नई पहलः आत्मनिर्भर हो रही महिलाओं के स्टार्ट अप ने एक साथ बेचे रोजे और नवरात्रि के पवित्र भोजन

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
भेदभाव के दीवार को गिराने वाली पहल
भेदभाव के दीवार को गिराने वाली पहल

 

नीलम गुप्ता/ लखनऊ

ऐसा तो कई बार हुआ है कि नक्षत्रों की गणना के हेर-फेर से रोजा और नवरात्र दोनों पवित्र पर्व साथ-साथ पड़े हों, मगर नवरात्रि का आहार और रोजा की इफ्तारी दोनों एक जगह!देखना तो दूर आज तक इसकी कभी कल्पना तक नहीं की थी. पर इसे कर दिखाया लखनऊ सेवा ट्रस्ट की संस्थापक फरीदा जलीस ने.

फरीदा कहती हैं, “हमें ये दोनों कभी अलग लगे ही नहीं. हमारी कोशिश अपनी जीविका बेकर्स को अपने पांवों पर खड़ा करने की है.”

इसके लिए इसे शुरू किए जाने के बाद से हर पर्व त्यौहार पर वह इसकी कैनोपी बाजार में लगाती आ रही है. वह कहती हैं, “यह संयोग की बात है कि इस बार नवरात्रि और रमजान एक साथ ही शुरू हुए तो मुझे लगा कि क्यों न दोनों समुदायों के लोगों को उनकी व्रत और रोजा अफतारी की सामग्री की सुविधा भी एक ही जगह पर मिल जाए.”

पर एक तो आज का तनावपूर्ण माहौल, दूसरा दोनों की पवित्रता की अपनी-अपनी भावना आपको लगा नहीं कि दोनों को एक साथ लगाना खतरे को मोल लेना भी हो सकता है? फरीदा जवाब में कहती हैं, ‘मैंने कहा न कि हमने दोनों समुदायों को कभी अलग-अलग करके देखा या सोचा ही नहीं. सेवा का दर्शन सर्वधर्म समभाव का रहा है. हमारे सभी कार्यक्रम चार धर्मों की प्रार्थना सभा के साथ शुरू होते हैं. ऐसे में हमारे अपने भीतर कोई भय या आशंका नहीं थी. वैसे भी हमारा नजरिया शुद्ध व्यावसायिक था. हम अपने माल के जरिए लोगों को एक सुविधा दे रहे थे. और अनुभव से साबित हुआ कि लोगों को यह प्रयोग पसंद आया है.’

जीविका बेकर्स की प्रोडक्शन इंचार्ज अंजना वर्मा कहती हैं, “विकास नगर सेक्टर-3 में जब पहले दिन हमने अपनी कैनोपी लगाई तो देखा कि लोग रुकते हैं, बैनर को पढ़ते हैं और फिर चले जाते हैं. कुछ खड़े होकर माल को देखते हैं और चले जाते हैं. पहले दिन कोई माल नहीं बिका. हमें बहुत मायूसी हुई. पर अगले दिन फिर से हम आए, हमारे स्टॉल पर नवरात्रि का आहार साबूदाना, भूनी मूंगफली, आलू के चिप्स, सूखा मेवा और कोटू के आटे की पूरिया और इसी तरह रोजा अफतारी के लिए खजूर, मटरी, पकोड़े, गुलगुले, सेवई, लच्छा, बिस्कुट, शकरपारे व नमकपारे के पैकेट थे. एक दिन पहले जो लोग देखकर वापस चले गए थे उनमें कुछ अपनी जरूरत के हिसाब से माल खरीदकर ले जा रहे हैं. इससे हमारा हौसला बढ़ा.”

शाम होते-होते आम ग्राहकों के अलावा आसपास के हॉस्टल या फिर पीजी में रह रहे छात्र या प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे युवक खासतौर से नवरात्रि के आहार की मांग कर रहे थे. उनका कहना था कि उनके पास इतना समय व सुविधा नहीं कि वे खुद बना सकें. यहीं नहीं उन्होंने अपनी जरूरत भी बताई.

