डा. रेनू बहलः वालिद से उर्दू शायरी का जौक-ओ-शौक ले गया दर्जनों अवार्डों तक

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 14-03-2022
डा. रेनू बहल
डा. रेनू बहल

 

हरियाणा और पंजाब की प्रख्यात उर्दू लेखिका डा. रेनु बहल का नाम और शख्सियत उर्दू दुनिया में किसी भी तआरुफ की मोहताज नहीं है. उन्हें अपने वालिद की शायरी की वजह से उर्दू उनके खून में थी. बाद उसके उनमें ये ख्वाहिश भी जगी कि जगजीत सिंह उनकी गजल गाएं. इस ख्वाहिश के तईं उन्होंने उर्दू सफर शुरू किया. बाकायदा उस्तादों से अलिफ और बे सीखा. और इस तरह वो उर्दू दुनिया का चमकता सितारा बन गईं. हरियाणा व पंजाब की प्रख्यात उर्दू लेखिका डा0 रेनु बहल से डा. रक्षंदा रूही मेहदी की बातचीतः

सवाल- आपने अपनी अभिव्यक्ति के लिए उर्दू भाषा को ही क्यों चुना?
उत्तर- मेरे वालिद साहब को उर्दू शायरी पढ़ने का बहुत शौक़ था. बचपन से उनको उर्दू शायरी की मिसालें देते सुना, तो मुझमें  भी शायरी का  शौक़-ज़ौक़ पैदा हो गया. मैंने उर्दू अपने उस्ताद मरहूम डा. हारून अय्यूब साहब से अलिफ़-बे से पढ़ी. एमए उर्दू के बाद पीएचडी भी की. पंजाब व हरियाणा में मुझे रवानी से उर्दू लिखते-पढ़ते देखकर लोग मुझे बहुत पुरानी नस्ल की मख़लूक़ समझते हैं.

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सवाल- आपकी पहली कहानी कब और कहां छपी?
उत्तर- मेरी पहली कहानी 3 जनवरी 1996 में ‘हिंद समाचार‘ जालंधर में ‘परछाइयां‘ नाम से छपी. ये कहानी ‘रेनु सबा‘ के नाम से प्रकाशित हुई थी. इस कहानी के बाद मैंने ‘रेनु बहल‘ नाम से ही लिखा.

सवाल- सबा नाम रखने का कोई ख़ास कारण?
उत्तर- जी हां! मैं पहले षायरी की तरफ़ आई और अपना तख़ल्लुस ‘सबा‘ रख लिया. चंद ग़ज़लें रिसालों में छप भी गईं. शायरी के पीछे एक दिलचस्प क़िस्सा है. मैं जगजीत सिंह जी की गायकी की बड़ी मद्दाह हूं. मेरे दिल में ख़्वाहिश जागी कि काष कोई दिन मेरी ग़ज़ल जगजीत सिंह जी गाएं और मैंने फौरन  शायरी    का दामन थाम लिया.

चंद ग़ज़लों की इस्लाह कष्मीरी लाल ज़ाकिर साहब ने कर दी. लेकिन शबाब ललित जो ‘जदीद फ़िक्र-ओ-फ़न‘ के एडीटर थे, उनको मैंने अपने अफ़सानों के साथ ग़ज़लें भी भेजना शुरू कर दीं और मेरी ग़ज़लें लाल रोषनाई से ख़ामियों की निशानदेही के साथ वापिस आने लगीं.

मैं वज़न, रदीफ़, क़ाफ़िए, बहर की पाबंदियों में उलझती जा रही थी. मैं कहना कुछ चाहती थी और इस्लाह के बाद उसके मायने कुछ और हो जाते थे. इसलिए शायरी से तौबा कर ली, मगर शायरी पढ़ना आज भी मेरा महबूब मशगला है.

