मेहमान का पन्नाः पाकिस्तान में धर्म के नाम पर अत्याचार

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 26-02-2022
पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में एक व्यक्ति को संगसारी से मौत दे दी गई
पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में एक व्यक्ति को संगसारी से मौत दे दी गई

 

प्रो. अख़्तरुल वासे

हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में प्रायः धर्म के नाम पर जो कुछ होता हुआ दिखाई ‎देता है, वह न तो इस्लाम के अनुकूल है और न ही किसी सभ्य समाज को शोभा देता है. ‎पाकिस्तान में निजाम-ए-मुस्तफा (शरिआ क़ानून) की स्थापना के लिए जोर-शोर से नारे ‎लगाए जाते हैं, लेकिन ऐसे नारे लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि निजाम-ए-मुस्तफा की ‎स्थापना की मूल शर्त मुस्तफ़ा (सल्ल.) की नैतिकता है.

पाकिस्तान में पैगंबर मुहम्मद (सल्ल) ‎की ईशनिंदा और इस्लाम और कुरान के अनादर के ख़िलाफ़ पाकिस्तान में जो कानून बनाए ‎गए हैं, खुद पाकिस्तान में रहने वाले और वहां के हालात व स्थिति को जानने वाले इस ‎बात को मानते हैं कि इनका प्रयोग अधिकतर निजी वैमनस्यता निकालने के लिए किया ‎जाता है.

पहले इन कानूनों का प्रयोग पाकिस्तान के ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के ‎खिलाफ किया जाता था लेकिन धीरे-धीरे अब इनका प्रयोग मुसलमानों से बदला लेने के ‎लिए स्वयं उनके अपने ही बहुतायत में कर रहे है.


ऐसी ही एक भयावह घटना हाल ही में ‎पाकिस्तानी पंजाब की राजधानी लाहौर से 275 मील दूर खानेवाल जिले के जंगल डेरावाला ‎गांव में हुई, जहां एक पागल आदमी को भीड़ ने इस प्रकार प्रताड़ित किया कि पुलिस भी ‎लाचार व असहाय हो गई और उस व्यक्ति ने मौके पर ही दम तोड़ दिया. उस व्यक्ति पर ‎पवित्र कुरान का अपमान करने का आरोप लगाया गया था.

सबसे पहले, आप किसी पागल ‎व्यक्ति से उचित, विनम्र और संतुलित रवैये की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? जो व्यक्ति ‎मानसिक विकार के कारण अच्छे और बुरे के बीच का अंतर नहीं जानता हो, उसके साथ ‎बुद्धिमान व्यक्तियों को तो ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए. आपका धार्मिक ग्रंथ जो खुदा ‎की आखिरी किताब के रूप में हमारे आख़िरी नबी हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के द्वारा हमें ‎दिया, उसके अपमान पर आपका गुस्सा उचित हो सकता है लकिन इसी के साथ बुद्धिमानों ‎को इतना तो याद रखना चाहिए कि ऐसा व्यक्ति को पुलिस के हवाले कर देना चाहिए ‎ताकि कानून अपना काम कर सके, न कि कानून अपने हाथ में लेना चाहिए.

यह बात याद ‎रहनी चाहिए कि मुश्ताक अहमद एक मुसलमान था. अभी कुछ ही समय पहले पाकिस्तान ‎के पंजाब प्रांत में एक कपड़ा कारखाने में पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) का अपमान करने के नाम ‎पर एक श्रीलंकाई कर्मचारी को जिस प्रकार भीड़ ने निशाना बनाकर उसे मार डाला, वह ‎अभी तक हम सबको याद है.‎

पाकिस्तान, जो खुद को ईश्वर प्रदत्त राज्य कहता है और जो इस्लाम की शिक्षाओं ‎को लागू करने के लिए बनाया गया था, वहां गैर-मुसलमानों के साथ जो हुआ वह ‎‎शर्मनाक और दुखदायी है. इसी प्रकार उस अतिवाद और उग्रवाद को क्या कहा जाए ‎जिसमें मस्जिदें, खानकाहें (मठ) और दरगाहें ही सुरक्षित नहीं हैं और सांप्रदायिक कलह के ‎‎द्वारा उत्पन्न नफरत का माहौल पाकिस्तान को दीमक की तरह खाए जा रहा है. ‎


इतना ही नहीं, हमें याद होगा कि मलाला यूसुफजई नाम की लड़की को कुछ साल ‎पहले इसलिए गोली मार दी गई कि वह लड़कियों की शिक्षा के पक्ष में बोल रही थी. ‎इंग्लैण्ड की सरकार और वहां की कुछ गैर-सरकारी संस्थाएं धन्यवाद की पात्र हैं जिन्होंने ‎मलाला का इलाज भी कराया, उसकी शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया और उस समय के ‎नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. लेकिन यह अत्यंत कष्टदायक थी कि जब ‎दुनिया पाकिस्तान की एक बेटी को इस पुरस्कार से सम्मानित कर रही थी, उसी वक्त ‎पेशावार के एक स्कूल में मलाला के और शिक्षा के विरोधी तत्वों ने नन्हे-मुन्ने बच्चों को ‎गोलियों से भून दिया गया और सबसे दुखद बात यह है कि इन सबके लिए धर्म को ‎औचित्य के रूप में प्रयोग किया गया.

