असम की मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री अनवरा तैमूर, जिन्हें सबसे अशांत दौर में दी गई थी जिम्मेदारी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 18-09-2022
अनवरा तैमूर
अनवरा तैमूर

 

डॉ. अभिषेक कुमार सिंह

आज मदरसों के सर्वे को लेकर बहुत शोर-शराबा हो रहा है और एक तरह से मुस्लिमों के प्रति अविश्वास का माहौल बनाया जा रहा है. लेकिन असम जैसे राज्य में एक महिला, वह भी मुस्लिम महिला का मुख्यमंत्री बनना अपने-आप में भरोसा दिलाती है कि भारत के लोकतंत्र में बहुत शक्ति है.

वह नाम है अनवरा तैमूर का जो असम मेंसियासी संकट के दौर में कांग्रेस के लिए बड़ा सहारा बनकर उभरी थीं.

अनवरा तैमूर का जन्म 24 नवंबर, 1936 को असम में ही हुआ था. उनकी पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से हुई. इकोनॉमिक्स में पढ़ाई करने के बाद अनवरा तैमूर ने जोरहाट के गर्ल्स कॉलेज में बतौर प्रोफेसर भी अपनी सेवाएं दीं.

जब असम आंदोलन की आग में झुलस रहा था तब अनवरा तैमूर को सीएम की गद्दी संभालने का मौका मिला था. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और ऑल असम गण परिषद के नेतृत्व में मूल निवासी बनाम अवैध शरणार्थियों की लड़ाई चल रही थी. असम में पूरी तरह अशांति थी. केंद्र में जनता पार्टी का असर खत्म हो चुका था और इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बन चुकी थीं.

असम में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था और असम के लोगों में कांग्रेस के प्रति गुस्सा पनप रहा था. इस आक्रोश को शांत करने के मकसद से कांग्रेस ने दिसंबर, 1980 में अनवरा तैमूर को असम के मुख्यमंत्री की कमान सौंपी.

अनवरा तैमूर का समाज में काफी सम्मान था. वो एक स्थानीय निवासी होने के साथ-साथ मुस्लिम भी थीं. जो लोग आंदोलन कर रहे थे वो भी मूल निवासी थे और आंदोलन मुख्य रूप से बांग्लादेश से आए लोगों के खिलाफ था, जिनमें बड़ी संख्या मुस्लिमों की ही थी.

कहा जाता है कि अनवरा तैमूर को सत्ता देकर जहां स्थानीय लोगों का गुस्सा शांत करने की कोशिश की गई , वहीं माइग्रेंट्स मुस्लिमों को साधने के रूप में भी इस कदम को देखा गया. इन तमाम समीकरणों और हालातों को देखते हुए अनवरा तैमूर ने असम की कुर्सी संभाली.

 

हलांकि अनवरा तैमूर उस कुरसी पर एक साल भी काबिज नहीं रह सकीं और जून 1981 में असम में फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. इसके बाद जब एक बार फिर असम में कांग्रेस की सरकार बनी तो अनवरा तैमूर को पीडब्ल्यूडी जैसा अहम मंत्रालय दिया गया. दूसरी तरफ इंदिरा गांधी की हत्या के बाद केंद्र की सत्ता में राजीव गांधी आए और 1985 में असम अकॉर्ड के साथ आंदोलन भी खत्म हो गया.

अनवरा तैमूर ने अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत 1972 में विधायक बनाने से शुरू किया था.  इसके बाद 1978, 1983 और 1991 में भी उन्हें चुनाव में जीत हांसिल हुई. अनवरा तैमूर को राज्यसभा के लिए 1988 में भेजा गया. इसके उपरांत 2004 में भी वह राज्यसभा सांसद बनीं.

इस तरह अनवरा तैमूर ने असम से लेकर केंद्र तक की राजनीति का सफर तय किया. उनका राजनीतिक जीवन कांग्रेस के साथ गुजरा, लेकिन आखिरी वक्त में, 2011 में वह बदरूद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ जुड़ गईं.

उन्होंने इस पार्टी से चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन उनके लिए प्रचार जरूर किया. अनवरा तैमूर ने 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद 2016 के असम विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के प्रचार किया, उम्रदराज होने के बावजूद वो मौलाना बदरुद्दीन के साथ मिलकर जनता के बीच जाती रहीं.

2020 में जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस की गिरफ्त में थी, उसी बीच सितंबर के महीने में अनवरा तैमूर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.