स्मतिशेषः युसूफ साहब का नाम दिलीप नहीं वासुदेव भी हो सकता था

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 07-07-2021
दिलीप कुमार अपने अभिनय में कभी लाउड नहीं हुए
दिलीप कुमार अपने अभिनय में कभी लाउड नहीं हुए

 

स्मृति शेष । दिलीप कुमार

अरविंद कुमार

हिंदी फिल्मों के बेताज बादशाह ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार के भीतर कई दिलीप कुमार शामिल थे. 1944 में बनी उनकी पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’से लेकर 1980 के दशक में बनी ‘शक्ति’फिल्म तक दिलीप कुमार को कई रूपों में देखा जा सकता है, लेकिन युसूफ खान से वह दिलीप कुमार कैसे बने, इसका एक रोचक किस्सा है. वैसे, सायरा बानो ने 1960 के दशक में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ को अपने इंटरव्यू में कहा था कि दिलीप कुमार का नाम अमिया चक्रवर्ती ने दिया था जो ‘ज्वार भाटा’के निर्देशक थे, जिसके कारण लोगों में धारणा बनी कि दिलीप कुमार का नाम अमिया चक्रवर्ती ने  दिया था लेकिन सच्चाई इसके उलट है.

सच यह है दिलीप कुमार का नाम हिंदी के मशहूर लेखक भगवती चरण वर्मा ने  दिया था जिनके चर्चित उपन्यास ‘चित्रलेखा’पर उस जमाने में फिल्म बनी थी, जिसमे उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री महताब थी. बाद में,‘चित्रलेखा’ दोबारा बनी जिसमें मीना कुमारी थे. दरअसल,भगवती बाबू का उपन्यास इतना चर्चित हुआ कि ‘बॉम्बे टॉकीज’की मालकिन और अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री देविका रानी ने उस उपन्यास को पढ़ने के बाद भगवती बाबू को पत्र लिखकर उन्हें फिल्मों में स्क्रिप्ट लिखने का ऑफर दिया.

1942 में भगवती बाबू मुंबई आए. भगवती चरण वर्मा रचनावली के अनुसार भगवती बाबू ने बांबे टाकीज के लिए पहली फिल्म ‘किस्मत’लिखी,जिसमें अशोक कुमार थे. 1944 में बॉम्बे टॉकीज के टूटने के बाद एक नए की अभिनेता की तलाश शुरू हुई क्योंकि बॉम्बे टॉकीज के सुपरस्टार अशोक कुमार ने अपने कुछ अन्य सहयोगियों के साथ ‘फिल्मिस्तान’नाम से एक अलग फिल्म कंपनी खोली.

बॉम्बे टॉकीज के लिए भगवती बाबू ने अगली फिल्म ‘ज्वार भाटा’की पटकथा,संवाद और कहानी लिखना प्रारंभ किया. अमिया चक्रवर्ती इस फिल्म का निर्देशन कर रहे थे और उसके लिए हीरो की तलाश हुई. उन्हें एक ऐसा युवक मिल ही गया,जो टॉकीज में अशोक कुमार का स्थान ले सकता था और युवक का नाम था युसूफ खान.

पहली बार उस युवक का स्क्रीन टेस्ट लिया गया तो भगवती भी वहीं मौजूद थे. स्क्रीन टेस्ट सफल रहा और युसूफ खान को ज्वार भाटा के लिए रोल मिल गया, तभी एक समस्या उठी कि फिल्म के लिए उनका नाम क्या हो. देविका रानी ने वर्मा जी से पूछा कि क्या वे किसी हिंदी नाम का सुझाव दे सकते हैं तभी भगवती बाबू के मुंह से अनायास दिलीप कुमार नाम निकल पड़ा और यह नाम देविका रानी को पसंद आ गया.

‘ज्वार भाटा’बॉक्स ऑफिस पर चल निकली और उसके बाद भगवती बाबू ने दिलीप कुमार को लेकर दो और फिल्में ‘प्रतिमा’ और ‘मिलन’लिखी जो अत्यंत सफल हुईं. फिर दिलीप कुमार के महानायक बनने का सफर शुरू हुआ.

दिलीप कुमार ने 1970 में अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने पिटाई के डर से अपना नाम दिलीप कुमार रख लिया था. दरअसल उस जमाने में फिल्मों में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था. लोग चोरी-छिपे फिल्मों में काम करते थे. घरवालों को नहीं बताते थे. उस इंटरव्यू में दिलीप कुमार ने स्वीकार किया है कि उनके वालिद फिल्मों में काम करने के खिलाफ थे और वह पृथ्वीराज कपूर के पिता विश्वेश्वर कपूर के मित्र थे. विश्वेश्वर कपूर इस बात की अक्सर शिकायत करते थे कि तुम्हारा बेटा यह सब क्या करता रहता है.

दिलीप कुमार ने उस इंटरव्यू में कहा है कि उनके लिए तीन नामों पर विचार हुआ, जिसमें युसूफ खान के अलावा वासुदेव और दिलीप कुमार था तो उन्होंने कहा कि युसूफ खान को छोड़कर उनका कोई भी नाम रख दिया जाए. इस तरह युसूफ खान से दिलीप कुमार बने. ‘ज्वार भाटा’का जब पोस्टर आया तो उन्होंने उसमे अपना नाम दिलीप कुमार देखा.

बहरहाल, एक सवाल यह भी है कि आज जब दिलीफ कुमार नहीं रहे, तो किस दिलीप कुमार को याद किया जाए?

पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ के दिलीप कुमार, ‘मधुमति’ के दिलीप कुमार, ‘यहूदी’,‘आन’,‘दीदार’  के दिलीप कुमार, ‘देवदास’के दिलीप कुमार, ‘अंदाज’और ‘नया दौर’के दिलीप कुमार. आखिर, ‘मुगले आजम’के दिलीप कुमार, गंगा जमुना और ‘संघर्ष’के दिलीप कुमार से अलग थे और यह वाले दिलीप ‘गोपी’, ‘राम और श्याम’, ‘आदमी’के दिलीप कुमार ‘सगीना महतो’ के दिलीप कुमार या फिर ‘शक्ति’के?

एक दिलीप कुमार में कई दिलीप कुमार थे.