सवाल- जब कहानी आपसे रूठ जाती है, तो आप उसे मनाने-बुलाने के क्या जतन करती हैं?
उत्तर- कुछ दिन तो मैं रूठी हुई कहानी को आज़ाद छोड़ देती हूं, ज़्यादा वक़्त गुज़रने पर नए विषय तलाष करती हूं, उनका सिरा पकड़ना चाहती हूं. कोशिश करती हूं मेरी कहानी बहल जाए. और दिल को राहत उसे मना कर ही मिलती है.
बक़ौल शायरः
उन्हें मालूम है हमको मनाना ख़ूब आता है
इसी बाइस वो रूठ कर हमको सताते हैं

सवाल- किस उर्दू अफ़साना निगार ने आपको मुता‘स्सिर किया? क्या उन्हीं के रंग में आप की कहानी रंगी हुई है?
उत्तर- इस्मत चुग़ताई के अफ़सानों ने मुझे बहुत मुता‘स्सिर किया, लेकिन मेरा अपना मिज़ाज, अपनी फ़ितरत है. मैं कहानियां अपने ख़्यालात व एहसासात और मिज़ाज के हिसाब से बुनती हूं. लिखते वक़्त ये नहीं याद रहता कि मेरी कहानी किसके रंग में रंगी जा रही है.

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सवाल- ‘द्रौपदी जाग उठी‘ कहानी में भारतीय औरत का शर्मिंदा कर देने वाला रूप दिखाने के पीछे आपकी क्या कल्पना रही?
उत्तर- द्रौपदी ने हालात से मजबूर होकर मान-मर्यादा को लांघा. वह अपने परिवार को बिखरने से बचा लेती है. पर ज़िंदगी से हार नहीं मानती. औरत का हौसलामंद क़दम है ये, न कि बुज़दिलाना क़ुसूर. इस इल्ज़ाम पर यह ही कह सकती हूं-
लो वो भी कह रहे हैं बे नंग-ओ-नाम है
ये जानता अगर तो घर को लुटाता न मैं


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सवाल- अलामती कहानी नहीं लिखी आपने?
उत्तर- दिल में ऐसी कोई आवाज़ नहीं उठी अभी तक, जो अलामती कहानी की शक्ल इख़्तियार कर जाती. मैं अपने दिल की आवाज़ पर कान धरे हूं.

सवाल- आपकी नज़र में मर्द औरत से कमतर है, ऐसा आपकी कहानियों के हवाले से कहा जा सकता है?
मिर्ज़ा ग़ालिब कह गएः
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है

ऐसा कोई पैमाना नहीं कि मर्द और औरत की हैसियत को नापा तौला जा सके. वक़्त और हालात पर दोनों की हिम्मत का दारोमदार है.

सवाल- आप पंजाब की इकलौती ख़ातून कहानीकार हैं, ये ख़ुसूसियत आपको कैसी लगती है?
उत्तर- मुझे अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास रहता है कि यहां की औरत की मैं इकलौती आवाज़ हूं. समाज में औरत के मक़ाम को मज़बूत करने में एक लेखक का बड़ा रोल होता है. औरतों की तकलीफें, दुख-दर्द मैं बखू़बी समझ सकती हूं और उन पर गहराई से क़लम उठाती हूं.

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सवाल- आपने आतंकवाद, अन्याय और अत्याचार को क्यों नज़र अंदाज़ किया?
उत्तर- नहीं, ऐसा नहीं है. ‘वो सुबह कभी तो आएगी‘ ‘दहशतगर्द‘ आतंकवाद पर लिखे गए अफ़साने हैं. ‘अंधेरे उजाले‘, ‘षाख़ों पर सांप‘ अन्याय के हवाले से लिखे गए हैं. ‘अमावस‘, ‘दर्द का रिश्ता ‘, ‘नन्हीं कली‘ और ‘एक ही रहगुज़र‘ समाजी भेदभाव पर लिखी कहानियां हैं.

सवाल- कितने नाटक आपने लिखे ?
उत्तर- अभी यह सिन्फ़ मेरे क़लम की नोक पर आने की राह पर है. ज़रा और इंतज़ार अभी ...
वो मोम मेरे इष्क़ की तासीर से हुआ
लेकिन ये वाक़्या बड़ी ताख़ीर से हुआ

सवाल- आपका नया नॉवल ‘निजात दहिंदा‘ किस विषय पर है?
उत्तर- ज़ात-पांत के मौज़ू पर लिखा गया है ये नॉवल. लड़की हर तरह की क़ुर्बानी देकर अपनी मुहब्बत को पाने के जत्न करती है. वो मॉडर्न ख़्यालात की हामी है. पुरानी गली-सड़ी रिवायतों से बग़ावत करके अपने दिल की आवाज़ सुनती है. अछूत के कोई मायने नहीं उसके लिए. समाज में बराबरी का पैग़ाम देता है ये नॉवल.  

सवाल- पहले शायरी, फिर कहानी और नॉवल के साथ लेखन की दूसरी कौन सी विधाओं पर आपका क़लम चली?

