कलरीपायट्टु एक्सपर्टं आरफा कैसे बनीं मार्शल आर्ट की मास्टर

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 2 Years ago
कलरीपायट्टू एक्सपर्टं आरफा कैसे बन गईं मार्शल एक्सपर्ट, आइए जानें
कलरीपायट्टू एक्सपर्टं आरफा कैसे बन गईं मार्शल एक्सपर्ट, आइए जानें

 

शाहिद हबीब / नई दिल्ली / तिरुवनंतपुरम

केरल की परंपरागत मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु, में हमेशा पुरुषों का वर्चस्व रहा है. हमजा गुरु काकाल, इस कौशल के एक अनुभवी प्रशिक्षक रहे हैं. उन्होंने इस पुरानी परंपरा को न केवल आगे बढ़ाया, इसे नए आयाम भी दिए हैं. उन्होंने ही अपनी पांच साल की पोती आरफा कोडेल के मन में इस कला के प्रति लख जगाया. उसे इसमें दक्ष करने में भरपूर मदद की. आज वही केरल में इस कला की पहचान बन गई है.
 
हालांकि मलप्पुरम के रहने वाले हमजा का पोति को कलरीपायट्टु सिखाने का फैसला लोगों को पसंद नहीं आया था. जैसे ही एक मुस्लिम लड़की के कलरीपायट्टू सीखने की खबर समाज तक पहुंची, कोलाहल मच गया.
 
हाल में 26 साल की  आरफा कोडेल ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को हरा जीत का परचम लहराकर अपनी काबिलियत साबित की है. आरफा कहती हैं, ‘‘जब मैं बच्ची थी, मैं अपने परिवार के लोगों कोे कलरीपायट्टु का अभ्यास करते देखती थी.‘‘ तब सोचा करती थी कि सभी को इस मार्शल आर्ट के दाव सीखने चाहिए.
 
पांच साल की उम्र से मेरी इस कला के प्रति दिलचस्पी है, जिसे देखकर मेरे पिता ने मुझे प्रशिक्षित करने का फैसला किया. पांच बार की राष्ट्रीय चैंपियन आरफा मल्लपुरम कला यानी कलरीपायट्टू में महारत हासिल करने वाली देश की पहली मुस्लिम लड़की हैं. वह कहती हैं, ‘‘ जब मुझे अभ्यास करने के लिए कोई महिला खिलाड़ी नहीं मिलती थी तो मैं अपने भाई के साथ प्रैक्टिस किया करती थी.‘‘
 
वह कहती हैं, अधिकांश प्रतियोगिताओं में मैं अकेली लड़की या एकमात्र मुस्लिम लड़की होती हूं. मैंने मल्लपुरम का प्रतिनिधित्व किया है.हमजा थाली की मृत्यु के बाद, उनके बेटे केएम हनीफ,  कलरीपायट्टु सिखाने का काम संभाल रहे है. हनीफ का कहना है कि जब आरफा को कलरीपायट्टू के विभिन्न पाठों से परिचित कराया गया, तो समाज के कई लोगों ने हमसे कहा कि उसे मंच पर अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन न करने दें.
 
कलरीपायट्टू की कला महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं है. मगर एक परिवार के तौर पर हमने उन शब्दों पर कभी ध्यान नहीं दिया. हमने हमेशा अपने बच्चों से कहा कि टिप्पणियों से परेशान न हों. आरफा पर उंगली उठाने वाले जल्द ही उसके प्रशंसक बन गए. अब तो उसकी रक्षात्मक तकनीक के सभी कायल हैं. 
 
हनीफ ने कहा, ‘‘हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब हमें औरत और मर्द के बीच के फर्क से बाहर निकलना होगा.‘‘ हनीफ कहते हैं. अब पहले जैसे हालात नहीं रहे. अब तो ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को चार साल की उम्र में ही उनके केंद्र पर प्रशिक्षण दिलाने पहुंच जाते हैं.
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आरफा का मानना है कि महिलाओं के लिए मार्शल आर्ट सीखना बहुत जरूरी है. वह कहती हैं, ‘‘हमारे पिता महिलाओं को सिखाने के लिए अगल से बैच चलाते हंै, जिसमें मेरे पिता के आलावा बहन आशिफा और मैं लगभग 50 लड़कियों को प्रशिक्षित करते हैं.
 
उन्हें यह भी बताया जाता है कि बैग, छाता, कलम या पर्स को आत्मरक्षार्थ कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि एक महिला केवल अपनी आंखें तरेर कर भी हमलावर की इच्छा रखने वाले को धमका सकती है.
 
आरफा कई तरह के हथियार चलाना जानती हैं. उसमें ओरुमी, प्रीचा, कटार (डैगर), काठी, कंथम (भाला), कोरवाडी (कंधे की छड़ी) और नेदोविडी शामिल हैं.कलरीपायट्टु प्रशिक्षु कई वर्षों के अभ्यास के बाद ही हथियार चला सकते हैं, जो प्रशिक्षण का पहला चरण है.
 
ऑप्टोमेट्री में स्नातक आरफा अब अपने पति के साथ पलक्कड़ के चेककॉनर में रहती हैं. उनकी 21 साल की बहन अशफा एक महिला केंद्र चलाती हैं. आरफा स्पेशल क्लास और प्रतियोगिता के दौरान ही आती हैं. आरफा कहती हैं, ‘‘मेरे छात्रों ने हाल में त्रिवेंद्रम में राज्य प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है.‘‘