कांग्रेस को यह क्या हो गया है ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-07-2022
कांग्रेस को यह क्या हो गया है ?
कांग्रेस को यह क्या हो गया है ?

 

डॉ. अनिल कुमार निगम
 
देश में सर्वाधिक अवधि तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी बदहाली के दौर से गुजर रही है. आज सत्‍ता पर विराजमान भाजपा के समक्ष कोई मजबूत विपक्ष खड़े होने का साहस नहीं कर पा रहा. मजबूत लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था के लिए आवश्‍यक है कि वहां का विपक्षसशक्‍त हो, लेकिन कांग्रेस की नीतियां और कार्यप्रणाली ऐसी है कि उसे देश की जनता अपने पास फटकने नहीं देना चाहती.

कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा बेहद लचर एवं जर्जर हो चुका है. यही कारण है कि उत्‍तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए लगभग चार महीने गुजर चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई प्रदेश अध्‍यक्ष नहीं मिला है.
 
वर्तमान में कांग्रेस की राष्‍ट्रीय कार्यकारी अध्‍यक्ष सोनिया गांधी हैं, लेकिन उनका स्‍वास्‍थ्‍य ठीक नही. ऐसे में पार्टी में असली अध्‍यक्ष की भूमिका राहुल गांधी निभाते हैं.
 
रा‍हुल के अपरिपक्‍व एवं असंयमित व्‍यवहार के चलते उनको पार्टी के अंदर और बाहर कोई गंभीरता से नहीं लेता. इसलिए पार्टी वर्तमान में बेहद निष्क्रिय, असंवेदनशील या कहें कि स्‍लीपिंग मोड में जा चुकी है.
 
किसी समय केंद्र के अलावा विभिन्‍न राज्‍यों में कांग्रेस अथवा उसके सहयोग से बनाई हुए सरकारें ही सत्‍ता में होती थीं. आज स्थिति यह  है लोकसभा में कांग्रेस की 53 और राज्‍यसभा में महज 31 सीटें बची हैं.
 
वास्‍तविकता  तो यह है कि कांग्रेस लोकसभा में भाजपा के बाद सबसे बड़ा राजनैतिक दल तो है पर उसे विपक्षी दल का दर्जा भी नहीं दिया जा सकता. अगर राज्‍यों की ओर नजर दौड़ाई जाए तो 28 में दो राज्‍य-राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ ऐसे हैं जहां पर कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली सरकारें हैं. पर यह भी सच है कि राजस्‍थान में पार्टी पूरी तरह से गुटबाजी का शिकार है.
 
वहां की स्थिति बेहद नाजुक है. मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्‍यमंत्री सचिन पायलट के बीच गुटबाजी एवं खींचतान की खबरें प्रायः आती रहती हैं.   
 
इसी वर्ष मार्च में पांच राज्यों-उत्‍तर प्रदेश, उत्‍तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा विधानसभाओं के संपन्‍न चुनावों में कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा.
 
उसके बाद इन राज्‍यों के कांग्रेस अध्‍यक्षों से पार्टी ने इस्‍तीफा ले लिया. उत्‍तर प्रदेश के पूर्व अध्‍यक्ष अजय कुमार लल्‍लू के इस्‍तीफा देने के बाद पार्टी अभी तक नया अध्‍यक्ष नहीं खोज पाई है.
 
कोई भी कद्दावर नेता इस जिम्‍मेदारी को लेना नहीं चाहता. उसे यह बात बखूबी पता है कि कांग्रेस का जनाधार बेहद कमजोर है. पार्टी की निष्क्रियता के चलते उसमें कोई फेरबदल होने की भी संभावना नहीं है. बल्कि चुनावों में हार का ठीकरा उसी के सिर पर फोड़ा जाएगा.
 
सर्वविदित है कि राहुल गांधी जिस तरीके से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ व्‍यवहार करते हैं, उसके चलते पार्टी के अंदर असंतोष व्‍याप्‍त है. पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के साथ उनका व्‍यवहार आज भी बड़ी राजनीतिक गलती के रूप में दर्ज है.
 
संसद के अंदर और यहां तक कि सोशल मीडिया में भी उनका व्‍यवहार एक सधे और परिपक्‍व राजनीतिज्ञ की तरह नहीं होता. हर हार के बाद वह एक खीझे हुए व्यक्ति की तरह व्‍यवहार करते हैं. पार्टी के अंदर और बाहर उनका माखौल उड़ाने वालों की संख्‍या लगातार बढ़ी रही है.
 
लगभग हर राज्‍य में कांग्रेस के अंदर दो से तीन गुट बन चुके हैं. दो गुट तो प्रायः स्‍पष्‍ट हैं. एक गुट बुजुर्गवार नेताओं का है. दूसरा नई पीढ़ी के नेताओं का. बुजुर्गवार नेता पार्टी के अंदर किसी भी कीमत पर अपनी पकड़ ढीली नहीं करना चाहते.
 
ज्‍यादातर ऐसे नेताओं की निष्‍ठाएं सोनिया गांधी के साथ जुड़ी हुई हैं, जबकि युवा नेताओं का जुड़ाव राहुल और प्रियंका के साथ है. अधिसंख्‍य पुराने नेता पार्टी को नेहरु-गांधी परिवार से बाहर नहीं निकलने देना चाहते.
 
राहुल गांधी के व्‍यवहार और गुटबाजी का ही नतीजा है कि राहुल ब्रिग्रेड के युवा नेता ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया, जितेन प्रसाद, आरपीएन सिंह जैसे नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम चुके हैं. कई और नेताओं का पार्टी के अंदर दम घुट रहा है.
 
आज कांग्रेस लगातार दलदल में धंसती जा रही है. उसने कभी अपनी नीतियों, पार्टी के संगठनात्‍मक ढांचे में अमूलचूल बदलाव के बारे में आत्‍ममंथन करने की जरूरत नहीं समझी.
 
वह परिवारवाद और वंशवाद के दंश से घिरी हुई है. चाटुकारों की टोली पार्टी को गांधी नेहरू परिवार से बाहर निकलने नहीं देना चाहती. किसी देश के सशक्‍त लोकतंत्र के लिए आवश्‍यक है कि वहां मजबूत विपक्ष अवश्‍य हो.
 
आज वह समय आ गया है कि कांग्रेस अपने निहितार्थों का त्‍यागकर आत्‍ममंथन एवं चिंतन करते हुए अपने सांगठनिक ढांचे और नीतियों में अमूलचूल परिवर्तन करे . यह परिवर्तन समय रहते ही करना होगा अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि उसका नाम सिर्फ इतिहास में ही पढ़ा जाए.   
 
(लेखक स्‍वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं. यह उनके अपने विचार हैं.)