मेहमान का पन्नाः ओआईसी, चीन और पाकिस्तान

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
ओआइसी में इमरान खान
ओआइसी में इमरान खान

 

wasayप्रो. अख़्तरुल वासे

इसी हफ़्ते पाकिस्तान में ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी. वह ‎ओआईसी, जिसे 1969 में रबात में 24 मुस्लिम देशों के ने मिलकर स्थापित किया था, ‎जिसको फ़िलिस्तीन समस्या के लिए चिंता की अभिव्यक्ति के रूप में स्थापित किया गया ‎था.

इसके साथ ही इस्लामी जगत में सऊदी अरब के बादशाह शाह फ़ैसल को ऐसे विश्व ‎नेता के रूप में प्रस्तुत करना था जिसे पूरी दुनिया इस्लामी जगत का एकमात्र वकील, ‎प्रवक्ता और लीडर समझे. रबात में ओआईसी की स्थापना के समय भारत को भी आमंत्रित ‎किया गया था लेकिन पाकिस्तान के अपने कदाचार और भारत के प्रति शत्रुता ने ओआईसी ‎को अपनी स्थापना से ही अपंग बना दिया था क्योंकि दुनिया का दूसरा सबसे अधिक ‎आबादी वाला देश भारत इसमें शामिल नहीं था.

आज इसके सदस्यों की संख्या 57 हो गई ‎है लेकिन ओआईसी आज भी विश्व मानचित्र पर आज भी निष्प्रभावी है. समय-समय पर वे ‎पाकिस्तान और सऊदी अरब के प्रभाव में अपनी बैठकें करते हैं और अपनी इच्छाओं और ‎नीतियों के अधीन रहकर प्रस्ताव भी पारित करते हैं.

ओआईसी के निराशाजनक प्रदर्शन ‎को इस तथ्य में देखा जा सकता है कि यह पहले अरब-ईरान युद्ध को रोकने में विफल ‎रहा और उसके बाद सद्दाम हुसैन के ख़िलाफ़ अमरीकी आक्रामकता के सहयोगी बने रहे, ‎गद्दाफ़ी को लीबिया में सत्ता से बेदख़ल करने में उन्होंने इस्लामी दुनिया की उभरती हुई ‎ताक़तों के ख़िलाफ़ उनके दुश्मनों का साथ दिया.

सीरिया और यमन में जो कुछ तबाही ‎हुई, ओआईसी उसमें अपनी ज़िम्मेदारियों से बच नहीं सका. सऊदी अरब, ईरान और तुर्की ‎जिस तरह से एक-दूसरे से लड़ते रहे हैं, वह किसी से ढ़का-छिपा नहीं है लेकिन फिर भी ‎ओआईसी कुछ नहीं कर सका.

अब तक भारत के तीन लोगों को ओआईसी की बैठकों में भाग लेने का अवसर ‎मिला है, सऊदी अरब में एम. जे. अकबर, मोरक्को में स्वयं लेखक और संयुक्त अरब ‎अमीरात में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज. इन तीनों अवसरों पर किसी ने‎ कोई विवादास्पद मुद्दा नहीं उठाया लेकिन सच्चाई यह है कि सुषमा स्वराज ने जिस ज़ोरदार ‎तरीक़ें से संयुक्त अरब अमीरात में ओआईसी सम्मेलन को संबोधित किया, उससे पाकिस्तान ‎इतना बौखला गया कि उसने अपनी सारी ऊर्जा और ध्यान भारत को कोसने और बदनाम‎ करने में लगा दी.

संयुक्त अरब अमीरात में हुई ओआईसी की बैठक में सुषमा स्वराज को आमंत्रित करने ‎पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई थी लेकिन यह कैसी अजीब बात है कि उसी पाकिस्तान ने ‎ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक में, जिसमें पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ‎स्वयं उपस्थित थे, यह कारनामा कर दिखाया कि चीनी विदेश मंत्री को विशेष अतिथि के ‎‎रूप में सम्मेलन में विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था लेकिन उस समय पाकिस्तान और ‎ओआई के अन्य अधिकारियों ने शिनजियांग के मुसलमानों की दुर्दशा पर कोई सहानुभूति ‎नहीं दिखाई.

