स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रीय युवा दिवस - डॉ. ओबैदुर रहमान नदवी की नजर में

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 11-01-2022
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद

 

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डॉ. ओबैदुर रहमान नदवी

आज 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती एवं राष्ट्रीय युवा की हार्दिक शुभकानाएं

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और विभिन्न सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों का उद्गम स्थल रहा है. इसका एक बहुलवादी समाज है. यह शांति, मैत्री, भाईचारे, बंधुत्व, एकता और अखंडता के मूल्यों के लिए जाना जाता है. यह बुद्ध, महावीर, गुरु नानक, महात्मा गांधी, कबीर, जवाहरलाल नेहरू, राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्या सागर, डॉ. बीआर अंबेडकर, रवींद्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, टीपू सुल्तान, मौलाना हसरत मोहानी, मौलाना अबुल कलाम आजाद, मौलाना मुहम्मद अली जौहर, सर सैयद अहमद खान, डॉ जाकिर हुसैन, मौलाना एस अबुल हसन अली नदवी, मौलाना हुसैन अहमद मदनी, काजी नजरूल इस्लाम जैसे विभिन्न प्रतीकों का जन्मस्थान है.

इन सभी प्रकाशस्तंभों ने अपने-अपने काल और काल में भाईचारे और बंधुत्व का पाठ पढ़ाया. वे आज नहीं रहे, लेकिन उनके निर्देश और संदेश अभी भी हमें इस भूमि पर शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं.

यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि “नदी न तो अपना पानी पीती है और न ही पेड़ अपना फल खाता है. वे दूसरों के लिए जीते हैं.’ इसी तरह, समय-समय पर महान आत्माएं पैदा होती हैं, जो दूसरों की भलाई के लिए जीती हैं. वे मानव जाति के लिए शांति और खुशी लाते हैं.

स्वयं माया के भयानक सागर (सापेक्ष अस्तित्व) को पार करने के बाद, वे दूसरों को बिना किसी स्वार्थ के पार करने में मदद करते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक महान आत्मा का जन्म कब और कहां हुआ या वह कितने समय तक जीवित रहा, उसका जीवन और संदेश सभी उम्र के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. (वेदांताः वॉयस ऑफ फ्रीडम, पृष्ठ 23)

12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था. हालांकि वे केवल 39 वर्षों की एक संक्षिप्त अवधि के लिए जीवित रहे, उन्होंने एक गहरा निशान और अपनी उत्कृष्टता, महानता, सज्जनता, कृपा और अच्छाइयों की एक उत्कृष्ट छाप छोड़ी. यही कारण है कि वे जहां कहीं भी गए, उन्हें एक बड़ा अनुयायी समूह मिला और अब उनके शिष्य दुनिया भर में पाए जाते हैं.

उनका जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बारहमासी स्रोत है और उन्हें कई अच्छे गुण और उदात्त मानदंड प्राप्त करने में मदद करता है, जो उनके जीवन को बढ़ाते हैं और उन्हें विभिन्न तरीकों से सफल बनाते हैं.

रोमेन रोलैंड कहते हैं, ‘उन्होंने एक ग्रामीण जीवन का नेतृत्व किया, एक फ्रांसिस्कन भिक्षु की तरह एक तरह का पवित्र जीवन. वह बगीचे और अस्तबल में काम करते थे. शकुंतला के तपस्वियों की तरह वह अपने पसंदीदा जानवरों से घिरा हुए थे, कुत्ता, बाघ, बकरी, बच्चा मटरू, छोटी घंटियों के कॉलर के साथ, जिसके साथ वह दौड़े और एक बच्चे की तरह खेले, एक मृग, एक सारस, बतख और हंस, गाय और भेड़ के साथ भी. वह एक परमानंद के रूप में चले, अपनी सुंदर, समृद्ध, गहरी आवाज में गा रहे थे, कुछ ऐसे शब्दों को दोहरा रहे थे जो उसे मंत्रमुग्ध कर देते थे, बिना समय बिताए.’ (विवेकानंद का जीवन, पृष्ठ 131)

स्वामी विवेकानंद ने खुद कहा था, ‘मेरे रास्ते में कई तरह के प्रलोभन आए. एक अमीर औरत ने मुझे मेरे गरीबी के दिनों को खत्म करने के लिए एक बदसूरत प्रस्ताव भेजा, जिसे मैंने तिरस्कार के साथ खारिज कर दिया. एक अन्य महिला ने भी मेरे साथ इसी तरह की हरकत की. मैं ने उससे कहा, तू ने मांस की चराइयों की खोज में अपना जीवन व्यर्थ किया है.’

