सऊदी ने दिया झटका तो पाकिस्तान गिरा डिप्लोमेसी के दलदल में

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 3 Years ago
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (फाइल फोटो)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (फाइल फोटो)

 

 
  • अपने पैतरों में खुद उलझा पाकिस्तान 
  • कश्मीर की रट ने पाकिस्तान को कहीं का न छोड़ा
  • पाकिस्तान का पुरसाहाल कोई नहीं, उसे ले डूबी डीप-स्टेट बीमारी
  • सूखी नवाबी में सऊदी जमीन पर पाकिस्तान हुआ बेआबरू
  • पाकिस्तान अलग-थलग, भारत और सऊदी साथ-साथ 
 
sohel anjum  सोहेल अंजुम / नई दिल्ली
 
पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक व्यवस्था में बहुत बदलाव आया है. कई पुराने दुश्मन दोस्त बन गए हैं और कई पुराने दोस्त दुश्मन बन गए हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब कुछ साल पहले तक पाकिस्तान के सबसे बड़े मित्र और सहयोगी हुआ करते थे, लेकिन अब अमेरिका भारत का निकटतम और रणनीतिक साझेदार बन गया है. दूसरी ओर, सऊदी अरब और पाकिस्तान के संबंध भी बहुत ठंडे पड़ गए हैं. इस बीच, सऊदी के भारत के साथ संबंध और मजबूत हो रहे हैं. दूसरी ओर, चीन पाकिस्तान का दोस्त बनकर उभरा है और आज की स्थिति यह है कि वह चीन के लिए एक तरह की ‘वित्तीय समस्या’ बन गया है. मित्र देशों के साथ पाकिस्तान के बिगड़ते संबंधों का एक मुख्य कारण उसकी खराब विदेश नीति है. यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘भारत विरोधी भावना’ उसकी विदेश नीति का एक प्रमुख तत्व है. वह चाहता है कि उसके मित्र और सहयोगी भारत के बजाय पाकिस्तान का समर्थन करें, जबकि देशों के आपसी संबंध किसी अन्य देश के संबंधों की तराजू में नहीं तौले जाते हैं. बल्कि, प्रत्येक देश अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर अपनी नीति तय करता है और किसी भी मुद्दे का समर्थन या विरोध करने का फैसला करता है.

पाकिस्तान का स्यापा

जब भारत ने संविधान के अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया, जिसने अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया, तो पाकिस्तान ने इसके और दुनिया के खिलाफ एक वैश्विक हंगामा शुरू कर दिया. यह बताने की कोशिश की कि भारत सरकार, जम्मू और कश्मीर के मुसलमानों के साथ बहुत अन्याय कर रही है. हालांकि, यह भारत का विशुद्ध आंतरिक मामला था, लेकिन पाकिस्तान ने इसे अंतरराष्ट्रीय रंग देने की कोशिश की और बुरी तरह विफल रहा. केवल तुर्की और मलेशिया ने इस मुद्दे पर उनके साथ पक्ष रखा. 

इसलिए बिगड़े पाक-सऊदी संबंध

पाकिस्तान ने सऊदी अरब से कश्मीर मुद्दे पर इस्लामिक सहयोग संगठन (आईएसएस) के विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक बुलाने का अनुरोध किया. जब सऊदी अरब ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया, तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक टीवी शो पर एक साक्षात्कार में, सऊदी अरब को धमकी दी कि अगर उन्होंने बैठक नहीं बुलाई, तो प्रधानमंत्री इमरान खान समान विचारधारा वाले मुस्लिम देशों की एक बैठक बुलाएंगे. कुरैशी के बयान के बाद, दोनों देशों के बीच संबंध और बिगड़ गए. यहां तक कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को रिश्ते पटरी पर लाने की कोशिश करने के लिए सऊदी जाना पड़ा, लेकिन वे सफल नहीं हुए. 

