अबरार अहमदः संसाधनों के अभाव में भी बने फ्री स्टाइल कुश्ती के चैंपियन

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 17-11-2021
अबरार अहमदः मिट्टी में लड़कर बने चौंपियन
अबरार अहमदः मिट्टी में लड़कर बने चौंपियन

 

सुल्ताना परवीन / पूर्णिया

अगर किसी में जोश, जुनून और लगन हो, तो कोई भी बाधा आदमी की राह को रोक नहीं सकती. इस वाक्य को सच कर दिखाया है पूर्णिया धमदाहा प्रखंड के मीरपुर के रहने वाले मध्यम परिवार के पहलवान मो. अबरार अहमद ने. घोर अभाव में अबरार ने प्रदेश स्तरीय फ्री स्टाइल कुश्ती में 74 किलो वर्ग में 2020 में ब्रांज और 2021 में गोल्ड मैडल जीत कर बिहार चैंपियन कहलाया.

मो. अबरार 74 किलो वर्ग में फ्री स्टाइल कुश्ती लड़ते हैं. पिछले साल 2020 में जनवरी के महीने में स्टेट लेवल चैंपियनशिप में तीसरे स्थान पर रहते हुए ब्रांज जीता था. उसके बाद और कड़ी मेहनत की और इस साल 2121 में फ्री स्टाइल में बिहार चौंपियन बने. वो कहते हैं कि हम बस लगातार मेहनत कर रहे हैं. कोशिश कर रहे हैं कि बेहतर खेल का प्रदर्शन करें और एक दिन देश के लिए खेलें.

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अबरार अहमद


पिता ही हैं कोच

सूदूर गांव मीरपुर के रहने वाले मो. अबरार अहमद के पिता मो. हफीजुर रहमान पेशे से वकील है. प्रखंड स्तरीय अदालत में वकालत करते हैं. हफीजुर रहमान को भी पहलवानी का शौक है. पहले वो भी कुश्ती लड़ते थे. मो. अबरार कहते हैं कि पैसे के अभाव में पिता से कुश्ती के दांव-पैंच सीखते रहे हैं. आज तक कभी किसी कोच के साथ रहकर कुश्ती के गुर नहीं सीख सका. वही सीखा, जो पिता ने सिखाया.

मिट्टी में लड़कर बने चौंपियन

मो. अबरार अहमद कहते हैं कि जब स्टेट खेलते हैं, तो मैट पर कश्ती लड़ना पड़ता है. लेकिन हमारा अभ्यास तो मिट्टी पर कुश्ती लड़ने का है. इसलिए बहुत परेशानी होती है. हम जैसे पहलवान के लिए न तो जिला स्तर पर कोई सुविधा है और न ही प्रदेश सरकार ही कोई सुविधा दे रही है. अगर मैट पर प्रैक्टिस करें, तो बिहार नहीं, बल्कि नेशनल जीत कर दिखा सकते हैं. अबरार के पिता हफीजुर रहमान कहते हैं कि हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि बेटे को मैट खरीद कर दे सकें। इसलिए मिट्टी पर लड़ने का अभ्यास करता है.

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अबरार अहमद


खाने पर खर्च हर महीने में 40 हजार

अबरार कहते हैं कि कुश्ती लड़ने के लिए अच्छा खाना बहुत जरूरी है. इसलिए हर दिन पांच लीटर दूध पीते हैं. 100 पीस बादाम को पानी में भिगोकर खाते हैं. हर चार-पांच दिन में आधा किलो काजू, आधा किलो मुनक्का के अलावा घी, चना और गुड का सेवन करते हैं. इस खाने पर करीब महीने में 40 हजार खर्च होते हैं, जिसमें से कुछ तो घर वाले मदद करते हैं और कुछ दंगल लड़कर कमाते हैं. किसी तरह इन जरूरतों को पूरा करते हैं. पिता हफीजुर रहमान कहते हैं कि हमारी आमदनी इन लोगों की जरूरत पूरी करने लायक नहीं है. उसके बाद भी हम पूरी कोशिश करते हैं इनकी जरूरतों को पूरा करें.

पढ़ाई भी और कंश्ती भी

24 साल के मो. अबरार अहमद ने जीव विज्ञान से बीएससी किया है. इसके बाद डॉक्टर बनने के लिए नीट की परीक्षा भी दी. लेकिन सफलता नहीं मिली. पढ़ने के साथ ही कुश्ती भी लड़ते रहे. पिता कहते हैं कि अबरार ने पढ़ाई में कमी नहीं की. ग्रेजुएट हो चुका है। आगे भी पढ़ना जारी है. प्रतियोगिता परीक्षा की भी तैयारी कर रहा है.

शोल्ड डिस्लोकेटने के बावजूद

मो. अबरार अहमद के कंधे में तकलीफ है. उनको शोल्डर डिस्लोकेट हो गया है. डॉक्टर से ऑपरेशन करने की सलाह दी है. लेकिन पैसे नहीं होने के कारण ऑपरेशन नहीं करा सके हैं. हर जगह आवेदन दिया कि कहीं से कोई मदद मिले,  लेकिन सरकार और जिला प्रशासन ने कोई मदद नहीं दी. इसलिए अभी तक ऑपरेशन नहीं करा सके हैं.

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अबरार अहमद 


वो कहते हैं कि ये उनको जुनून ही है कि वो शोल्डर डिस्लोकेट होने के बाद भी कश्ती लड़ भी रहे हैं और जीत भी रहे हैं. वो कहते हैं कि 2021 के जनवरी में गोल्ड जीता. मार्च में शोल्डर में समस्या हुई. अभी एक नवंबर को दानापुर में फिर स्टेट चौंपियनशिप में हिस्सा लिया. शोल्डर डिस्लोकेशन के बाद भी ब्रांज तक पहुंच चुके थे लेकिन शोल्डर डिस्लोकेशन के कारण मैच को बीच में ही छोड़ना पड़ा. अगर समस्या नहीं होती, तो फिर गोल्ड हासिल करता.

देश के लिए खेलना ही सपना

मो. अबरार अहमद कहते हैं कि एक ही सपना है कि देश के लिए खेलूं. इसके लिए अभाव से लड़ते हुए कुश्ती लड़ रहा हूं. वो कहते हैं कि बहुत से लड़के हैं, जो कुछ करना चाहते हैं, लेकिन सुविधा नहीं होने के कारण कुछ नहीं पाते हैं. ये उनको जुनून ही है कि हर स्तर पर लड़ कर आगे बढ़ रहे हैं. अगर उनको सुविधा मिले, तो देश ही नहीं, बल्कि विदेश की धरती पर लड़ कर देश का नाम रोशन कर सकते हैं.