‘मौत की काली छाया तुम्हारे सामने है. क्या आपने इसका सामना करने के लिए कुछ किया है? इन सभी गंदी इच्छाओं को छोड़ दो और भगवान को याद करो.’ (वेदांताः वॉयस ऑफ फ्रीडम, पेज 23)

डॉ हरि प्रसाद कनोरिया ने ठीक ही कहा है, ‘स्वामी विवेकानंद सूर्य की तरह थे, जो दुनिया में प्रकाश लाए और अपने सार्वभौमिक प्रेम के लिए जाने जाते हैं.’

वह हमारे दिलों को खुश करने, हमें शेरों की तरह मजबूत बनाने और यह महसूस करने के लिए आए थे कि हम ईश्वर की अमर संतान हैं और अमर आनंद के हिस्सेदार हैं, देश को भूख, अज्ञानता से मुक्त उसके अतीत के गौरव को जगाने के लिए और उसमें विश्वास रखने के लिए आए थे. उन्होंने हिंदू धर्म की वास्तविक नींव का खुलासा किया, जो वेदांत के सिद्धांतों पर आधारित है.’

उन्होंने असंख्य भाषाई, जातीय और क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद राष्ट्र को एकता के साथ मजबूत करने का आह्वान किया.

टैगोर ने कहा, ‘यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानंद का अध्ययन करें.’ स्वामी विवेकानंद ने युद्ध की ओर बढ़ने के लिए अमर आत्मा (आत्मा) को वीरता की भावना से गर्जना दी.

वे सेनापति थे, अपने अभियान की योजना की व्याख्या करते हुए और अपने लोगों को सामूहिक रूप से उठने का आह्वान करते हुए, ‘मेरे भारत, उठो! आपकी प्राण शक्ति कहाँ है? आपकी अमर आत्मा में! दुर्बलता, अन्धविश्वास को त्यागो और नये भारत के निर्माण के लिए उठो. भारत ने पूरे ब्रह्मांड की आध्यात्मिक एकता का उपदेश दिया.’ (मानवता और आध्यात्मिकता के माध्यम से प्रबुद्धता, पृष्ठ 229)

निस्संदेह, स्वामी विवेकानंद ने खुद को मानवता के लिए समर्पित कर दिया. विवेकानंद कहते हैं, ‘वेदांत चार योगों का सुझाव देता है (ए) कर्म योग, निःस्वार्थ क्रिया का मार्ग, (बी) ज्ञान योग, ज्ञान का मार्ग, (सी) रोजा योग, ध्यान का मार्ग, और (डी) भक्ति योग, भक्ति मार्ग.’

वे आगे कहते हैं, ‘सत्य एक और सार्वभौमिक है. यह किसी देश या जाति या व्यक्ति तक सीमित नहीं हो सकता. संसार के सभी धर्म एक ही सत्य को भिन्न-भिन्न भाषाओं में और भिन्न-भिन्न तरीकों से व्यक्त करते हैं.’ (वेदांतः वॉयस ऑफ फ्रीडम, पृष्ठ, 17)

हम 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में उनके विचारोत्तेजक भाषण को याद कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘मदद करें और न लड़ें, आत्मसात करें और विनाश, सद्भाव और शांति नहीं और विवाद नहीं.’ (स्वामी विवेकानंद का पूर्ण कार्य, पृष्ठ 13).

स्वामी विवेकानंद ने कहा है, ‘शिक्षा मनुष्य में पहले से ही पूर्णता की अभिव्यक्ति है.’

‘शिक्षा क्या है? क्या यह किताबी शिक्षा है? नहीं. क्या यह विविध ज्ञान है? वह भी नहीं. वह प्रशिक्षण जिसके द्वारा इच्छा की धारा और अभिव्यक्ति को नियंत्रण में लाया जाता है और फलदायी हो जाता है, शिक्षा कहलाती है.’

