इतिहास रचने वाली मुस्लिम बेटियों ने बताए बीपीएससी में सफलता के गुर

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] • 2 Years ago
रज़िया सुल्तान
रज़िया सुल्तान

 

सेराज अनवर / पटना

बेटियां होती ही हैं इतिहास रचने के लिए.  इस्लाम में बेटी को रहमत से नवाजा गया है. बिहार लोक सेवा आयोग के 64 वां संयुक्त परिणाम आने के बाद ये बेटियां कई घरों के लिए वाकई रहमत बन गयी हैं. मुस्लिम बच्चियों ने इस बार इतिहास रच दिया है. जिस पारिवारिक पृष्ठभूमि से ये लड़कियां आती हैं, वैसे में इनका अधिकारी बनना बहुत ही प्रेरणादायक है. अफसर बनने वाली कुछ लड़कियों से आवाज-द वॉयस ने बातचीत की.

बाप का साया उठा गया

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रुशदा रहमान  


229वीं रैंक लाकर सेक्शन ऑफिसर बनने जा रहीं गया पंचायती अखाड़ा की रुशदा रहमान जब दो साल की थीं, तो उनके पिता अताउल रहमान नवादा में दंगे की भेंट चढ़ गये थे. पिता का साया उठ गया था. तब न सिर्फ उनकी परवरिश उनके बड़े भाई अबु हुजैफा ने की, बल्कि उन्हें प्रेरित करने का काम भी किया. भाई ने उच्च शिक्षा के लिए रुशदा को दिल्ली जामिया हमदर्द में दाखिला दिलवाया. वहीं से उन्होंने बीपीएससी की तैयारी की. दो बार असफल रहीं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी. तीसरी बार में कामयाब हो गयीं. इसके बाद भी वह रुकना नहीं चाहती हैं.

रुशदा कहती हैं कि कामयाबी का यह पहला कदम है. समाज में अपने कर्तव्य से मिसाल बन सकूं, यह कोशिश रहेगी हमारी. मुस्लिम लड़कियां आगे बढ़ें, पढ़ाई को महत्व दें.

एक बच्ची की मां हैं

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सीमा खातून 


गया के अलीगंज की सीमा खातून एक घरेलू महिला हैं, आठ साल की बेटी है इनकी. उन्होंने बिना स्कूलिंग के मैट्रिक का इम्तिहान पास किया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से डिप्लोमा किया और जामिया मिलिया इस्लामिया से सीएस में इंजीनियरिंग की. 2011 में शादी हो गई. 2016 में वापस पढ़ने का जज्बा जागा.  शौहर मोहम्मद खुर्शीद आलम ने भरपूर साथ दिया. सेल्फ स्टडी शुरू की, बीपीएससी तैयारी में बिहार हज भवन ने गाइड किया और पहले ही बार में कामयाबी हासिल ली.

सीमा कहती हैं कि अक्सर मुस्लिम महिलायें अपने घरेलू कार्य में उलझी रहती हैं. उन महिलाओं के लिए रोल मॉडल बनना चाहती हूं, जो बहाने बना कर आगे नहीं बढ़ना चाहतीं. वह बतातीं हैं कि हमारे परिवार में अट्ठारह सदस्य हैं. सबकी देखभाल के बीच पढ़ाई के लिए भी वक्त निकाला. आज मैं खुश हूं.

नौकरी के साथ की तैयारी

रजिया सुल्तान बिहार पुलिस में डायरेक्ट डीएसपी बनने वाली पहली मुस्लिम महिला होंगी. रजिया मूलरूप से गोपालगंज जिले के हथुआ के रतनचक की रहने वाली हैं.  उनके पिता मोहम्मद असलम अंसारी बोकारो स्टील प्लांट में स्टेनोग्राफर थे. साल 2016 में उनका इंतकाल हो गया था. उनका परिवार बोकारो में ही रह रहा है. रजिया अपने सात भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं.

रजिया अभी पटना में बिजली विभाग में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत हैं. वह नौकरी के साथ-साथ बीपीएससी की तैयारी कर रही थीं. वह कोचिंग करना चाहती थीं, लेकिन पटना में इंग्लिश मीडियम का अच्छा कोचिंग नहीं होने की वजह से उन्होंने घर पर ही रहकर पढ़ाई की. रजिया पहले ही प्रयास में सफल हुई हैं. बीपीएससी के इस बार आये रिजल्ट में 40 डीएसपी बने हैं, जिनमें रजिया भी एक हैं. रजिया ने 12वीं तक की पढ़ाई बोकारो से की है.  इसके बाद वह जोधपुर इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन करने राजस्थान चली गयीं. इसके बाद बिजली विभाग में उनकी नौकरी लग गई और नौकरी करते हुए वह तैयारी करती रहीं.

आवाज-द वॉयस से रजिया ने कहा, ‘अपराध नियंत्रण हमारी प्राथमिकता होगी. महिलाओं से जुड़े मुद्दे ज्यादा से ज्यादा रजिस्टर हो सकें और उस पर कार्रवाई हो यह भी हमारी प्राथमिकता में शामिल होगी. महिलाओं से संबंधित ज्यादातर केस रजिस्टर ही नहीं हो पाते हैं. उनका कहना है कि इस कामयाबी पर फख्र तो हो रहा है, मगर चुनौतीपूर्ण जिम्मेवारी मिली है. ईमानदारी से फर्ज निभाऊँगी.

शादी के बाद पिता ने हिम्मत बंधाई

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आसमा खातून 


पटना दीघा की आसमा खातून एसडीएम बनने जा रही हैं. इनके पिता अशरफ अली की चिकन शॉप की दुकान है. आसमा की इसी साल 12 मार्च को शादी हुई है. हज भवन कोचिंग से बीपीएससी की तैयारी शुरू की. बीच में हिम्मत हारी, फिर पिता ने हौसला बढ़ाया. मेहनत की और एक साधारण परिवार से आने वाली आसमा ने बुलंदी को छू लिया.

वह कहती हैं औरतों को पर्दा के नाम पर आगे नहीं बढ़ने दिया जाता है. इस्लाम महिलाओं को आगे बढ़ने से नहीं रोकता, शरीयत के दायरे में रह कर काम किया जा सकता है.

मैं एक बार तो हिम्मत हार गई थी

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नूरजहां 


दरभंगा लहेरिया सराय की नूरजहां कहती हैं कि व्यक्तित्व निखार में हज भवन कोचिंग का बड़ा योगदान है. एक बार तो मैं हार गयी थी, शायद मैं इस लायक नहीं हूं. लेकिन यहां की निगरानी ने जुनून भरने का काम किया. लड़कियों से कहना चाहूंगी कि हार्डवर्क से सफलता मिलती है. मेरे लिए यह बड़ी कामयाबी है. लड़कियों की तरक्की से समाज की सोच बदलेगी. यह सफलता महिलाओं को प्रेरित करने का काम करेगा.

पटना खाजपुरा की ऐमन फातिमा के पिता सैयद मशहूद आलम प्राइवेट जॉब में हैं. छह से सात घंटा उन्होंने पढ़ाई की. वह कहती हैं पहला कदम है, आगे और मुकाम खुलेगा. मुस्लिम महिलाओं की यह सफलता एग्जांपल सेट करेगा, न सिर्फ लड़कियों के लिए, लड़कों के लिए भी.