सामाजिक दूरी, आधुनिकीकरण और नफरतों का बाजार

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 12-07-2022
सामाजिक दूरी,  आधुनिकीकरण और नफरतों का बाजार
सामाजिक दूरी, आधुनिकीकरण और नफरतों का बाजार

 

मेहमान का पन्ना


साकिब सलीम

लोग कहते हैं के हम लोग बुरे आदमी हैं

लोग भी ऐसे जिन्होंने हमें देखा न मिले

ये हमारे वक्त की त्रासदी है कि अफकार अल्वी का यह शेर सिर्फ कवि की कोरी कल्पना नहीं, हमारे समाज का आईना हो चला है. आज हमारा समाज छोटे छोटे हिस्सों में बटा हुआ है. हर कोई अपने गिरोह में बंद है. दूसरे गिरोह से नफरत कर रहा है. इस नफरत की बुनियाद वही है जो इस शेर में कही गई है. अपने गिरोह में बंद हर शख्स दूसरे गिरोह के लोगों को बिना जाने बिना पहचाने उससे नफरत कर रहा है.

हिंदू मुसलमान से, मुसलमान हिंदू से, अमीर गरीब से, गरीब अमीर से, औरत मर्द से, मर्द औरत से, पढ़ा लिखा अनपढ़ से और अनपढ़ पढ़े लिखे से एक डर के माहौल के बीच नफरत कर रहा है.

आखिर वजह क्या है? कभी अपने आसपास किसी से पूछिए कि वह किसी दूसरे समुदाय के लोगों से घृणा क्यों करता है तो वह आपको ढेरों तर्क दे देगा. जैसे- वो लोग गंदे रहते हैं. ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं. धोखेबाज हैं. दंगा करते हैं आदि . अब आप उससे सवाल कीजिए कि क्या वह दूसरे समुदाय के जिन लोगों को जानता है उनमें ये सारी बुराइयां उसने खुद देखी हैं. तो आपको दो तरह के जवाब मिलेंगे.

एक तो यह कि वह दूसरे समुदाय में बहुत ही कम लोगों से अच्छे संबंध रखता है अथवा यह कि नहीं हमारे मित्र जो फलां समुदाय से हैं वह तो अच्छे इंसान हैं. बाकी लोग ऐसे ही हैं. इस सवाल पर कि जो बुराइयां वह दूसरे समुदाय पर थोपते हैं क्या वह उनके अपने समुदाय में नहीं ? पर भी ये लोग बगलें झांकने लगते हैं. 

समाज में व्याप्त घृणा, डर और नफरत के पीछे असल वजह एक दूसरे से सामाजिक जीवन में दूरी है. हम एक दूसरे के बारे में टीवी, इंटरनेट, अखबार आदि से जानने की कोशिश करते हैं, जबकि जीवन में जो हमारे अनुभव हैं. उनको हम नजरअंदाज करके रखते हैं. आमतौर पर आप देखेंगे कि इंटरनेट पर पाए जाने वाले दो पैरों पर चलने वाले नफरती जहर उगलने वाले प्राणी असलियत में एक ऐसा जीवन जी रहे होते हैं जहां उनका किसी दूसरे समुदाय से संबंध न के बराबर होता है.

सुन्नी मुसलमानों के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद के दूसरे उत्तराधिकारी हजरत उमर से एक बार किसी ने एक अन्य व्यक्ति के बारे में आलोचना भरे शब्दों का इस्तेमाल किया. उमर ने उससे पूछा - क्या तुम्हारी उस इंसान से कोई रिश्तेदारी है? जवाब मिला कि नहीं. फिर पूछा कि क्या तुमने कभी उसके साथ पैसे का लेनदेन और व्यवसाय किया है ?

जवाब मिला कि नहीं. उमर ने फिर सवाल किया कि क्या तुमने उस इंसान के साथ कोई लंबा सफर तय किया है? एक बार फिर जवाब नहीं में था. हजरत उमर ने उस व्यक्ति को हिदायत की कि तुम उस इंसान के बारे में कोई राय कायम नहीं कर सकते, क्योंकि तुम उसको इतना जानते ही नहीं.

अब आप आज के सोशल मीडिया के धुरंधरों और रणबांकुरों का सोचिए जो किसी को न जानते हैं न पहचानते. बस टिप्पणी कर बैठते हैं. इस टिप्पणी को पढ़कर सोशल मीडिया के प्यादे इधर, उधर दौड़ने लगते हैं. फिर एक नफरत का जहर समाज में घोलते हैं.

आप पढ़ रहें हैं. तो पढ़ते हुए दिल पर हाथ रखिए और जवाब दीजिए कि क्या सच में किसी दूसरे समुदाय के सब लोग वैसे ही आपके साथ गलत बर्ताव करते हैं और आपके अपने समुदाय के लोग फरिश्ता हैं ? यह मानने में हम इतना वक्त क्यों लगा रहें हैं कि न तो हम आसमान से उतरे हैं और न दूसरे किसी समुदाय के लोग.

आज उठिए, बाहर निकालिए और लोगों से बात कीजिए. इस शेर को झूठ साबित कीजिए कि - “बड़े बड़े शहरों में कैसे कोई किसी को प्यार करे, जितने आमने सामने घर हैं उतना आना जाना कम.” आना जाना होगा तो आपस में प्यार होगा, आपसी प्यार होगा तो गलतफहमियां घटेंगी और गलतफहमियां घटेंगी तो नफरतें हारेंगी.