‘चुप्‍पी’ पीएफआई की संदिग्‍ध भूमिका पर मुहर!

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 24-09-2022
‘चुप्‍पी’ पीएफआई की संदिग्‍ध भूमिका पर मुहर!
‘चुप्‍पी’ पीएफआई की संदिग्‍ध भूमिका पर मुहर!

 

nigamडॉ अनिल कुमार निगम

राष्‍ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के देश के विभिन्‍न राज्‍यों में स्थिति ठिकानों पर छापेमारी और आरोपियों की गिरफ्तारी  बहुत अहम है. ज्‍यादातार मुस्लिम संगठनों ने एजेंसियों की इस कार्रवाई पर चुप्‍पी साध रखी है.

मुस्लिम संगठनों और उनके नेताओं की चुप्‍पी बहुत बड़ा संकेत है कि पीएफआई की गतिविधियां संदेह के घेरे में हैं. विदित है कि आतंकवाद और दंगों से संबंधित कई ऐसे मामले आदलत में हैं, जिसमें पीएफआई की संदिग्‍ध भूमिका दर्ज है.
 
एनआईए ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि उसको जो जानकारी मिली थी, उसी आधार पर कार्रवाई की गई. पीएफआई के लोग आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर रहे हैं और मुस्लिम समाज के पढ़े-लिखे तबके को कट्टरपंथी बनाया जा रहा है.
 
हालांकि एनआईए की छापेमारी पर भड़के पीएफआई के कार्यकर्ताओं ने कोच्चि से कोयंबटूर तक जमकर उत्‍पात मचाया. सरकारी बसों पर पथराव किया. दुकानों, वाहनों में आग लगाई.
 
नकाब और हेलमेट पहनकर उतरे लोगों ने एंबुलेंस तक को नहीं बख्शा. यात्रियों के साथ मारपीट की और पुलिसवालों पर भी हमला किया. आरएसएस और भाजपा के दफ्तरों पर भी हमले किए गए.
 
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एनआईए और ईडी ने11 राज्यों में पीएफआई  के ठिकानों पर छापेमारी कर 107 से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार किया है. एजेंसियों ने केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, असम, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में कार्रवाई की.
 
इसको पीएफआई और उससे जुड़े लोगों को प्रशिक्षण देने, आतंकी और दंगों के लिए  फंडिंग करने के मामले में यह अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई कहा जा रहा है. 
 
याद रहे कि पीएफआई का गठन 17 फरवरी 2007 को हुआ था. यह संगठन दक्षिण भारत में तीन मुस्लिम संगठनों को आपस में विलय कर बनया गया था. पीएफआई में केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल है.

वर्तमान में पीएफआई देश के 23 राज्यों में सक्रिय है. देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट (सिमी) पर प्रतिबंध लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ. कर्नाटक, केरल जैसे राज्यों में इसकी खासी पकड़ बताई जाती है.
 
इसकी अन्‍य शाखाओं में नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे संगठन शामिल हैं. संगठन का दावा है कि इसका गठन मुस्लिम समुदाय में शिक्षा का विस्‍तार करने और उसका पिछड़ापन दूर करने के लिए किया गया है. लेकिन संगठन के अस्तित्‍व में आने के बाद से ही यह संगठन विवादों में रहा है.
 
वर्ष 2012 में केरल की कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली सरकार ने उच्‍च न्‍यायालय में एक एफीडेविट देकर यह कहा था कि पीएफआई प्रतिबंधित स्‍टूडेंट्स इस्‍लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का ही दूसरा रूप है.
 
ईडी ने दावा किया है कि पीएफआई से विदेश में जुडे़ लोग मानवीय मदद के नाम पर संगठन को पैसा भेज रहे थे. इस पैसे का इस्‍तेमाल देश विरोधी गतिविधियों में हो रहा था.
 
कतर में रहने वाले पयथ ने भारत में अपने एनआर खाते में पहले रुपये भेजे और बाद में पीएफआई सदस्‍य रउफ शेरिफ को दो बार में 21 लाख और बाद में 16 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए.
 
ईडी पहले से ही देश के कई भागों में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ होने वाले प्रदर्शनों, दिल्‍ली में हुए दंगों(2020) और हाथरस (उत्‍तर प्रदेश) में एक दलित महिला के साथ सामूहिक दुष्‍कर्म के बाद हत्‍या की साजिश में पीएफआई की संदिग्‍ध भूमिका की जांच कर रहा है.
 
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अगर एक नजर में देखा जाए तो पीएफआई की भूमिका प्रारंभ से ही संदेह और विवादों के घेरे में रही है. यह मु‍स्लिम समुदाय में शिक्षा को बढ़ावा देने के नाम पर लोगों को गुमराह करता रहा है.
 
भोले-भाले मुसलमान युवाओं को गलत जानकारी देकर वह अपने झांसे में फंसाकर संगठन में शामिल करता रहा है. यह संगठन पल्वित, पुष्पित और पोषित इसलिए होता रहा है क्‍योंकि इस संगठन की विदेश में बैठे लोगों से अच्‍छी साठगांठ रही है.
 
विदेश में बैठे हुए ऐसे लोग हैं जो हिंदू और मुसलमान के बीच भाईचारा और समरसता को समाप्‍त करना चाहते हैं. वे भारत में अशांति फैलाना कर इसे इस्‍लामिक स्‍टेट बनाने का षड़यंत्र करना चाह रहे हैं. इसी उद्देश्‍य की पूर्ति के लिए वे मोटी धनराशि पीएफआई को भेजते हैं.
 
लगता है कि देश के मुस्लिम नेता भी इस बात को समझ रहे हैं कि पीएफआई देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्‍त है. शायद यही वजह है कि वे अपनी चुप्‍पी के माध्‍यम से सरकार की कार्रवाई का अप्रत्‍यक्ष समर्थन कर रहे हैं.
 
यदि पीएफआई वास्तव में मुस्लिम हितों के लिए सक्रिय था तो इतने बड़े पैमाने पर इसके नेताओं, कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद तो देश के मुसलमान उबल पड़ते.
 
मुस्लिम अदारे खामोश नहीं रहते. जमात-ए-इस्लामी के एक हलके-फुलके बयान को छोड़ दें तो इस मामले में चारों ओर खामोशी ही पसरी हुई है. लेकिन महज चुप्‍पी साधने से समाज के लिए नासूर बन चुकी इस समस्‍या से निजात नहीं मिलने वाली.
 
अब समय आ गया है कि मुस्लिम संगठनों के नेता आगे आएं. वे दिग्‍भ्रमित हो रहे मुस्लिम समुदाय के युवाओं का सही मार्ग दर्शन कर एक बड़ी रेखा खींचें ताकि भारत में न केवल अमन चौन और सौहार्द्र का वातावरण बने, राष्‍ट्र की एकता और अखंडता को अक्षुण्‍य रखा जा सके.
 
(लेखक स्‍वतंत्र टिप्‍पणीकार है. )