अब विचार करें, क्या वह शिक्षा है, जिसके परिणामस्वरूप इच्छा, जो पीढ़ियों से लगातार बल द्वारा दबाई जा रही है, अब लगभग समाप्त हो गई है, क्या वह शिक्षा है, जिसके प्रभाव में पुराने विचार भी एक-एक करके लुप्त होते जा रहे हैं, क्या वह शिक्षा है, जो मनुष्य को धीरे-धीरे मशीन बना रही है? हमारे बीच सच्ची शिक्षा की अभी तक कल्पना नहीं की गई है, मैंने कभी कुछ भी परिभाषित नहीं किया है, फिर भी इसे संकाय के विकास के रूप में वर्णित किया जा सकता है, शब्दों का संग्रह नहीं, या व्यक्तियों के प्रशिक्षण के रूप में सही और कुशलता से.

शिक्षा वह मात्रा नहीं है, जो आपके मस्तिष्क में डाली जाती है और वहां दंगा करती है, जो जीवन भर नहीं पचती है. हमें जीवन-निर्माण, मानव-निर्माण, चरित्र-निर्माण, विचारों को आत्मसात करना चाहिए. यदि आपने पांच विचारों को आत्मसात कर लिया है और उन्हें अपना जीवन और चरित्र बना लिया है, तो आपके पास किसी भी व्यक्ति की तुलना में अधिक शिक्षा है, जिसने पूरे पुस्तकालय का हृदयांगम किया है. यदि शिक्षा सूचना के समान होती, तो पुस्तकालय दुनिया के सबसे महान संत और विश्वकोष ऋषि होते.’ (स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं पृष्ठ, 50)

महिलाओं पर

विवेकानंद ने कहा है, ‘जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा, तब तक दुनिया के कल्याण की कोई संभावना नहीं है. एक पक्षी के लिए केवल एक पंख पर उड़ना संभव नहीं है. महिलाओं को पहले शिक्षित करें और फिर उन्हें खुद पर छोड़ दें. फिर वे आपको बताएंगी कि उनके लिए कौन से सुधार जरूरी हैं. महिलाओं को अपनी समस्याओं को अपने तरीके से हल करने की स्थिति में लाना चाहिए.’ (मानवता और आध्यात्मिकता के माध्यम से ज्ञान, पृष्ठ, 218)

वे आगे कहते हैं, ‘सभी राष्ट्रों ने महिलाओं को उचित सम्मान देकर महानता प्राप्त की है. वह देश और वह राष्ट्र जो नारी का सम्मान नहीं करता, वह न कभी महान हुआ और न भविष्य में कभी होगा. पांच सौ पुरुषों के साथ, भारत की विजय में पचास साल लग सकते हैं, कई महिलाओं के साथ, कुछ हफ्तों से ज्यादा नहीं ... पूर्ण नारीत्व का विचार पूर्ण स्वतंत्रता है. जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा, तब तक दुनिया के कल्याण की कोई संभावना नहीं है. मुझे बहुत पसंद है कि हमारी महिला में बौद्धिकता हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि यह पवित्रता की कीमत पर होना चाहिए.’ (मानवता और आध्यात्मिकता के माध्यम से ज्ञान, पृष्ठ, 237)

नैतिकता पर

विवेकानंद ने कहा है, ‘वह समाज सबसे बड़ा है, जहां उच्चतम सत्य व्यावहारिक हो जाते हैं. यह मेरी राय है, और यदि समाज उच्चतम सत्य के लिए उपयुक्त नहीं है, तो इसे बनाएं, और जितनी जल्दी, बेहतर, खड़े हो जाओ, पुरुषों और महिलाओं, इस भावना में, सत्य पर विश्वास करने की हिम्मत करें, सत्य का अभ्यास करने का साहस करें! परिवर्तन हमेशा व्यक्तिपरक होता है. पूरे विकास के दौरान आप पाते हैं कि परिपक्व की विजय विषय में परिवर्तन से आती है.

