असमः मध्यस्थता के जरिए अदालतों में लंबित मामलों को कम कर रही हैं शहनाज रहमान

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
 शहनाज रहमान
शहनाज रहमान

 

दौलत रहमान/ गुवाहाटी

अधिवक्ता शहनाज रहमान के लिए वकालत करना केवल अदालत कक्षों की चारदीवारी के भीतर खुद को सीमित रखने, बहस करने और न्यायाधीशों को अपने मुवक्किलों के पक्ष में निर्णय देने के लिए मनाने के बारे में नहीं है. रहमान विभिन्न प्लेटफार्मों पर काम कर रही हैं ताकि लोगों को विशेष रूप से गरीब और हाशिए के वर्गों को भारतीय कानूनी प्रणाली के सकारात्मक लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके.

गुवाहाटी उच्च न्यायालय और निचली अदालतों में अभ्यास करने के बाद, शहनाज़ रहमान ने वर्ष 2012में 'मध्यस्थता' पर प्रशिक्षण प्राप्त किया था. तब से वह अब तक गुवाहाटी उच्च न्यायालय और उसके अधीनस्थ न्यायालयों में मध्यस्थ रही हैं.

रहमान कहती हैं, "मध्यस्थता एक वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) प्रणाली है. यह बहुत ही कम समय के भीतर अदालत के बाहर कानूनी विवादों के निपटारे के लिए एक दिलचस्प प्रक्रिया है. आज के हालात में यह जोर पकड़ रहा है.

लंबे समय से लंबित मामलों का निपटारा बहुत ही कम समय में किया जाता है. एक मध्यस्थ होने के नाते, जब दो पक्षों के बीच किसी मामले का आपसी सहमति से निपटारा हो जाता है और वह भी इतने कम समय में हो जाता है, तो मुझे बहुत खुशी के साथ-साथ उत्साहित भी होता है. मैं पिछले 10वर्षों में असम में संपत्ति विवादों, वैवाहिक और पारिवारिक कलह और अन्य कानूनी विवादों के कई मामलों को मध्यस्थता के माध्यम से हल करने में बहुत खुश हूं.”

आवाज-द वॉयस के साथ एक साक्षात्कार में शहनाज रहमान कहती हैं कि एक मध्यस्थ की जिम्मेदारी ने उन्हें असम के आंतरिक और ग्रामीण हिस्सों में शिविर आयोजित करके आम लोगों के बीच कानूनी जागरूकता पैदा करने का अवसर दिया है. इस तरह के जागरूकता शिविर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, एक गैर सरकारी संगठन द्वारा आयोजित किए जा रहे हैं.

रहमान ने लोक अदालतों में सुलहकर्ता के रूप में भी काम किया है. "न्यायपालिका में ध्यान प्रणाली मेरे लिए अधिक दिलचस्प लगती है क्योंकि मैं कॉलेज में एडीआर विषय भी पढ़ा रही हूं और छात्रों को उनकी व्यावहारिक कक्षाओं के लिए लोक अदालतों में ले जाती हूं," वह कहती हैं. वर्ष 1995में शहनाज रहमान बीआरएम सरकार में शामिल हुईं. लॉ कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर वह आज तक कॉलेज में पढ़ा रही हैं.

रहमान कहती हैं, “शिक्षण मेरा जुनून है क्योंकि यह मुझे ऐसे वकील पेश करने का अवसर देता है जो भविष्य में देश के कानूनों को कायम रख सकते हैं. यह मेरे लिए एक तरह का स्ट्रेस बस्टर है. चूंकि लॉ कोर्स अब पांच साल का प्रोफेशनल कोर्स है, इसलिए इस कोर्स में शामिल होने वाले छात्र लॉ को करियर बनाने के बारे में गंभीर हैं. उन्हें पास आउट होने के बाद कानूनी पेशे से जुड़ते हुए देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है. मुझे यह कहते हुए गर्व होता है कि जब भी मैं उन्हें अदालत में देखता हूं तो वे मेरे छात्र होते हैं.”

गुवाहाटी में मुस्लिम परिवार में जन्मी और पली-बढ़ी शहनाज रहमान ने अपनी शुरुआती स्कूली शिक्षा लोरेटो कॉन्वेंट, शिलांग में की और फिर सेंट मैरी कॉन्वेंट, गुवाहाटी से अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखी. उन्होंने कॉटन कॉलेज (अब कॉटन यूनिवर्सिटी) से राजनीति विज्ञान में सम्मान के साथ स्नातक किया.

उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज से स्नातकोत्तर किया और फिर गुवाहाटी विश्वविद्यालय से "बांग्लादेश के उदय के बाद से भारत-पाक संबंध (1971-1981)" विषय पर पीएचडी प्राप्त की. उन्होंने लॉ कॉलेज, गुवाहाटी वर्ष 1986में बीआरएम सरकार से एलएलबी पूरा किया.

शहनाज रहमान असम राज्य महिला आयोग की संस्थापक सदस्यों में से एक थीं और तीन बार सदस्य रही थीं. चूंकि महिला सशक्तिकरण हमेशा उनके दिल के करीब एक मुद्दा था, रहमान ने महिलाओं के कल्याण के लिए विशेष रूप से गरीबों और हाशिए के लोगों के लिए आयोग में अपने पद का इस्तेमाल किया.

असम राज्य महिला आयोग के सदस्य के रूप में मेरे पहले कार्यकाल के दौरान रहमान ने कानूनी सलाहकार समिति की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसमें एक वकील, पुलिस अधिकारी, डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ अध्यक्ष के साथ सप्ताह में एक बार महिलाओं के खिलाफ शिकायत के मामलों को लेने के लिए बैठना शामिल था. पीड़ित. असम विच हंटिंग (निषेध, रोकथाम और संरक्षण) अधिनियम जैसे कुछ कानून भी असम राज्य महिला आयोग द्वारा तैयार किए गए थे.

वर्ष 2017में रहमान को राज्य पुलिस जवाबदेही आयोग, असम के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था. अपने कार्यकाल के दौरान बी.पी. कटकी, पूर्व न्यायाधीश गौहाटी उच्च न्यायालय, राज्य पुलिस जवाबदेही आयोग, असम ने असम के अधिकांश जिलों में पुलिस थानों का दौरा किया और कानूनी जागरूकता शिविर आयोजित किए.

शहनाज रहमान, जिन्होंने अंतर-धार्मिक विवाह किया था, कहती हैं किअसम में धर्म कभी भी कोई मुद्दा नहीं होता है. वह कहती हैं, “मेरे मामले में हमारी शादी सफल रही क्योंकि यह एक दूसरे के विश्वास और प्रथाओं के प्रति सहिष्णुता और सम्मान पर आधारित थी. हमारे पास एक खुला दिमाग था जिसने हमें धार्मिक विश्वासों के मतभेदों के बावजूद रिश्ते के माध्यम से पालने में मदद की."