पाकिस्तान को चढ़ा है नया शौक

इस बीच, सऊदी अरब ने पाकिस्तान को 3 बिलियन डॉलर का ऋण दिया था. अब सऊदी ने इसकी मांग शुरू कर दी और अंततः पाकिस्तान ने चीन से कर्ज लिया और 2 बिलियन चुकाया. दोनों देशों के बीच बिगड़ते संबंधों का एक कारण यह है कि पाकिस्तान इस समय तुर्की, ईरान, कतर और मलेशिया के साथ एक नया इस्लामी गुट बनाने की कोशिश कर रहा है. ईरान, तुर्की और कतर के साथ सऊदी अरब के बुरे संबंध स्पष्ट हैं. इसलिए, इस मुद्दे से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में और गिरावट आई. बिगड़ते द्विपक्षीय संबंधों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सऊदी अरब ने निर्वासन के लिए 1,500 पाकिस्तानी नागरिकों को निर्वासन केंद्रों में रखा है. 

पाक-सऊदी खाई हुई चौड़ी 

पाकिस्तानी विश्लेषकों ने यह भी स्वीकार किया कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच खाई चौड़ी हो रही है. उन्होंने यह भी कहा कि यमन युद्ध में पाकिस्तान की गैर-भागीदारी ने सऊदी अरब को नाराज कर दिया है. हालांकि, पाकिस्तान यह भी महसूस कर रहा है कि सऊदी अरब अब उसका दोस्त नहीं है. अन्यथा, ऐसे समय में जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कमजोर स्थिति में है, उसे कर्ज चुकाने की मांग नहीं करनी चाहिए थी और न ही ऐसे फैसले करने थे, जो उसे परेशानी में डालते. 

तेल का मुख्य आपूर्तिकर्ता

जहां तक भारत-सऊदी अरब संबंधों का संबंध है, दोनों में ऐतिहासिक संबंध हैं. यह संबंध पहले वहां काम करने वाले भारतीयों तक सीमित था और भारत का तेल और गैस आयात करना अब एक रणनीतिक संबंध में बदल गया है. ईराक के बाद सऊदी अरब भारत को तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है. वित्त वर्ष 2018-19 में उसने भारत को 40.33 मिलियन मीट्रिक टन कच्चा तेल बेचा था. भारत अपने कच्चे तेल का लगभग 18 प्रतिशत सऊदी अरब से आयात करता है. 
हाल ही में, भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब का दौरा किया. दोनों देशों में किसी भारतीय सेना प्रमुख का यह पहला दौरा था. यात्रा के दौरान, उन्होंने अपने सऊदी समकक्ष और अन्य रक्षा अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया. वार्ता के दौरान, दोनों पक्षों ने रक्षा संबंधों को और मजबूत करने और संयुक्त रूप से रक्षा उपकरण विकसित करने के तरीकों पर भी चर्चा की. उनकी यात्रा को राजनीतिक और राजनयिक हलकों में बहुत महत्व दिया गया है. 

खाड़ी देशों से संबंध सुधरे

यात्रा से पता चलता है कि भारत सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को कितना महत्व देता है. सऊदी  भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. वहां तीन मिलियन से अधिक भारतीय काम कर रहे हैं, जो भारत में बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भेजते हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आने के बाद दो बार सऊदी अरब गए हैं. 2016 की यात्रा के दौरान, सऊदी सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया. इसके बाद उन्होंने 2019 में रियाद का दौरा किया. जब से मोदी सत्ता में आए हैं, खाड़ी और अन्य इस्लामी देशों के साथ भारत के संबंधों को बहुत महत्व दिया गया है, जबकि भारत इन देशों के लिए एक बहुत बड़ा बाजार बनकर उभरा है. यही कारण है कि सऊदी अरब सहित अन्य सभी इस्लामी देश भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, परिस्थितियां और घटनाएं दिखा रही हैं कि जैसे-जैसे पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच दूरी बढ़ रही है, वैसे-वैसे भारत और सऊदी अरब के बीच निकटता बढ़ रही है.