कोविड से बच्चों को बचाने की रेस

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
कोविड से बच्चों को बचाने की रेस
कोविड से बच्चों को बचाने की रेस

 

हरजिंदर

बात एक साल से भी ज्यादा पुरानी है.सोशल मीडिया पर ब्रिटेन के एक अस्पताल की नर्स का बयान अचानक ही वायरल हुआ.इसमें वह नर्स कह रही है कि उसके अस्पताल में एक पूरा वार्ड ऐसे बच्चों से भरा पड़ा है जिन्हें कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ है.

हड़कंप तो मचना ही था.तब तक यही माना जा रहा था कि कोविड का संक्रमण भले ही किसी को भी हो जाए लेकिन यह बीमारी बुजुर्ग लोगों को या कुछ बीमारियों से ग्रस्त लोगों को ही सबसे ज्यादा परेशान करती है, जबकि बच्चे आमतौर पर इससे बचे रहते हैं.

लेकिन अगर यह संक्रमण बच्चों को भी होने लग गया तो इसका अर्थ होगा दुनिया के सर पर एक नई मुसीबत का खड़े हो जाना.जल्द ही साफ हो गया कि सोशल मीडिया की यह पोस्ट कुछ नहीं बस झूठ थी.उस अस्पताल में बच्चों से भरा एक वार्ड जरूर था लेकिन वे सब कोविड के बजाए अन्य बीमारियों के इलाज के लिए वहां भर्ती थे.

लेकिन एक साल बाद अब दुनिया भर के वैज्ञानिक यह कह रहे हैं कि बच्चे भी निरापद नहीं हैं.हो सकता है कि कोरोना संक्रमण की अगली लहर बच्चों को भी अपना शिकार बनाए.हालांकि यह अभी सिर्फ आशंका ही है पर इसमें जो चेतावनी छुपी हुई है उसे नजरंदाज भी नहीं किया जा सकता.

इस बीच कुछ दूसरी तथ्य भी सामने आए हैं.अमेरिकी संस्था सेंटर फाॅर डिज़ीज़ कंट्रोल के ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि अमेरिका में कोविड संक्रमित किशोरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.बेशक, ये आंकड़ें अमेरिका के हैं लेकिन इसे लेकर चिंता पूरी दुनिया में है.

खासकर कोरोना वायरस के नए रूप डेल्टा प्लस के आने के बाद आशंकाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं.अभी तक बच्चे अपनी मजबूत इम्युनिटी के चलते इस वायरस को मात देने में सक्षम थे लेकिन अब जो इसका नया रूप आया है,

उसके बारे में अभी तक मिली जानकारी यह बताती है कि डेल्टा प्लस वायरस किसी भी तरह की इम्युनिटी को मात देने में सक्षम है.इसी से यह आशंका भी उभरी है कि बच्चे भी इसके खतरों के दायरे में आ सकते हैं.

अभी तक हम इस महामारी के दौर में बच्चों को लेकर सिर्फ इसी बात के लिए चिंतित थे कि स्कूल बंद होने से इसका असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा है.पश्चिम के कईं देशों ने तो स्कूल काॅलेज खोलने की आधी-अधूरी कोशिशें भी की लेकिन भारत में तो यह भी नहीं हो सका.

अभिभावकों को यह डर सता रहा है कि पढ़ाई ठीक से न होने के कारण स्पर्धा के इस दौर में उनके बच्चे पिछड़ सकते हैं.कुछ जगहों पर स्कूल खोलने की कोशिश इस सोच के साथ हुई कि कोरोना बच्चों को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं करता.

नतीजे ज्यादा खतरनाक थे.कोरोना बच्चों को ज्यादा प्रभावित नहीं करता लेकिन जो बच्चे स्कूल आ रहे थे वे अपने साथ कोरोना वायरस को लेकर वापस घर जा रहे थे.वे कोरोना के कैरियर बन गए थे जो ज्यादा बड़ा संकट पैदा कर सकता था इसलिए तकरीबन सभी जगहों पर स्कूल बंद कर दिए गए.

लेकिन अब चिंताएं बदल गई हैं। अब यह कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस बच्चों को भी संक्रमित कर सकता है.बच्चों पर कोविड का असर गंभीर होगा ऐसा तो अभी नहीं कहा जा रहा लेकिन अगर वे संक्रमित होते हैं तो भविष्य में महामारी के प्रसार का आधार ज्यादा बड़ा हो जाएगा.

इसलिए यह माना जा रहा है कि अब बच्चों को भी कोरोना की वैक्सीन देने का वक्त आ गया है.दुनिया के कईं देशों ने तो बच्चों पर कोरोना की वैक्सीन का ट्राॅयल तीन महीने पहले ही शुरू कर दिया था.लेकिन भारत ने अभी दो हफ्ते पहले ही इस काम को शुरू किया है.