मुस्लिम बहुल प्रांत शिनजियांग को चीन ने एक बड़ी जेल में बदल दिया है ‎जहां मुसलमान निहत्थे, जंजीरों में जकड़े हुए हैं और धार्मिक क्रिया-कलापों के प्रतिबन्ध भी ‎‎झेल रहे हैं.

स्पष्ट है कि पाकिस्तान चीन के प्रति अपनी वफादारी में चीनी मुसलमानों पर चीन ‎की सरकार द्वारा होने वाले अत्याचारों को इस बैठक में उठा ही नहीं सकता था लेकिन ‎दुख इस बात का है कि किसी भी मुस्लिम देश ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाई.

‎कितनी अजीब बात है कि वह संगठन जिसकी स्थापना ही दमन के खिलाफ, बर्बरता के ‎खिलाफ, जमीन हथियाने के खिलाफ, बैतल-मक़दिस की बहाली और अल-अक़्सा मस्जिद ‎की अपवित्रता के खिलाफ हुई थी, और जो आज 57 देशों का संगठन है उनमें से एक भी ‎सदस्य ने चीन की क्रूरता ख़िलाफ़ एक शब्द भी नहीं कहा, लेकिन इस पर किसी को कोई ‎आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए.

अब जबकि संस्थापकों सहित ओआईसी की स्थापना के पीछे ‎प्रेरक शक्ति वाले देश धीरे-धीरे इसकी स्थापना के मूल उद्देश्य अर्था त्फिलीस्तीनियों के ‎समर्थन से दूर होते जा रहे हैं तो उन्हें शिनजियांग में चीनी की सरकार का उत्पीड़न कैसे‎ दिखाई देगा?‎

देश-विदेश में भी यह प्रश्न बार-बार उठता है कि भारत को ओआईसी में एक ‎पर्यवेक्षक के रूप में अवश्य शामिल करना चााहिए लेकिन एक भारतीय के रूप में, एक ‎मुसलमान होने की हैसियत से इस मांग को भारत और उसके भारतीय मुसलमानों का ‎सामूहिक अपमान समझता हूँ.

भारत में मुसलमान एक धार्मिक इकाई हैं जो यहां एक हजार ‎से अधिक वर्षों से रह रहे हैं. वह शासक भी रहे और शासन के अधीन भी रहे और ‎लगभग 75 वर्षों से इस धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में सत्ता में समान भागीदार हैं. ‎निःसंदेह, उनकी समस्याएं भी हैं और पीड़ाएं भी लेकिन भारत का संविधान, यहां की ‎सिविल सोसाइटी, यहां के बहुसंख्यक हिन्दू बुरे वक़्त में हमेशा उनके काम आते हैं.

‎पाकिस्तान जैसा इस देश में धर्म के नाम पर आतंक का व्यापार नहीं होता है जहां पर ‎मस्जिद, दरगाह, इमामबाड़ा, स्कूल, कॉलेज, गलियां और सड़कें सुरक्षित नहीं हैं. जो देश ‎‎1971 में खुद को उजड़ने से नहीं बचा सका, वह ओआईसी जो फिलिस्तीनियों के काम नहीं ‎आया, जिसने सद्दाम को फांसी पर चढ़वा दिया, गद्दाफी को निर्दयता से मरवा डाला, जिसने ‎ईराक़, सीरिया, लीबिया, सोमालिया और यमन के हंसते-खेलते बच्चों, ममता की मूरत ‎माओं, मेहनती युवाओं और दुआएं देते बुजुर्गों को मौत के घाट उतरवा दिया, आबादियों को ‎मलबे में बदल दिया, उससे कोई क्या उम्मीद रख सकता है?

भारतीय मुसलमान ख़ुद पर ‎विश्वास करता है, ख़ुदा पर भरोसा करता है और इस देश के अधिकांश लोगों के न्याय ‎और मानवता में विश्वास करता है. हमारी कल भी यह ताक़त थी और आज भी है. हमारे ‎पास अल्लाह तआला का दिया हुआ ‘‘लातक़नतूमिर-रहमतिल्लाह’’(अल्लाह की रहमत ‎‎(कृपा) से निराश ना हो.) का कुरआनी संदेश है और यही हमारे लिए काफ़ी है.

हमें ‎ओआईसी जैसे अपंग और बेकार संगठनों की जरूरत नहीं है. बस रहे नाम अल्लाह का.

लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफ़ेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज़) हैं.