शब-ए-मेराजः बेहतर समाज बनाने का रास्ता

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 28-02-2022
शब-ए-मेराजः बेहतर समाज बनाने का रास्ता
शब-ए-मेराजः बेहतर समाज बनाने का रास्ता

 

सलमान अब्दुस समद
 
इस्लामी इतिहास में शब-ए-मेराज का बड़ा महत्व है, क्योंकि इस रात से इस्लाम के अनेक बिंदु जुड़े हुए हैं. इस्लाम में नमाज के महत्व से कौन इंकार कर सकता है. सच्ची बात यह है कि नमाज का सिलसिला भी शब-ए-मेराज से जा मिलता है. रजब ( इस्लामी कैलेंडर का सातवां महीना) की 27 वीं शब (रात) को शब-ए-मेराज कहा जाता है. 

कुरान के अध्ययन से पता चलता है कि इस रात को मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मक्का से बैत-उल- मुकद्दस तक की यात्रा की. फिर वहां से उन्हें सातों आसमान की सैर कराई गई. अल्लाह से मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ.
 
यहां कुछ बुनियादी बातों को ध्यान में रखना जरूरी है. ‘शब‘ शब्द फारसी से उर्दू में आया. इसका व्यापक रूप से यहां इस्तेमाल किया गया. ‘शब‘ का अर्थ ‘रात‘ है. उर्दू में ‘शब-व-रोज‘ यानी ‘रात और दिन‘ का बहुत प्रयोग होता है. बहुत से लोग समझते हैं मेराज का मामला अरब से जुड़ा हुआ है, इसलिए ‘शब‘ अरबी शब्द है, जो कि गलत है.
 
अरबी में रात को ‘लैल‘ कहा जाता है. ‘लैल‘ शब्द का प्रयोग कुरान में भी कई जगहों पर है. यहां तक कि कुरान में मेराज की रात का उल्लेख इस प्रकार हैः
 
سُبْحٰنَ الَّذِیْۤ اَسْرٰى بِعَبْدِهٖ لَیْلًا مِّنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ اِلَى الْمَسْجِدِ الْاَقْصَا الَّذِیْ بٰرَكْنَا حَوْلَهٗ لِنُرِیَهٗ مِنْ اٰیٰتِنَاؕ-اِنَّهٗ هُوَ السَّمِیْعُ الْبَصِیْرُ(۱)

अनुवादः पाक और पवित्र है वह जात (हस्ती) जिस ने अपने बन्दे (पैगम्बर) को पवित्र मस्जिद (काबा) से अल-अक्सा मस्जिद (बैतुल मुकद्दस) तक ले गया, जिसके चारों ओर हमने बरकत नाज़िल की, हमने उसे अपनी निशानियां दिखाईं. निश्चित रूप से वह  सुनने वाला और देखने वाला है.
 
यहां दो बातें समझी जा सकती हैंः

एकः ‘लैल‘ एक अरबी शब्द है, जबकि ‘शब‘ फारसी है. दूसरी बात यह है कि कुरान यह साबित करता है कि पैगंबर मुहम्मद को स्वर्गारोहण (मेराज) पर ले जाया गया था.
 
‘शब‘ के शब्द के बाद अब मेराज के शब्द पर बात करना मुनासिब है. ‘उरूज‘ का अर्थ ऊंचाई है. इसी से मेराज बना है. यह शब्द अरबी से उर्दू में आया है. अगर मेराज की बात बात करें तो अरबी में मेराज ‘ सीढ़ी‘ को कहते हैं. अर्ताथ यहीं से ऊंचाई का अर्थ लिया गया है. 
 
शाब्दिक बहस अपनी जगह, इस्लामिक ग्रंथों के अनुसार मेराज (स्वर्गारोहण) की रात वह रात है जिसमें पैगंबर मुहम्मद को स्वर्ग ले जाया गया था और वहां उनकी मुलाकात अल्लाह से हुई थी. यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कई इस्लामी विद्वानों ने कहा कि शारीरिक रूप से अल्लाह के रसूल (पैगम्बर) अल्लाह के पास गए और उन्होंने अल्लाह से बात की, जबकि कुछ लोग कहते हैं कि वे शारीरिक रूप से स्वर्ग नहीं गए. अल्लाह ने उनसे सपने में बात की और उन्हें प्रार्थना (नमाज) और अन्य चीजों का उपहार दिया.
   
