प्रो. अख्तरुल वासे
पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक में खास तौर पर जिस तरह हिजाब, नमाज को नफरत की आड़ में निशाना बनाया जा रहा है वह बेहद दर्दनाक और शर्मनाक है. मंगलुरू में एक शिक्षण संस्थान में मुसलमान बच्चियों को हिजाब पहन कर आने पर उनके क्लास में हाजिरी पर रोक लगा दी गई. अब कुछ चरमपंथियों की तरफ से कहा जा रहा है कि उन्हें शिक्षण संस्थाओं से निकाल दिया जाए, क्योंकि वह हिजाब पहनने पर जोर दे रही हैं.
सवाल है कि अगर वो लड़कियां हिजाब पहनकर पढ़ने आती हैं और अपनी कक्षाओं में मुंह खोल कर बैठती हैं, तो किसी को क्या परेशानी हो सकती है? हिन्दुस्तान में, हम सभी जानते हैं कि सिर को ढकना और घूंघट लगाना, बिना किसी धार्मिक भेदभाव के, हमारी पुरानी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है.
फिर ये लड़कियां स्कूल और कॉलेज आते समय चेहरे को ढके रहती हैं तो लाज-लज्जा अर्थात् शर्म-ओ-हया वह सामाजिक गुण हैं जिन्हें सम्मान दिया जाना चाहिए.
उपहास एवं घृणा का निशाना नहीं बनाना चाहिए. यह कैसा तमाशा है कि एक तरफ तो मुसलमानों की आलोचना की जाती है कि वे अपनी बेटियों को सांसारिक शिक्षा से वंचित रखना चाहते हैं, जब वे उन्हें शिक्षा के लिए घर से बाहर भेजते हैं तो उन्हें हिजाब उतारने के लिए विवश किया जाता है.
सवाल है कि कौन क्या खाए? क्या पिए? कैसे रहे? क्या पहने और क्या ओढे? यह निर्णय केवल और केवल हर व्यक्ति का, चाहे वह पुरुष हो या महिला, स्वयं का होना चाहिए. दूसरे इसका फैसला करने वाले कौन होते हैं ? उन्हें यह अधिकार किसने दिया ?
यह संविधान द्वारा दी गई व्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है. यह उनको रोकने का एक बहाना है, ताकि मुसलमान बच्चियां शिक्षित ना हो पाएं. उनके द्वारा समाज में जागरूकता ना आए.
हमें खेद है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री, जिनके पिता स्वयं धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के समर्थक थे एवं राज्य और केंद्र में सत्ता के बड़े पदों पर आसीन रहे, वह भी इस मुद्दे पर चुप हैं.
ऐसा लगता है कि उन्होंने अपना मुंह इसलिए बंद कर रखा है कि कहीं कुछ बोलने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे न छीन ली जाए. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चाहे वह लव-जिहाद हो या टीपू सुल्तान की स्मृति का घृणित विरोध, यह केवल कर्नाटक जैसे राज्य में कानून-व्यवस्था, और सांप्रदायिक सद्भाव को समाप्त करने के लिए होता रहा है. हम केंद्र और राज्य सरकारों से अपील करते हैं कि ऐसा न होने दें.
कर्नाटक ही से एक और खबर आई है. बंगलुरू-चित्तूर हाईवे पर एक स्कूल की नेक-दिल और मासूम प्रधानाध्यापिका को अपने स्कूली बच्चों को लंच ब्रेक के दौरान स्कूल परिसर में नमाज पढ़ने की अनुमति देने के कारण निलंबित कर दिया गया.
जिन साम्प्रदायिक चरमपंथियों को ये बात नापसंद आई, उन्होंने शिक्षा विभाग से इसकी शिकायत की. इस तरह यह लाचार महिला प्रधानाध्यापिका मुसीबत में पड़ गई.
अब आप अंदाजा लगाएं कि किसी की कक्षा में कोई रुकावट नहीं हो रही थी. स्कूल के टाइम-टेबल में कोई बाधा नहीं उत्पन्न हो रही थी. बस खाली वक्त में नमाज पढ़ने के लिए खाली जगह के प्रयोग को कितना बड़ा अपराध बना दिया गया.
