तीन तलाक पर केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-08-2024
Muslim women
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नई दिल्ली. तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तीन तलाक के अपराधीकरण का बचाव किया है. सरकार ने कहा कि इस अदूरदर्शी परंपरा से बचने के लिए एक ऐसे कानूनी प्रावधान की जरूरत है, जो मुस्लिम पतियों को तत्काल तलाक के लिए मजबूर करने से रोक सके.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि तीन तलाक की प्रथा न केवल विवाह जैसी सामाजिक संस्था के लिए घातक है, बल्कि यह मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को भी बेहद दयनीय बना देती है. उसने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कहा है कि कानून कैसा हो, यह तय करना विधायिका का काम है, कोर्ट का नहीं. कानून क्या हो, यह तय करना कोर्ट का काम नहीं है. वही यह निर्णय लेता है कि ‘सरकार’ का प्राथमिक कार्य यह है कि देश की जनता के लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं.

सरकार ने हलफनामे में कहा कि तीन तलाक की पीड़िताओं के पास पुलिस के पास जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. और पुलिस असहाय थी, क्योंकि कानून में दंडात्मक प्रावधानों के अभाव में पतियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती थी. मुस्लिम महिलाओं पर अत्याचार रोकने के लिए सख्त कानूनी प्रावधानों की जरूरत थी.

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में दलील दी गई है कि सायरा बानो मामले के बाद तीन तलाक पर कोई कानूनी प्रभाव नहीं पड़ा है. इसलिए तीन तलाक को अपराध नहीं माना जा सकता. केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह का अधिकार) अधिनियम, 2019 के तहत मुस्लिम पुरुषों के लिए तीन तलाक को अपराध घोषित करने की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है.

 

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