कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के लिए पाकिस्तान ने कभी माफी नहीं मांगीः विशेषज्ञ

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 22-10-2021
कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के लिए पाकिस्तान ने कभी माफी नहीं मांगी
कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के लिए पाकिस्तान ने कभी माफी नहीं मांगी

 

तेल अवीव. इतालवी राजनीतिक विशेषज्ञ सर्जियो रेस्टेली ने कहा कि पाकिस्तान ने अपनी सेना द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए कभी भी माफी नहीं मांगी है. हालांकि इसके लिए अक्सर इसका श्रेय लेने का दावा जरूर किया जाता है और मानव अधिकार समूहों ने अच्छी तरह से प्रलेखित नरसंहारों की भी अनदेखी की है.

21-22 अक्टूबर, 1947 की दरमियानी रात, जब ऑपरेशन गुलमर्ग शुरू किया गया था, उसे जम्मू-कश्मीर के इतिहास के सबसे काले दिनों में से एक माना जाता है. इस दिन, पाकिस्तान ने क्षेत्र को जब्त करने और नष्ट करने के लिए अपने प्रयास शुरू किए थे. द टाइम्स ऑफ इजराइल के लिए लिखते हुए, रेस्टेली ने कहा कि यह देखना बहुत दुखद है कि कैसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस नरसंहार को नजरअंदाज किया, जो प्रलेखित है.

रेस्टेली ने कहा, ‘22 अक्टूबर, 1947 को, एक नए स्थापित पाकिस्तान का पहला कार्य कश्मीर में अपना पहला जिहाद शुरू करना था, जो इतना विनाशकारी था कि 74 साल बाद भी लोग उन भयावह दिनों को काला दिन के रूप में याद करते हैं. भयावहता और विनाश का अकल्पनीय पैमाना था.’

इतालवी राजनीतिक सलाहकार के अनुसार, यह तबाही हर कश्मीरी के मानस में गहराई से अंकित है और पाकिस्तान के विश्वासघात की याद दिलाता है. सशस्त्र कबाइली मिलिशिया द्वारा बलात्कार, हत्या और लूट की याद दिलाता है, जिसे पाकिस्तानी सेना ने ढीला छोड़ दिया है.

यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जनजातीय आक्रमण की भयावहता इतली थी कि इसमें 35,000 से 40,000 लोग मारे गए, इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर के भाग्य पर गंभीर निशान छोड़े. ईएफएसएएस ने कहा, ‘यह दिन कश्मीरी पहचान के क्षरण में पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि राज्य और उसके लोगों को संयुक्त राष्ट्र द्वारा खींची गई नियंत्रण रेखा (नियंत्रण रेखा) से अलग किया जा रहा है, जो तत्कालीन रियासत और उसके निवासियों को विभाजित करता है.’

रेस्टेली ने कहा कि जैसे दुनिया ने तब कश्मीर को छोड़ दिया था, अब वह अफगानिस्तान को छोड़ रहा है.

विशेषज्ञ ने कहा कि पाकिस्तान ने अपनी सेना द्वारा किए गए अधिकारों के उल्लंघन के लिए कभी माफी नहीं मांगी. उन्होंने कहा, ‘यह देखकर बहुत दुख होता है कि कैसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस नरसंहार को नजरअंदाज करने का फैसला किया है, जो कि प्रलेखित है.’

रेस्टेली ने तर्क दिया कि कश्मीरी विभाजित भूमि पर रह रहे हैं और दशकों की हिंसा के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराया जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘15 अगस्त को तालिबान के काबुल के पतन के साथ, इस 22 अक्टूबर को एक बड़ा महत्व है, यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि यह सब कहां से शुरू हुआ-कश्मीर में ऑपरेशन गुलमर्ग के साथ.’