क्यों काटते हो पेड़ !

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 2 Years ago
क्यों काटते हो पेड़ !
क्यों काटते हो पेड़ !

 

पर्यावरण दिवस पर विशेष 

मलिक असगर हाशमी

 
कुछ दिनों पहले की बात है. देश में कोरोना मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी होने के कारण कई गांवों में लोग पेड़ों पर जा बैठे. उन्हें लगा कि पेड़ों पर या इसके नीचे बैठने से उनके शरीर के अंदर आॅक्सीजन का स्तर बना रहेगा. 
 
मेडिकल साइंस में शरीर में ऑक्सीजन घटने की वजह प्राकृतिक नहीं है. अगर यह सत्य होता. पेड़ों की वजह से शरीर के भीतर ऑक्सीजन का स्तर ठीक किया जा सकता, तब भी देश-दुनिया में पेड़ों पर और इसके नीचे बैठने को लेकर मारा मारी मची होती. क्योंकि हम पेड़ों को छोड़ कहां रहे हैं ! मौका मिलते ही काट देते हैं. कभी सड़कें बनाने के नाम पर तो कभी भवन खड़ा करने के नाम पर. 
 
पर्यावरण कार्यकर्ता ज्ञानेंद्र रावत की मानें तो 2016-17 में केवल हरियाणा में सड़क चैड़ीकरण के नाम पर 45,000 से अधिक पेड़ों का सफाया किया गया. कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के मुताबिक, वायुमंडल का तापमान बढ़ने से पेड़ों की कार्बन डाइआॅक्साइड आदि गैसों को सोखने की क्षमता कम हो जाती है.
 
और वायुमंडल का तापमान बढ़ता कैसे है? नदियों, तालाबों, पहाड़ों और पेड़ों को समाप्त कर. अमेजन के जंगल सिकुड़ रहे हैं. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. जलवायु परिवर्तन अभी पूरी दुनिया के लिए अहम मुद्दा बना हुआ है. इसके बावजूद हम पेड़ों को काटने से बाज नहीं आ रहे हैं.
 
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि 1990 से 2005 के दौरान हर मिनट पर 9 हेक्टेयर जंगलों का सफाया किया गया. इस अवधि में 49 लाख हेक्टेयर में वनों की कटाई की गई.पर्यावरणविद ज्ञानेंद्र रावत ने अपने लेख-‘देश में घटते पेड.’ में पेड़ों की कटाई की बड़ी भयानक तस्वीर पेश की है.
 
उनके अनुसार, दुनिया में प्रत्येक वर्ष करीब 15 अरब पेड़ काटे जाते हैं. विश्व में पेड़ों की संख्या 46 प्रतिशत तक कम हुई है. 2017 तक दुनिया में 301 लाख वर्ग में जंगल बचा था. यह धरती का कुल 23 प्रतिशत है. एक रिपोर्ट कहती है कि संतुलित पर्यावरण के लिए 33 प्रतिशत पेड़ों की उपलब्धता जरूरी है.
 
मगर असंतुलित पर्यावरण से पैदा होने वाली तमाम दिक्कतें झेलने के बावजूद अभी तक हमारे होश ठिकाने नहीं आए हैं. दुनिया के जंगलों का 10 वां हिस्सा केवल 20 वर्षों के दरम्यान काटा गया. भारत में करीब 19 करोड़ 626 लाख एकड़ में वन क्षेत्र है, जिनमें से 115 लाख एकड़ पर अवैध कब्जा है.
 
इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु ने देश के वन क्षेत्र को लेकर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. उसके अनुसार, पिछले एक दशक में उत्तर, मध्य एवं दक्षिण-पश्चिम घाटों पर क्रमशः 2.84,4.38 एवं 5.77 प्रतिशत ही पेड़ बचे हैं. देश-दुनिया में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से सैंकड़ों प्रकार के वन्य जीव विलुप्त हो गए, जिसकी वजह से भी पर्यावरण असंतुलन बढ़ा है.
 
बहरहाल, यह कहना तो कतई ठीक नहीं होगा कि विकास के लिए पेड़ों को न काटा जाए. मगर ऐसे वक्त  ख्याल रखना जरूरी है कि जितने पेड़ काटे जाएं, उससे कहीं अधिक अनुपात मंे पेड़ लगाए जाएं. अपने देश में नए पेड़ लगाने और पर्यावरण को बचाने के लिए वन क्षतिपूर्ति कोष बनाया गया है.
 
पिछले वर्ष तक कहते हैं इस कोष में 40 हजार करोड़ रूपये से अधिक की राशि पड़ी हुई थी. विकास के नाम पर यदि कोई प्रदेश पेड़ों की कटाई करता है तो क्षतिपूर्ति के लिए कोष में निर्धारित राशि जमा करानी होती है. यदि आज भी कोष में अपार धनराशि बिना उपयोग पड़ी है, तो इसका अर्थ है कि हम पेड़ों की कटाई और पर्यावरण को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.
 
यह बड़ी खतरनाक प्रवृति है. ऐसी लापरवाही के दुष्परिणाम में हमें तो भोगने की पड़ेंगे हमारी नस्लांे को भी भारी नुक्सान उठाना पड़ेगा, जो कतई ठीक नही.