इसे धर्म और नैतिकता पर लागू करें, और आप पाएंगे कि बुराई पर विजय केवल व्यक्तिपरक परिवर्तन से आती है. इस प्रकार अद्वैत प्रणाली मनुष्य के व्यक्तिपरक पक्ष पर अपनी पूरी शक्ति प्राप्त करती है. बुराई और दुख की बात करना बकवास है, क्योंकि वे बाहर मौजूद नहीं हैं.

‘अगर मैं सभी क्रोध से प्रतिरक्षित हूं, तो मुझे कभी क्रोध नहीं आता. अगर मैं सभी नफरत के खिलाफ सबूत हूं, तो मुझे कभी नफरत नहीं होती. नैतिकता का कार्य भविष्य में रहा है, और भविष्य में होगा, बाहरी दुनिया में भिन्नता का विनाश और समानता की स्थापना, जो असंभव है, क्योंकि यह मृत्यु और विनाश लाएगा - लेकिन सभी के बावजूद एकता को पहचानने के लिए इन विविधताओं के बावजूद, भीतर के ईश्वर को पहचानने के लिए, इन सभी विविधताओं के बावजूद, भीतर के ईश्वर को पहचानने के लिए, हर चीज के बावजूद जो हमें डराता है, उस अनंत शक्ति को सभी की संपत्ति के रूप में पहचानने के लिए, सभी स्पष्ट कमजोरी के बावजूद, और पहचानना सतह पर दिखाई देने वाली हर चीज के विपरीत होने के बावजूद आत्मा की शाश्वत, अनंत, आवश्यक पवित्रता है.’ (स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं, पृष्ठ 56-57)

धर्म पर

विवेकानंद ने कहा है, ‘सभी धर्मों का अंत और उद्देश्य ईश्वर को प्राप्त करना है. सभी प्रशिक्षणों में सबसे बड़ा प्रशिक्षण केवल ईश्वर की आराधना करना है. धर्म एक है, लेकिन उसका प्रयोग विविध होना चाहिए. कोई भी व्यक्ति किसी धर्म के लिए पैदा नहीं होता, उसकी अपनी आत्मा में एक धर्म होता है. धार्मिक झगड़े हमेशा पतियों को लेकर होते हैं. जब पवित्रता, जब अध्यात्म जाता है, आत्मा को सूखा छोड़ देता है, झगड़े शुरू होते हैं, पहले नहीं. धर्म ईश्वर की प्राप्ति है. सच्चा धर्म पूरी तरह से पारलौकिक है. ब्रह्मांड में मौजूद प्रत्येक प्राणी में इंद्रियों को पार करने की क्षमता है, यहां तक कि छोटा कीड़ा भी एक दिन इंद्रियों को पार कर भगवान तक पहुंच जाएगा. कोई जीवन विफल नहीं होगा, ब्रह्मांड में विफलता जैसी कोई चीज नहीं है.’ (स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं, पृष्ठ, 241)

ध्यान पर

स्वामी विवेकानंद ने कहा है, ‘ध्यान किसी वस्तु पर मन का ध्यान केंद्रित करना है. यदि मन एक विषय पर एकाग्र हो जाता है, तो वह किसी भी वस्तु पर इतना एकाग्र हो सकता है. आध्यात्मिक जीवन के लिए सबसे बड़ी मदद ध्यान है. ध्यान में हम सभी भौतिक परिस्थितियों से खुद को अलग कर लेते हैं और अपने दिव्य स्वभाव को महसूस करते हैं. हम ध्यान में किसी बाहरी सहायता पर निर्भर नहीं हैं. सबसे बड़ी चीज है ध्यान. यह आध्यात्मिक जीवन के लिए निकटतम स्वीकृति है, ध्यान करने वाला मन. यह हमारे दैनिक जीवन का एक क्षण है कि हम भौतिक नहीं हैं, आत्मा स्वयं की सोच रही है, सभी पदार्थों से मुक्त है, आत्मा का यह अद्भुत स्पर्श है.’ (स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं, पृष्ठ 205-208)

 

डॉ. ओबैदुर रहमान नदवी

फैकल्टी मेम्बर,

दारुल उलूम नदवतुल उलमा,

लखनऊ-226007