उत्तर- ख़ाके, मज़मून, तरजुमे भी मैंने काफ़ी लिखे हैं. तनक़ीद पर मेरा क़लम नहीं चला और चल भी नहीं सकता, क्योंकि मैं किसी के तर्जें़ ब्यान पर अपनी राय देना मुनासिब नहीं समझती.

सवाल- उर्दू ज़बान के मुस्तक़बिल को आप कैसे दखती हैं?
उत्तर- उर्दू जज़्बात की तर्जुमानी के लिए बेहतरीन ज़बान है. नई नस्ल उर्दू  शायरी सुनकर सुरूर में आ जाती, लेकिन पढ़ना-लिखना उनके बस की बात नहीं. स्कूलों में उर्दू की तालीम दी जानी चाहिए और घर में बच्चों को उर्दू से वाक़िफ़ कराना मां-बाप की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए. वाक़ई उर्दू ग़ज़ल का कोई जवाब नहीं. मेरा पहला प्यार शायरी है और दूसरा कहानी.
शायद उर्दू अपने चाहने वालों से कहना चाहती हैः
इन्हीं पत्थरों पे चल के अगर आ सको तो आओ
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां नहीं है

सवाल- आपने सिर्फ़ शायरी की किताबों के हिंदी उर्दू अनुवाद किए?

उत्तर- शायरी की दो किताबों के तर्जुमे छप चुके हैं. नस्र के तर्जुमे की किताब प्रेस में है.

सवाल- ‘महिला दिवस‘ मनाने पर आप के क्या विचार हैं? आज भी औरत मज़लूम है?


उत्तर- औरत के सामने नई चुनौतियां हैं. हर दिन महिला दिन है. आज की औरत अपने हक़ के लिए अवाज़ उठा रही है. मज़लूम कैसे है? पहले ये नारा था ‘अबला नारी‘ अब नारा है ‘सबला नारी‘. सर्व गुणों से संपन्न है औरत. अपनी राह स्वयं चुनती है. आसमान में उड़ाने भरती है, ज़मीन के सीने पर अपनी कामयाबी की दास्तान लिखती है. मर्द के कंधे से कंधा मिलाकर जंग के मैदान में डटी रहती है. अब ये बेचारगी का टैग उसके माथे से हटा दीजिए.


READ MORE वर्तमान उर्दू समाचार पत्रों के कुछ आकर्षक पहलू


डा. रेनू बहल का उर्दू कहानी संग्रहः

आइना  2000
आंखों से दिल तक  2005
कोई चारासाज़ होता 2008
खुशबू मेरे आंगन की  2010

बदली में छुपा चांद 2012
ख़ामोश सदाएं 2013
दस्तक  2016
डूबती नस्लें 2021


उर्दू नॉवलः


गर्द में अटे चेहरे  2017
मेरे होने में क्या बुराई है 2017
निजात दहिंदा 2019

हिंदीः

‘कस्तूरी‘ कहानियां  2015
‘मेरे होने में क्या बुराई है‘ नॉवल 2019

अनुवादः

‘सुनो राधिका‘ हिंदी से उर्दू 2018
‘माधव कोशिक की मुंतखि़ब ग़ज़लें‘ हिंदी से उर्दू 2020

‘जहाने आरज़ू‘ हिंदी से उर्दू प्रैस में
रेडियो और टीवी पर कहानियां टेलीकास्ट
रेनु बहल की अफ़साना निगारी ‘आंखों से दिल तक की रोशनी में‘ और ‘दस्तक‘ के उन्वान पर जम्मू कश्मीर यूनिवर्सिटी से एम.फिल के मक़ाले लिखे गए

पाकिस्तानी रिसाले ‘चहार सू‘ ने 2014 में रेनु बहल को नंबर छापा

अवार्डः

शिरोमणि उर्दू साहित्य अवार्ड 2014, एक्सिलैंस अवार्ड 2015, अमृता प्रियतम स्मृति सम्मान 2010, लाला जगत नारायण अवार्ड 2003, राजेंद्र सिंह बेदी अवार्ड, हिंदी डायरेक्टोरेट अवार्ड, यूपी उर्दू अकेडमी अवार्ड, बिहार उर्दू अकेडमी अवार्ड, चण्डीगढ़ साहित्य अकेडमी अवार्ड, वेस्ट बंगाल उर्दू अकेडमी अवार्ड

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