम सरकार की ‘ऑपरेशन स्माइल’ में वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में एक गद्दीदार नौकरी छोड़ने का फैसला किया, जो उनके साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक है. उद्यमिता में उनकी शुरुआत जनवरी 2019 में हुई, जब उन्होंने अपने भाई नोजूम रहमान हजारिका के साथ साझेदारी में एक फर्म ‘ब्लू प्लैनेट अमलगमेटेड’ बनाई. उन्होंने कामरूप जिले के अथियाबोई गांव में अपना पोल्ट्री फार्म, सरायघाट फार्म स्थापित किया.

रूना, मूल रूप से, डिब्रूगढ़ के एक सम्मानित मध्यम वर्ग के उदारवादी मुस्लिम परिवार से हैं. उनके पति राहुल महंत असम के कॉटन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर हैं, जो हमेशा उनका हौसला बढ़ाते हैं. वह कहती हैं, ‘‘अगर मेरे पति का सपोर्ट न होता, तो मैं इतनी दूर नहीं आ पाती. एक महिला उद्यमी के लिए परिवार का समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है.’’

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सरायघाट फार्म में बत्तख


एक उच्च जाति के हिंदू परिवार में उनका विवाह, सांस्कृतिक मानदंडों को धता बताते हुए, एक सामंजस्यपूर्ण अंतर्धार्मिक मिलन का उदाहरण है. आज के समय में जब हिंदू और मुसलमान आपस में भिड़ते नजर आ रहे हैं, असम की यह महिला सभी रूढ़ियों को तोड़ रही है. उन्होंने एक आधुनिक गतिशील और प्रगतिशील भारतीय मुस्लिम महिला के रूप में बाहर खड़े होने के लिए सांस्कृतिक रूढ़ियों को चुनौती दी है. लेकिन उनके बारे में आश्चर्यजनक बात यह है कि उनकी रचनात्मकता और व्यावसायिक कौशल की तुलना उन सफल व्यवसायी महिलाओं से कर सकते है,ं जो देश के उद्यमी परिदृश्य को बदल रही हैं.

रूना कहती हैं, ‘‘उद्यमिता की सुंदरता स्वतंत्रता है. स्वतंत्रता जो आपको संभावनाओं को देखने की अनुमति देती है.’’

उन्होंने टीकाकरण, दवा, आहार की वैज्ञानिक पद्धति का पालन किया और धीरे-धीरे तकनीकी कौशल से खुद को सुसज्जित किया.

2020 में रूना अपने व्यवसाय में विविधता लाईं और पशुधन की खेती में कदम रखा. रूना के व्यावसायिक विचार विशिष्ट हैं. सरायघाट फार्म ’अब ताजे मांस’ की पूर्ति करता है और उन्हेांने एंटीबायोटिक मुक्त चिकन निकालने जैसी नवीन चीजें शुरू की हैं. वह आगे असम की एक स्वदेशी नस्ल डक और स्थानीय चिकन को संसाधित, ब्रांड और आपूर्ति करने की योजना बना रही हैं. यह एक नई अवधारणा है और पहले इसका प्रयास नहीं किया गया है. ‘धोवासांग’ नाम से स्मोक्ड मीट ब्रांड की आपूर्ति लाइन उनके द्वारा पहले ही शुरू की जा चुकी है. ‘धोवासांग’ बतख, मछली और चिकन की प्रामाणिक पूर्वोत्तर स्वाद वाली स्मोक्ड किस्मों को पूरा करता है. इस प्रकार, यह अनिवार्य रूप से पूर्वोत्तर स्वाद को संरक्षित करने का प्रयास है.

रूना शहरवासियों और क्षेत्र के बाहर के लोगों के लिए प्रामाणिक पूर्वोत्तर स्वाद उपलब्ध कराने का प्रयास करता है. धोपरसांग की आपूर्ति की अनूठी विशेषता यह है कि चिकन एंटीबायोटिक मुक्त हैं.

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रूना रफीक अपने खेत में आगंतुकों के साथ 


जब उनसे पूछा गया कि उन्हें एंटीबायोटिक मुक्त चिकन का अभिनव विचार कैसे आया, तो उन्होंने कहा, ‘‘मैंने चिकन में एंटीबॉडी के हानिकारक प्रभाव पर बहुत कुछ पढ़ा है. पोल्ट्री में उनके उपयोग से निर्मित प्रतिरोधी बैक्टीरिया मुख्य चिंता का विषय है, क्योंकि जो लोग इन जीवाणुओं को निगलते हैं, वे संक्रमण विकसित कर सकते हैं, जो एंटीबायोटिक प्रतिरोधी हो सकते हैं. यह जानने के बाद मैं अपने बच्चों को ऐसा मांस नहीं खाने दे सकती थी. मेरे बच्चे ही नहीं, सभी को एंटीबायोटिक मुक्त चिकन खाने का सौभाग्य मिलना चाहिए और किसी को तो शुरुआत करनी ही होगी. इसी सोच को ध्यान में रखते हुए मैंने ऐसे चिकन का उत्पादन और आपूर्ति शुरू की.’’

रूना ने कुक्कुट के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने का निर्णय लिया. कई असमिया ग्रामीण महिलाएं पारंपरिक रूप से मुर्गियों और बत्तखों को पालती हैं. इन महिलाओं के लिए इस सदियों पुरानी प्रथा को स्थायी आजीविका के साधन में बदलना उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में एक कदम आगे था. वर्तमान में उन्होंने 100महिला किसानों को एंटीबायोटिक मुक्त चिकन का उत्पादन करने के लिए प्रशिक्षित किया है.

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एक कार्यक्रम में बोलते हुए रूना रफीक 


वह कहती हैं, ‘‘एक महिला और एक मुस्लिम के रूप में मेरी पहचान बनी हुई है. ऐसा कहने के बाद, मैं यह जोड़ना चाहती हूं कि जिन चुनौतियों का मैंने सामना किया, वे नारीत्व या मेरे मुस्लिम धर्म के लिए अद्वितीय नहीं थीं. मुझे उसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा, जो हर उद्यमी करता है.’’ वह स्वीकार करती है कि उन्हें एक शुरुआती उद्यमी के रूप में चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसकी काफी उम्मीद थी. हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्हें अपने लिंग या धर्म के कारण कभी किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ा और वह इसका श्रेय असमिया समाज की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को देती है.

रूना द्वारा सूचीबद्ध समस्याएं हैं, बाजार बनाना, व्यवसाय चलाना, इसे बढ़ाना,  पशु चिकित्सा देखभाल तक सीमित पहुंच और पशु कल्याण में विशेषज्ञता की कमी.

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सरायघाट फार्म पर चिकन


रूना को लगता है कि इस क्षेत्र में पशुधन की खेती के लिए एक बड़ी संभावना है, बशर्ते कि सही पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जाए. उनका मानना है कि सरकार को इस क्षेत्र में और प्रयास करने की जरूरत है. उनका मानना है कि कुछ भी असंभव नहीं है. उनके शब्दों में, ‘‘यदि मन इसे देख सकता है, तो कोई इसे प्राप्त कर सकता है.’’

इसी धारणा के साथ रूना अकेले ही अपनी यात्रा जारी रखे हुए है. रूना एक उद्यमी हैं, जिनका एक उद्देश्य है. वह ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने और युवाओं को एक मजबूत खेती और पशुधन संस्कृति विकसित करने के लिए प्रेरित करने का इरादा रखती हैं. अपने व्यवसाय के माध्यम से वह पूर्वोत्तर विरासत के स्वादों को संरक्षित करने का भी प्रयास करती हैं.