ड्रॉपआउट के मामले में मुस्लिम लड़कियों के आंकड़े चिंताजनक: इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव सेंटर
आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
मुस्लिम बच्चियों के स्कूल छोड़ने की दर सबसे अधिक है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है. ड्रॉपआउट दर ग्यारह साल की उम्र से शुरू होती है. जो कभी स्कूल नहीं गई उन्हें ड्रॉपआउट नहीं माना जाता, जबकि मौजूदा दौर में इसे भी शामिल करने की जरूरत है.
सरकार का मानना है कि 8वीं और 10वीं में स्वेच्छा से ड्रॉप आउट होने वालों को ड्रॉपआउट नहीं माना जाएगा. मगर उन्हें भी ड्रॉपआउट मानने की जरूरत है. दिल्ली के ओखला स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव सेंटर द्वारा रविवार को ड्रॉप-आउट पर पुस्तक के रूप में एक शोध दस्तावेज के विमोचन कार्यक्रम में बुद्धिजीवियांे ने ये बातें कहीं.
कार्यक्रम में मौजूद प्रख्यात बुद्धिजीवी प्रो. अमिताभ कुंडू ने कही कि ड्रॉप-आउट पर पुस्तक प्रकाशित करके बहुत ही अच्छा काम किया गया है. ये समस्या मुश्किलों से भरा हुआ है. इस पर आसानी से शोध नहीं किया जा सकता.
इन आंकड़ों से पता चलता है कि मुस्लिम समुदाय को शिक्षा प्राप्त करने में क्या दिक्कतें आ रही हैं. कहां दिक्कत है. बच्चे पढ़ाई क्यों छोड़ रहे हैं. शोध का काम रुबीना तबस्सुम ने की हैं.
शैक्षणिक स्थिति का आकलन
जामिया हमदर्द के वाइस चांसलर प्रो. अफशार आलम ने आईओएस के इस काम को असाधारण बताते हुए कहा कि यह समय की जरूरत है. इस आंकड़े के सामने आने के बाद मुसलमानों की शैक्षणिक स्थिति का आकलन करना काफी आसान होगा.
जाने-माने धार्मिक विद्वान मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने ऑनलाइन संबोधन में कहा कि इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज ने हमेशा इन मुद्दों पर शोध दस्तावेज और डेटा प्रकाशित किए हैं, जो मुस्लिम उम्माह के लिए नीति बनाने में मदद करते हैं. यह उपलब्धि भी उसकी कड़ी है.
मुसलमानों में ड्रॉपआउट दर अधिक
आजम कैंपस यूनिवर्सिटी पुणे के चांसलर डॉ. पीए इनामदार ने कहा कि मुसलमानों में शिक्षा की दर बहुत बढ़ गई है, लेकिन मुसलमानों में ड्रॉपआउट दर भी बहुत अधिक है. आईओएस द्वारा इस डेटा को प्रकाशित किए जाने के बाद ड्रॉपआउट और ड्रॉप आउट का आकलन करने में मदद मिलेगी. ड्रॉप आउट को रोकने के लिए कदम उठाएं.
आईओएस का ध्यान ऐसे मुद्दों पर
आईओएस के वाइस चेयरमैन प्रोफेसर अफजल वानी ने अपने संबोधन में रुबीना तबस्सुम को शोध दस्तावेज तैयार करने के लिए बधाई दी और कहा कि आईओएस ने हमेशा उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की है जो मुस्लिम उम्माह के शैक्षिक विकास की ओर ले जा सकते हैं और यदि मुद्दों को कवर किया जाता है, तो वे बाधा बन जाते हैं.
इसके अलावा डॉ. तबस्सुम शेख, प्रो. नसरीन मुजीब, डॉ. वर्गा पंजाबी, प्रो. मोहम्मद मियां, डॉ. एन. राजा हुसैन, डॉ. जून दयाल, प्रो. शोएब अब्दुल्ला और नाज खैर ने अपने विचार व्यक्त किए.
कार्यक्रम का संचालन प्रो. हसीना हाशिया ने किया. इससे पहले समारोह की शुरुआत मौलाना अतहर हुसैन नदवी की कुरान ए पाक की तिलावत से हुई.