सुधारों में अक्षम पाकिस्तान इस्लामवाद से हटने में असमर्थः विशेषज्ञ

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
प्रियंता कुमारा दियावदाना के शव को जलाया
प्रियंता कुमारा दियावदाना के शव को जलाया

 

इस्लामाबाद. सियालकोट की घटना में इस्लामवादी भीड़ ने श्रीलंकाई कारखाने के प्रबंधक प्रियंता कुमारा दियावदाना पर ईशनिंदा का आरोप लगाया और फिर उनके शव को जला दिया. यह मामला दर्शाता है कि पाकिस्तान सुधारों पर अग्रसर होने के बजाय इस्लामवाद से पीछे हटने में असमर्थ है. 

इनसाइड ओवर में लिखते हुए सर्जियो रेस्टेली ने कहा कि ईशनिंदा अैर बर्बरता ने ब्रांड पाकिस्तान - ‘द लैंड ऑफ द प्योर’ को जला दिया है. सियालकोट में जो हुआ वह अतीत में असंख्य बार हुआ है और सियालकोट की घटना में एकमात्र नवीनता यह है कि यह पहली बार है, जब किसी विदेशी को कट्टर इस्लामी भीड़ ने मार डाला और हत्या कर दी.

रेस्टेली ने कहा कि दियावदाना के ईसाई धर्म ने उनकी हत्या को भीड़ के लिए और अधिक सुखद बना दिया, क्योंकि पाकिस्तान में ईसाई ईशनिंदा के नाम पर हमलों का खामियाजा भुगत रहे हैं.

कुछ समय पहले एक बैंक गार्ड ने बैंक मैनेजर पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर गोली मारकर हत्या कर दी थी. कॉलेज के एक युवा प्रोफेसर को 8साल से अधिक की कैद हुई है, क्योंकि कुछ छात्रों ने उस पर ईशनिंदा का आरोप लगाया था. इनसाइड ओवर की रिपोर्ट के अनुसार, एक ईसाई जोड़े को पीटा गया और उनके बच्चों के सामने ईंट के भट्टे में जिंदा जला दिया गया.

ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं, जहां ईशनिंदा पर प्रतिद्वंद्वियों के साथ हिसाब चुकता करने का आरोप लगाया गया है. पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून एक बुरा कानून है. ऐसे कई कानून हैं, जो खराब हैं और दुरुपयोग के लिए उत्तरदायी हैं. लेकिन कानून में सुधार या संशोधन करने की किसी में हिम्मत नहीं है.

जिस क्षण किसी पर ईशनिंदा का आरोप लगाया जाता है, लिंचिंग की भीड़ तत्काल मौत की सजा देने के लिए तैयार हो जाती है.. रेस्टेली ने कहा कि अगर संयोग से कोई आरोपी लिंचिंग से बच गया, तो वह कई साल जेल में बिताएगा, क्योंकि अदालतें जमानत देने से डरती हैं और वकील आरोपी का बचाव करने से डरते हैं.

पंजाब के पूर्व राज्यपाल सलमान तासीर का हत्यारा मुमताज कादरी इसका प्रमुख उदाहरण है. कादरी ने उनके सम्मान में एक दरगाह बनाई है, जबकि तासीर को ठीक से दफन भी नहीं किया गया था, क्योंकि कोई भी मौलवी उनके अंतिम संस्कार के लिए तैयार नहीं था और यहां तक कि उनके राजनीतिक सहयोगी भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने से डरते रहे.

दियावदाना के साथ जो हुआ, वह अन्य प्रवासी श्रमिकों के साथ आसानी से हो सकता है. सबसे अधिक संकटग्रस्त यूरोपीय और चीनी हैं. रेस्टेली ने कहा कि उत्तरार्द्ध विशेष रूप से कमजोर हैं, क्योंकि चीन में मुसलमानों के साथ किए गए व्यवहार के खिलाफ बढ़ती भावना के कारण, और आंशिक रूप से चीनी प्रबंधकों और इंजीनियरों ने सीपीईसी परियोजनाओं में उनके तहत काम करने वाले पाकिस्तानियों के साथ व्यवहार किया है.

दुर्व्यवहार करने वाले पाकिस्तानी कर्मचारियों और अभिमानी, अभिमानी और उग्र चीनियों के बीच तनाव की खबरें पहले ही आ चुकी हैं.

ऐसा ही एक अमेरिकी, या एक फ्रांसीसी, ब्रिटिश, जर्मन या किसी अन्य पश्चिमी व्यक्ति के साथ हो सकता है, जिसमें आईएमएफ में काम करने वाले लोग भी शामिल हैं.

बात यह है कि पाकिस्तानी मीडिया और राजनेता हाल के हफ्तों में पश्चिमी देशों, खासकर आईएमएफ के खिलाफ नफरत भड़काते रहे हैं. इनसाइड ओवर की रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांस को विशेष रूप से उस देश में आक्रामक धर्मनिरपेक्षता के लिए लक्षित किया गया है, जिसने धार्मिकता के किसी भी बाहरी प्रतीक पर प्रतिबंध लगा दिया है.

सोशल मीडिया में आक्रोश या प्रधानमंत्री इमरान खान, सेना प्रमुख कमर बाजवा और कई अन्य राजनेताओं व अधिकारियों जैसे लोगों द्वारा घटना की निंदा करने का वास्तव में कोई मतलब नहीं है.

वे सबसे अधिक कपटी हैं. इमरान खान और जनरल बाजवा जैसे लोगों ने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस कट्टरता को बढ़ावा दिया है.

रेस्टेली ने कहा कि इससे भी बदतर, उन्होंने विचारधारा और उन मौलवियों / कार्यकर्ताओं के सामने घुटने टेक दिए हैं, जिन्होंने पाकिस्तान की राजनीति में एक शक्तिशाली ताकत बनने के लिए ईशनिंदा कानूनों को हथियार बनाया है.

कुछ ही हफ्ते पहले पूरी राज्य मशीनरी तहरीक-ए-लब्बैक के जुलूसों के सामने झुकी हुई थी. उनकी सभी मांगों को मानते हुए और लगभग एक दर्जन पुलिस अधिकारियों की हत्या को संपार्शि्वक क्षति के रूप में लिखा गया. ऐसे एक्टर्स से एक्शन की उम्मीद तो क्या, न्याय की बात करना भी रेगिस्तान में पानी मांगने जैसा है.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि सत्ता में आने के लिए इमरान खान किस तरह से कट्टरपंथियों की पीठ पर सवार होते रहे हैं, किस तरह से उन्हें भटकाते रहे हैं और कैसे चरमपंथियों ने देश की किसी भी कार्रवाई से छूट दी है.

पाकिस्तान को इस कगार से पीछे हटाने के लिए दुनिया को सभी आर्थिक, राजनीतिक और राजनयिक लाभ उठाने की जरूरत है. यह दंडात्मक कार्रवाई की धमकी को रोके बिना तब तक संभव नहीं होगा, जब तक कि पाकिस्तान दोषियों को सजा नहीं देता और ईशनिंदा के मुद्दे पर वापस चलना शुरू नहीं कर देता.