शब-ए-मेराज का महत्व 

पहली बात यह है कि मक्का यानी काबे को आज भी अहम माना जाता है. दुनिया भार के मुसलमान वहां एक खास इबादत हज के लिए जाते हं. काबे कि तरफ मुंह करके हर नमाज पढ़ते हैं. 
 
दूसरी बात इस्लाम में बैतूल मुकद्दस, जिसको कुरान ने ‘मस्जिदुल अक्सा‘ कहा है, कि बड़ी अहमियत है. कियोंकि इस मस्जिद में पैगम्बर मुहम्मद ने नबयों को नमाज पढ़ाई. इस के अलावा मुस्लमान पहले ‘मस्जिदुल अक्सा‘ कि ओर मुंह कर करके नमाज पढ़ते थे. इसलिए उसे ‘किब्ला -ए- अव्वल‘ कहा जाता है. जो काबे के पहले मुसलमान का किब्ला थे, जो आज फिलिस्तीन (यरुशलम) में है.    
 
तीसरी बात यह कि इस रात पैगम्बर मुहम्मद ने  शब-ए-मेराज में बहुत से उन पैगम्बरों से मुलाकात की जो उनसे पहले दुनिया में आ चुके थे.  इस मुलाकात पर मुहम्मद स0 ने तमाम पैगम्बरों की इमामत की. अर्ताथ तमाम पैगम्बरों ने मुहम्मद के पीछे नमाज पढ़ी. नमाज पढ़ाने के इस बिंदु से या बात साफ होता है कि मुहम्मद की अहमियत उन पैगंबरों से बढ़ कर है. क्योंकि वह नबियों और पैगम्बरों के इमाम हैं. इस्लाम में इमाम का मुकाम बहुत बुलंद मना जाता है.  
 
चैथा, उस रात अल्लाह ने अपने नबी को दिन में 50 बार नमाज पढ़ने का तोहफा दिया. मुहम्मद (शांति उस पर हो) इस उपहार के साथ लौट रहे थे, जब पैगंबर मूसा (अलैहिस्सलाम) ने पूछा कि उन्हें अल्लाह की ओर से क्या उपहार मिला है. जिस पर मुहम्मद ने कहा कि 50 बार प्रार्थना (नमाज) का उपहार.
 
हजरत मूसा ने उन्हें कई बार अल्लाह के पास वापस भेजा. इस प्रकार 5 दैनिक प्रार्थनाएं (नमाज) शेष रह गईं, जो आज तक बाकी हैं. नमाज का स्वर्गारोहण ( मेराज) से विशेष संबंध है. इसलिए कहा जाता है कि नमाज मोमिनो यानि मुसलमानों कि  मेराज है.
 
पांचवीं बात यहां यह कही जा सकती है, अल्लाह ने पचास वक्त की नमाज को पांच बार की नमाज में समेट दिया ,तो पांच वक्त कि नमाज पर 50 वक्त की नमाज का सवाब (पुण्य) मिलेगा.  यहां एक पहलू यह है कि हमें अपनी जिन्दगी में सख्त नहीं होना चाहिए. अपने किसी फैसले पैर अड़ना नहीं रहना चाहिए, बल्कि अपने फैसले पैर सोचना भी चाहिए. जैसा कि अल्लाह ने 50 वक्त की नमाज को पांच वक्त में समेट दिया.  
 
 जब हम कुरान के 15 वें पारे (अध्याय) को पढ़ते हैं (जिसमें स्वर्गारोहण मेराज का उल्लेख है) तो हमें कई महत्वपूर्ण बात  मिलती हैं. इस में नमाज का आदेश दिया गया है. माता-पिता से अच्छे व्यवहार का उल्लेख है .
 
वजन करने में कमी करने से रोका गया है. गैर औरतों से सम्बन्ध बनाने से दूर रहने को कहा गया है. यह वह बिंदु हैं जिन पर चलते हुए एक बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है. इसलिए हम यहां कह सकते हैं कि मेराज (स्वर्गारोहण) का सिलसिला एक बेहतर समाज से जुड़ा हुआ है.
 
लेखक इस्लाम के विद्वान और असम के एक विश्वविद्यालय में अतिथि व्याख्याता हैं