अभी तक गुरूग्राम (हरियाणा) से ही ऐसी खबरें हर जुमे को आती थीं कि वहां सरकार द्वारा आवंटित खाली जगहों पर भी नमाज नहीं पढ़ने दिया जा रहा है. इसके खिलाफ पूर्व सांसद और वरिष्ठ मुस्लिम नेता मुहम्मद अदीब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं.
अब गुरुग्राम में नमाज कहां होगी, कहां नहीं होगी, का फैसला आने का इंतजार है, लेकिन अब यह खेल कर्नाटक में शुरू हो गया है. इतना ही नहीं, बंगलुरू के केएसआर रेलवे स्टेशन के कुलियों के विश्राम घर के एक हिस्से में नमाज पढ़े जाने को राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा बताते हुए बाहर के लोगों ने न सिर्फ मुसलमान कुलियों को नमाज से रोका, उस पर ताला भी लगा दिया.
इसमें जो दुख की बात है वह तो है ही, खुशी की बात यह है कि गैर-मुस्लिम समूहों ने इस हस्तक्षेप की निंदा की है. उन्होंने कहा कि प्लेटफॉर्म नंबर आठ पर एक मंदिर था जिसे रेलवे गिराना चाहता था, लेकिन मुस्लिम कुलियों ने रेलवे को ऐसा नहीं करने दिया. रेलवे स्टेशन से सटी कॉलोनी में एक चर्च भी है.
फिर एक संप्रदाय विशेष के साथ ऐसी असहिष्णुता कैसे बर्दाश्त की जा सकती है? मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने आज से एक सदी पहले अपने निम्नलिखित शेर जो में कुछ कहा था वह हमें आज देखने को मिल रहा हैः
रकीबों ने रपट लिखवाई है जा-जा के थाने में
कि अकबर नाम लेता है खुदा का इस जमाने में
हम कर्नाटक सरकार से जानना चाहते हैं कि हिजाब के खिलाफ अचानक यह अपमान कर देने वाला उपद्रव कैसे शुरू हुआ? राज्य के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश का ये कहना कि ‘‘जो छात्र ड्रेस कोड का पालन करने के लिए तैयार नहीं, वे अन्य विकल्प तलाशने के लिए स्वतंत्र हैं.
जिस प्रकार सेना में नियमों का पालन किया जाता है उसी प्रकार यहां (शैक्षणिक संस्थाओं में) भी होना चाहिए.’’ उनका यह बयान हिजाब का विरोध करने वालों का न केवल खुला समर्थन है बल्कि सैन्य नियमों की बात करके वह यह कहना चाहते हैं कि हमारे शैक्षिक संस्थान सैन्य छावनियां हैं, जबकि वह यह नहीं जानते कि बुद्धिजीवियों की बस्ती में दरोगाओं की जरूरत नहीं होती.
माननीय मंत्री जी ने छात्रों से राजनीतिक दलों के हथियार न बनने की अपील भी की है. हम इस बात पर उनका समर्थन करते हैं, लेकिन हम यह जानना चाहते हैं कि वह भगवा चरमपंथियों को यह सलाह क्यों नहीं देते और उनके इस व्यवहार पर सख्ती से प्रतिबंध क्यों नहीं लगाते ?
जैसा कि हमने इस सवाल को ऊपर उठाया है कि ये लड़कियां, उनकी बड़ी बहनें और माएं हिजाब में स्कूल और कॉलेज न जाने कब से जा रही हैं, अगर अब तक उनके हिजाब पहनने से कोई समस्या उत्पन्न नहीं हुई है.
अब अचानक कौन सी आफत आ गई? मंत्री जी ने एक ही सांस में यह भी कहा कि छात्राएं हिजाब पहनकर स्कूल आ सकती हैं लेकिन उन्हें इसे कैंपस के अंदर अपने बैग में रखना होगा.
हम इस प्रस्ताव का इस शर्त पर समर्थन करते हैं कि यदि कॉलेज में सह-शिक्षा नहीं दी जा रही है तो इस प्रस्ताव को स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं है. यदि सह-शिक्षा दी जा रही है तो लड़कियों को हिजाब पहनने की अनुमति दी जानी चाहिए.
जहां तक कॉलेज में ड्रेस कोड की बात है तो आप लड़कियों को स्कूल ड्रेस कोड के रंग के हिसाब से अपना हिजाब इस्तेमाल करने के लिए कह सकते हैं.
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं.)