जहां बंदूकें गरजती हैं, वहां लोग भूखे मरते हैं

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 29-05-2022
जहां बंदूकें गरजती हैं, वहां लोग भूखे मरते हैं
जहां बंदूकें गरजती हैं, वहां लोग भूखे मरते हैं

 

मेहमान का पन्ना
 
हरजिंदर

अगर आप यू-ट्यूब वीडियो देखते हैं तो आपकी नजरों से मदद की ऐसी अपील जरूर गुजरी होगी जिसमें बताया जाता है कि पूरा अफगानिस्तान इस समय भुखमरी के कगार पर है. उसकी मदद करें. लेकिन अफगानिस्तान अकेला देश नहीं है जिसे अनाज का संकट परेशान कर रहा है. अन्न संकट की वजह से ज्यादातर देशों में महंगाई भी बढ़ी है, जिसने परेशानियों में खासा इजाफा कर दिया है. पूरे एशिया और अफ्रीका में ऐसे देशों की संख्या काफी बड़ी है, जबकि संकट का दबाव अमेरिका और यूरोप के देश भी झेल रहे हैं.

इस संकट ने श्रीलंका को कहां तक पहंुचा दिया इसे हम देख ही चुके हैं. पाकिस्तान में अगर इमरान खान की सरकार गिरी तो इसका एक बड़ा कारण वहां की बेतहाशा महंगाई भी थी.
 
यहां तक कि ईरान में भी पिछले दिनों यही देखने को मिला. वहां ब्रेड और खाद्य तेलों के दाम बढ़े तो दक्षिण-पश्चिमी प्रांत खुजेस्तान में कईं जगह प्रदर्शन हुए. कुछ जगह से प्रदर्शनों के हिंसक हो जाने की खबरें भी आईं. मिस्र, ब्राजील, अर्जेंटीना, ट्यूनीसिया तकरीबन हर जगह यही हाल है. अफ्रीका में जहां खाद्य संकट पहले ही काफी विकराल था, वहां भुखमरी का दायरा बढ़ता जा रहा है.
 
यूक्रेन और रूस के बीच इस समय जो बंदूकें गरज रही हैं वे ही इस संकट का सबसे बड़ा कारण बताई जा रही हैं. मसलन मिस्र को ही देखें. मिस्र 80 फीसदी गेहूं का आयात यूक्रेन से करता है.
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जंग के कारण यूक्रेन में इस बार उत्पादन 35 फीसदी कम हुआ है. और जो हुआ भी है उसे भी वह कहीं भेजने की स्थिति में नहीं है. काले सागर के वे सारे रास्ते रूस ने बंद कर दिए हैं जहां से यूक्रेन अपना अनाज दुनिया भर में भेजा करता था. रूस और यूक्रेन न सिर्फ अनाज बल्कि सूरजमुखी, कईं तरह के तिलहन और खाद्य तेलों के बड़े निर्यातक हैं और फिलहाल यह सब बंद है.
 
दुनिया का बाजार जिस तरह से चलता है उसमें किसी भी चीज की थोड़ी सी कमीं दामों को बेतहाशा बढ़ा देती है. इसलिए जहां अनाज बाजार में उपलब्ध भी है वहां भी वह गरीबों की पहंुच से दूर हो रहा है.
 
महंगाई सिर्फ गरीबों के लिए ही दिक्कत नहीं खड़ी करती उन सबके लिए भी करती है जो गरीबों की मदद के लिए आगे आते हैं. अब उन्हें इसके लिए ज्यादा खर्च करना पड़ता है.
 
लेकिन सिर्फ रूस यूक्रेन की जंग ही पूरी दुनिया के संकट की गुनहगार नहीं है. अगर हम अफगानिस्तान को ही ले तो वहां इस जंग से काफी पहले ही खाद्य संकट खड़ा हो चुका था. यही हाल सीरिया का भी है और सोमालिया का भी.
 
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संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि भुखमरी के कगार पर खड़ी दुनिया की 60 फीसदी आबादी ऐसे देशों में रहती है जो किसी न किसी तरह तरह की जंग या टकराव से गुजर रहे हैं, या फिर गुजर चुके हैं. कईं जगहों पर कुछ देश आपस में लड़ रहे हैं तो कुछ जगहों पर गृहयुद्ध लोगों के लिए मुसीबत खड़ी कर रहा है.
 
बेशक ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे हमारे सामने खड़े हैं लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि फिलहाल जो चीज दुनिया को भुखमरी की ओर ले जा रही है वह दुनिया की राजनीति ही है.
 
देशों की सीमाओं पर या उनके भीतर जब बंदूके गरजती हैं तो वे सिर्फ उन्हीं लोगों को ही नहीं मारती जो उनके सामने होते हैं, वे उससे कहीं ज्यादा लोगों को भूखा मारती हैं.
 
जिन देशों पर खाद्य संकट का कहर टूटा है, उन्हें संकट से उबारने के लिए कोशिश भी की जानी चाहिए और उनके लिए अपील भी जारी होनी चाहिए, लेकिन इससे ज्यादा कोशिश यह होनी चाहिए कि दुनिया भर में चली रही छोटी-बड़ी, स्थानीय-आपसी जंग बंद हों. इसके लिए भी सभी को अपील जारी करनी चाहिए. अगर हम इन लड़ाइयों को रोक सके तो बहुत से लोगों को भूखा मरने से भी बचा सकेंगे.
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)