रेशमा /अलीगढ़
मुस्लिम लड़कियों के बीच तालीम की जागरुकता आ चुकी है. जिसके चलते कई बड़े बदलाव मुस्लिम महिलाओं के बीच देखने को मिल रहे हैं. लेकिन अफसोस की बात यह है कि ऐसे बदलावा पर फोकस नहीं किया जा रहा है. यह बदलाव कोई दो-चार दिन या महीनों में नहीं आया है. कई बरस पहले से इसकी शुरुआत हो चुकी है. यह कहना है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एस. जैनुउद्दीन का. प्रो. जैनुउद्दीन ने बताया हाल ही में रोहतक, हरियाणा की एक यूनिवर्सिटी का सर्वे सामने आया है.
सर्वे खासा चौंकाने वाला है. सर्वे मुस्लिम महिलाओं को लेकर है. सर्वे बताता है कि घरों में मुस्लिम महिलाओं को आर्थिक आज़ादी है. हर छोटे-बड़े आर्थिक रूप से जुड़े काम में उनका मशविरा लिया जाता है. परिवार के आर्थिक फैसलों में 70.3फीसद मुस्लिम महिलाओं का दखल होता है. सर्वे महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू), रोहतक की ओर से किया गया है.
26.3फीसद मुस्लिम महिलाएं मर्जी से खर्च करती हैं अपनी कमाई
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (एमडीयू), रोहतक के प्रोफेसर डा. रामफूल ओहल्याण का सर्वे बताता है कि देश में रहने वाली अल्पसंख्यक आबादी मुस्लिम परिवार की 26.3फीसद मुस्लिम महिलाएं अपनी कमाई अपनी मर्जी से खर्च करती हैं. इसमे परिवार का किसी भी तरह का कोई दखल नहीं होता है. वहीं अगर हिंदू परिवार की महिलाओं की बात करें तो ऐसा करने वाली महिलाओं की संख्या सिर्फ 20.1फीसदी ही है.
अल्पसंख्यक वर्ग में ही ईसाई परिवार की 22.4फीसद, सिक्ख परिवार में 19फीसद और बौद्ध परिवार की 24.5फीसदी महिलाओं को ही यह आज़ादी मिली हुई है.
55.8फीसद शौहर और बीवी मिलकर खर्च करते हैं
अगर देश के मुस्लिम परिवारों में 26.3 फीसद मुस्लिम महिलाओं को अपनी कमाई खुद की मर्जी से खर्च करने की आज़ादी है तो देश में 55.8 फीसद ऐसे भी शौहर और बीवियां हैं जो दोनों एक राय होकर बाज़ार में पैसा खर्च करते हैं. हालांकि दूसरे वर्गों को देखते हुए यह नंबर थोड़ा सा पीछे है. लेकिन मुस्लिम परिवारों का ज़िक्र करते हुए इसे कम नहीं माना जा सकता है.
ऐसे हिंदू परिवार जहां पति-पत्नी दोनों मिलकर खर्च करते हैं उनकी संख्या 61.6 फीसद, ईसाई 63.8, सिक्ख 68.4 और बौद्ध परिवार में ऐसे जोड़ों की संख्या 64.1 फीसद है.