कानपुर के प्रखर अस्पताल में तीन साल की एक बच्ची को इस महीने की शुरुआत में कोवैक्सीन का वह टीका लगाया गया जो विशेषकर बच्चों के लिए तैयार किया गया है.ठीक इसी समय भारत की कैडिला कंपनी ने 12से 18के बच्चों के लिए वैक्सीन के तीसरे फेज़ का पीरक्षण पूरा कर लिया जो एक अच्छी खबर है.

लेकिन इससे छोटे बच्चों के मामले में जहां खतरा सबसे ज्यादा हो सकता है, वहां जितनी प्रगति होनी चाहिए थी उतनी नहीं हुई.यानी जब कईं देशों में छोटे बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन का काम काफी आगे पहंुच चुका है हम कुछ पीछे छूट गए हैं.

माना यह जाता है कि महामारी के खिलाफ युद्ध समय से स्पर्धा करने का काम है.समय तेजी से भागता है और ऐसे मौके पर आपको उससे भी तेजी से भागना होता है.महामारी से निपटने के मामले में अभी तक भारत ने बहुत कुछ किया है, या यूं कहें कि सभी कुछ किया है.

लेकिन यह भी सच है कि समय से स्पर्धा करने के मामले में हम जरूर पिछड़े हैं.जब कोविड की पहली लहर आई थी तो जितने वैंटीलेटर की जरूरत थी वे हमारे पास उपलब्ध नहीं थे, हालांकि कुछ बाद में उनकी व्यवस्था हो गईं.दूसरी लहर के दौरान जितने ऑक्सीजन सिलेंडरों की जरूरत थी उतने ऑक्सीजन सिलेंडर तत्काल उपलब्ध नहीं थे, जिसकी व्यवस्था में थोड़ा समय लगा.

इसी तरह शुरू में जहां रेमडिसवेयर की जरूरत थी वहां वह मरीजों को नहीं मिल पा रही थी, कुछ समय बाद यह किल्लत भी दूर हो गई.लेकिन इस बीच रेमडिसवेयर की कालाबाजारी ही शुरू नहीं हुई, नकली माल भी बाजार में आ गया.इसमें कोई शक नहीं है कि इन तीनों चीजों की जरूरत जिस समय थी उस समय अगर वे उपलब्ध होतीं तो बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती थी.

इसलिए ऐसी व्यवस्थाएं बहुत जरूरी हैं कि कोरोना संक्रमण की पहली और दूसरी लहर में जो हुआ वह तीसरी लहर में दोहराया न जाए.सिर्फ दवाओं और चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के मामले में ही नहीं, यही ध्यान हमें वैक्सीन नीति के मामले में भी रखना होगा.

भारत ने वैक्सीन का पूरा शुरुआती दांव कोवैक्सीन और कोवीशील्ड पर ही खेला था.जिससे जितनी जरूरत थी उतनी वैक्सीन समय रहते नहीं मिल सकीं.बाद में जरूर दुनिया की दूसरी कंपनियों को इजाजत भी दी गई और रूस की स्पूतनिक-वी तो टीकाकरण में इस्तेमाल भी होने लगी.बच्चों के मामले में यह न हो इसका ध्यान रखना भी जरूरी है.

अब जब कोवैक्सीन का बच्चों पर परीक्षण शुरू हो गया है तो एक और चीज की चर्चा भी जरूरी है। यह सच है कि भारत के वैज्ञानिकों ने समय रहते कोवैक्सीन को तैयार किया जो पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी भी साबित हुई.लेकिन एक सचाई यह भी है कि इसका इस्तेमाल हमने तीसरे दौर का परीक्षण पूरा होने से पहले ही शुरू कर दिया.

यह जरूर है कि इस वैक्सीन ने हमें कहीं भी निराश नहीं किया.लेकिन यहीं पर यह एक सवाल जरूर पूछा जा सकता है कि क्या बच्चों की वैक्सीन के मामले में भी यही रास्ता अपनाया जाएगा ?

वैक्सीन के इन मसलों के साथ ही एक और चीज पर ध्यान देना भी जरूरी है.

दुनिया के बहुत से देश ऐसे हैं जिन्हें कोविड की पहली लहर ने खासा परेशान किया लेकिन वे दूसरी लहर से खुद को बचा पाने में कामयाब रहे.जबकि भारत के तमाम शहरों, कस्बों और गांवों को महामारी दूसरी लहर ने भीतर तक तोड़ दिया.

क्या हम दूसरी लहर से खुद को बचा पाएंगे? ऐसा हुआ तो हम बुजुर्गों, नौजवानों और बच्चों सभी की रक्षा कर सकेंगे.फिलहाल यही सबसे बड़ी चुनौती है और इसलिए यही सबसे बड़ी प्राथमिकता भी होनी चाहिए.