वर्मा कहती हैं, “अगले दिन से हम उनके लिए पूरी के साथ साथ आलू की सब्जी भी पैक करने लगे. अब तो वे फोन पर अपनी जरूरत बता देते हैं और उनका माल हम पास ही स्थित अपने आफिस के सेवा केंद्र पर छोड़ देते हैं वे अपनी सुविधानुसार वहां से उठा लेते हैं. एक तरह से वे हमारे पक्के ग्राहक बन गए हैं.”

विकास नगर के अलावा सेवा ने लखनऊ के ही अलीगंज और लेखराज इलाके में भी एक-एक कैनोपी लगाई. सभी सेवा बेकर्स और सेवा के आफिस से चार पांच किमी के दायरे में. कारण, ग्राहक और विक्रेता दोनों में से किसी को भी ज्यादा दूर न जाना पड़े. दूसरा, आफिस के पास हाने से, अगर कहीं कोई अघटित घटने के आसार बनते हैं तो उसे आसानी  से संभाला जा सके.

फरीदा के अनुसार एक दो दिन कुछ अलग तरह के लोग आकर खड़े हुए भी पर फिर पूरी बात सुनकर चले गए.’ जीविका बेकर्स की प्रोसेसिंग इंचार्ज रहीसा हाशमी ने बताया, पहले दिन हम थोड़ा डर रहे थें. फरीदा बहन लगातार फोन पर संपर्क में थीं. हमारे बैनर -‘नवरात्रि की आहार सामग्री और रमजान के लिए अफतार पैकेट उपलब्ध हैं.’ को पढ़ने के बाद लोग उत्सुकतावश हमारे स्टाल पर आते. हम उन्हें पहले सेवा के बारे में पूरा बताती. कोरोना काल में जीविका बेकर्स की शुरूआत कैसे हुई, वह बताती और सेवा के मकसद कामगार बहनों, फिर चाहे वे किसी भी जाति या धर्म की हों, को आत्मनिर्भर बनाना के बारे में समझाती. उसे सुनने के बाद कुछ चुपचाप चले जाते और कुछ एक दो पैकेट खरीद लेते. कुछ सेवा का ब्रोशर अपने साथ ले जाते. बहुत से हमारे इस काम की सरहना करते और यहां तक कहते कि सद्भाव के इस काम को जारी रखना. यह सब हमारा हौसला बढ़ाने के लिए काफी था. विकास नगर के अच्छे अनुभव के बाद ही हमने दो अन्य इलाकों में कैनोपी लगाने का फैसला किया था.’

अभी तक का अनुभव सेवा बहनों के लिए सुखद था पर अप्रत्याशित नहीं. सेवा के ही शुभम शर्मा के अनुसार, “उस दिन हम सभी हैरान रह गए जब लखनऊ स्थित आदित्य बिड़ला कंपनी के पैंटालून शोरूम के करीब नौ सदस्यों की एक टीम हमारे आफिस में आई और उसने नवरात्रि आहार व रोजा अफतार सामग्री को एक साथ एक ही स्टाल पर रखकर आम ग्राहक तक पहुंचाने के हमारे प्रयास की जमकर तारीफ की. यही नहीं, उसने मौके पर जाकर जीविका बेकर्स को पूरी तरह से देखा और करीब साढे ग्यारह हजार रूपए का कच्चा माल वहां पर डलवाया. यह माल वे अपने साथ लेकर आए थे.”

बातचीत में पता चला कि शोरूम की एचआर मैनेजर पल्लवी जोशी कुछ दिन पहले हमारी कैनोपी पर आई थीं और कुछ सामान खरीदकर ले गईं थीं.  तभी उन्हें सेवा और इस स्टाल के मकसद की जानकारी भी मिली थी. अपने साथ वे सेवा का एक ब्रोशर ले गई थीं जिसे उन्होंने अपने शो रूम में सबके साथ साझा किया. अब उनका यह भी कहना था कि न केवल अपनी पार्टियों के आर्डर वे जीविका को देंगे उनका प्रयास इसे प्रमोट करने का भी रहेगा.

जीविका बेकर्स की शुरूआत फरीदा जलीस ने 2021 में कोरोना की दूसरी लहर में बेरोजगार हुई सेवा कामगार बहनों को रोजगार दिलाने के मकसद से की थीं. करीब आठ महीने के भीतर ही अपनी मेहनत व सूझबूझ से वे उसे इस मुकाम पर ले आई हैं कि जल्द ही वह पूर्ण आत्मनिर्भर स्टार्टअप बन जाएगा.