धार्मिक समूह कोविड से लड़ने में मदद कर सकते हैं

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 2 Years ago
कोरोना के खिलाफ जंग में धार्मिक समूह बेहतर मदद कर सकते हैं
कोरोना के खिलाफ जंग में धार्मिक समूह बेहतर मदद कर सकते हैं

 

आतिर खान / नई दिल्ली

कोविड-19 के मामलों में खतरनाक बढोतरी के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में ऑक्सीजन की उपलब्धता की स्थिति की समीक्षा की है. रासायनिक यौगिकों का आयात जीवन बचाने के लिए महत्वपूर्ण होगा. यह समय की मांग है कि सरकारों ने महामारी की सबसे गंभीर लहर से लड़ने के लिए धार्मिक समूहों से मदद मांगना शुरू कर दिया है. धार्मिक समूहों को तैयार रहने के लिए संकेत दिए जाने की जरूरत है.

कोरोना के रुझान परेशान करने वाले हैं. कोरोना से लड़ने के लिए बहुत जल्द ही भारत को युद्ध स्तर पर प्रयासों की आवश्यकता होगी. डॉक्टर, पुलिस, प्रशासन और यहां तक कि सेना भी आने वाले दिनों में स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हो पाएगी. विश्व निकायों ने कोविड की पहली लहर से लड़ने के प्रयासों के लिए भारत की प्रशंसा की थी. लेकिन नया स्ट्रेन निर्मम है और भारत इससे लड़ने के साथ वक्त से भी लड़ रहा है.

चिकित्सीय आवश्यकता, भोजन और दवाओं के अलावा लोगों को मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक समर्थन की भी आवश्यकता होगी. यही वह स्थिति है, जहां हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख और अन्य सभी धार्मिक समूह सरकारों के सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

कुछ हिंदू और मुस्लिम धार्मिक समूहों की कोरोना का सुपर स्प्रेडर बनने के लिए आलोचना की गई है. इन्हीं समूहों का अगर सही तरीके से मार्गदर्शन किया जाए, तो वे स्थिति को बदलने में मदद कर सकते हैं. उनके पास अंतिम आदमी के लिए बड़े पैमाने पर समर्थक और शानदार नेटवर्क है. जो भी ये समूह कहते हैं कि लोग उसका धार्मिक रूप से पालन करते हैं. वे अपने अनुयायियों को चिकित्सा आपातकाल के अनुरूप व्यवहार करने के लिए आसानी से तैयार कर सकते हैं.

उम्मीद है कि यह अब खत्म होगा कि खासकर छोटे शहरों और गांवों के लोगों ने अपनी सुरक्षा को कम कर दिया है. उन्होंने मास्क पहनना, स्वच्छता और हाथ धोना भी बंद कर दिया है. लोग बेपरवाह हो गए हैं, भीड़ भरी शादियों की वापसी हो गई है, लोगों ने धार्मिक अनुष्ठानों और उत्सवों में भाग लेना शुरू कर दिया है. राज्य और स्थानीय निकाय चुनावों में राजनीतिक समारोहों ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है. सब कुछ पूर्व-कोविड युग में वापस आ गया है. स्थानीय प्रशासन भी शिथिल हो गया है ... और जबकि यहां हम और भी अधिक घातक स्ट्रेन से लड़ रहे हैं.

विभिन्न राजनीतिक नेताओं के कुछ टीवी विज्ञापन आम जनता में जागरूकता के लिए पर्याप्त नहीं होंगे. धार्मिक समूहों का समर्थन अधिक प्रभावी और सार्थक होगा. उदाहरण के लिए मस्जिदों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल जागरूकता पैदा करने की घोषणा के लिए किया जा सकता है. इमामों को समय-समय पर मस्जिद लाउडस्पीकर से चिकित्सा जागरूकता की घोषणा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इसी तरह मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थानों की सार्वजनिक सूचना प्रणाली का भी उपयोग किया जा सकता है.