‎यह बात कौन नहीं जानता कि जब पैगंबर (सल्ल.) ‎ग़ार-ए-हिरा (हिरा गुफा) से वापस आए तो वह अपने साथ इकरा का संदेश लाए थे.

एक ‎‎ऐसी दुनिया जहां ज्ञान पर कुछ ही लोगों एकाधिकार था वहां पर पैगंबर (सल्ल.) ने स्पष्ट रूप से कहा कि ‘‘इल्म हासिल करना फर्ज (कर्तव्य) है हर ‎मुसलमान मर्द और हर मुसलमान औरत पर.’’ आप (सल्ल.) ने यह भी कहा कि ‘‘इल्म ‎हासिल करो माँ की गोद से लेकर कब्र तक.’’ आप (सल्ल.) ने यह निर्देश दिया कि ‎‎‘‘हिकमत (कला-कौशल) मोमिन की गुमशुदा पूंजी है, वह जहां से मिले हासिल करो.’’ आप ‎‎(सल्ल.) ने केवल कहा ही नहीं बल्कि उसको व्यवहारिक रूप में करके दिखाया.

बद्र की ‎लड़ाई में जीत के बाद जब मुसलमान मक्का वासियों को युद्धबंदियों के रूप में मदीना लाए, ‎तो उनकी रिहाई के लिए केवल दो शर्तें रखी गईं, या तो जुर्माना भरो या मदीना के ‎मुस्लिम बच्चों को शिक्षित करों और छुटकारा पा लो. जबकि हम सब जानते हैं कि वह ‎कुरआन को मानते नहीं थे, हदीस को जानते नहीं थे, इस्लाम और पैगम्बर-ए-इस्लाम के ‎‎खुले हुए दुश्मन थे, फिर भी आप (सल्ल.) ने उनसे क्यों शिक्षा दिलवाई?

आप (सल्ल.) ने ‎उनसे भी शिक्षा दिलवाकर यह बता दिया कि हमें अपने बच्चों के धर्म की चिंता अवश्य ‎करनी चाहिए लेकिन शिक्षक का धर्म नहीं बल्कि उसकी योग्यता और काबिलियत को ‎देखना चाहिए. समझ में नहीं आता कि पाकिस्तानी समाज में एक वर्ग विशेष किस प्रकार ‎शिक्षा का दुश्मन बना हुआ है.

एक और बात, बुखारी शरीफ के अनुसार, पवित्र पैगंबर ‎‎(सल्ल.) ने कहा है कि गाली देना कदाचार है और हत्या करना ‎नास्तिकता है. फिर भी पाकिस्तानी समाज में यह उत्पीड़न और हिंसा कहां से आ गई?


हम ‎‎यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि दुनिया में कहीं भी किसी पर अत्याचार और दुर्व्यवहार होता ‎है तो हम उसके पुरजोर खिलाफ हैं और हम एक जगह के उत्पीड़न को दूसरी जगह के ‎उत्पीड़न के रूप में न्यायोचित ठहराने के पक्ष में नहीं हैं.‎

पाकिस्तान सरकार में देश के प्रधान मंत्री, पंजाब के मुख्यमंत्री, धार्मिक मामलों के ‎मंत्री, मानवाधिकार मंत्री और अन्य लोगों ने स्पष्ट रूप से इसकी कड़ी निंदा की है, लेकिन ‎जब तक ऐसे लोगों पर लगाम नहीं लगाई जाएगी उस समय तक पाकिस्तान की छवि ‎दुनिया में कलंकित होती रहेगी.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अल्लाह के आखिरी रसूल ‎‎(सल्ल.) ने ईमान वालों (आस्तिकों) की यह पहचान बताई है कि ‘‘वह जो कुछ अपने लिए ‎पसंद करते हैं वही दूसरों के लिए भी पसंद करते हैं.’’ पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) के इस ‎कथन से यह अनिवार्य हो जाता है कि हम गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देशों और समाजों में ‎वह सभी अधिकार और स्वतंत्रता जो मुसलमानों के लिए चाहते हैं वही मुस्लिम बाहुल्य ‎समाजों और देशों में अपने गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक भाईयों और बहनों को पहले देकर एक ‎मिसाल कायम करें. ‎

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं.)