भारत में लोगों को बार-बार सावधानी बरतने के लिए याद दिलाने की जरूरत है. उन्हें मास्क पहनने, हाथ धोने, सामाजिक दूरी और टीके लेने के महत्व के बारे में सूचित किया जाना चाहिए. इस तरह के उपाय जागरूकता पैदा करने, राहत प्रदान करने और संकट में लोगों को आध्यात्मिक सहायता प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं. मनोचिकित्सक पहले से ही अवसाद पीड़ित लोगों का उपचार करने के लिए दबाव में हैं.

धार्मिक समूहों में सरकारों का बोझ काफी हद तक कम करने की क्षमता है. सरकारें तब चिकित्सा सुविधाओं के निर्माण और लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करने पर अधिक ध्यान दे सकती थीं.

भारतीय धार्मिक समूहों में जैसे विभिन्न अखाड़े, रामकृष्ण मिशन, डीएवी, जमात उलेमा-ए-हिंद, जमात-ए-इस्लामी हिंद, अंजुमन-ए-इमामिया, दिल्ली की आर्कडीओसी, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति और दक्षिण भारत में लिंगायत और वोक्कालिंगा हो सकते हैं, जो सरकार के प्रयासों को आसान बना सकते हैं. धार्मिक स्थलों और सूफी संतों के विभिन्न प्रमुखों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए.

हमें इस बार यह नहीं भूलना चाहिए कि कोविड ने अर्थव्यवस्था पर जो हमला किया है, वह और भी गंभीर है. कारण यह है कि हम एक ऐसी अर्थव्यवस्था के साथ काम कर रहे हैं, जो पहले ही कोविड-19 की पहली लहर से टकरा चुकी है. प्रतिरक्षा कम हुई है. इसके आगे के लॉकडाउन से और अधिक नुकसान होगा.

कोविड मामलों की संख्या में खतरनाक उछाल के साथ यह अब स्पष्ट है कि कोरोना की वापसी पहले से कहीं अधिक घातक है. श्मशान और कब्रिस्तान में जगह नहीं है. हर छठा वह व्यक्ति पॉजिटिव मिल रहा है, जिसकी आप खैर-खबर ले रहे हैं. भारत अब तक टीकों का सबसे बड़ा निर्यातक था, जो अब सबसे बड़ा आयातक बन गया है. ये अच्छे संकेत नहीं हैं.

ये संकेत स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि देश वायरस फैलने की गति के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहा है. मैंने कुछ डॉक्टरों से बात की और उन्होंने मुझे जो भी बताया, वह अच्छी खबर नहीं थी. नया स्ट्रेन जंगल की आग की तरह फैल रहा है, यहां तक कि वायरस से संक्रमित डॉक्टरों को भी आसानी से अपने इलाज के लिए बेड नहीं मिल पा रहे हैं. यदि आपको आज दिल्ली में अस्पताल के बेड की आवश्यकता है, तो आपको कम से कम दस अस्पतालों को कॉल करना होगा, यदि आप भाग्यशाली हैं, तो ही आपको अपने रिश्तेदार या दोस्त के लिए बेड मिल पाएगा.

जो सरकारें डिनायल मोड में हैं, उन्हें अपने अति आत्मविश्वास से बाहर आना चाहिए और वास्तविकता का सामना करना चाहिए. एक बारीक अध्ययन के अनुसार वायरस हवा से पैदा हो सकता है और जून तक के अनुमानों के अनुसार भारत में प्रति दिन लगभग 3000 मौतें हो सकती हैं. इसका मतलब यह होगा कि अकेले सरकारें गहन दबाव का सामना नहीं कर पाएंगी. इसलिए धार्मिक समूहों को मदद के लिए हाथ बढ़ाना चाहिए और सभी भारतीयों को उनकी जाति, धर्म या पंथ से परे सेवा करनी चाहिए.

(लेखक आवाज-द वॉयस के प्रधान संपादक हैं.)