पत्रकारिता @ खतरा

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 03-05-2021
पत्रकारिता @ खतरा
पत्रकारिता @ खतरा

 

मलिक असगर हाशमी
 
पत्रकारिता करना जान की बाजी लगाने जैसा है. भयावह स्थिति में जब लोग घरों में दुबके रहते हैं. पत्रकार आंख से आखं मिलाकर उस स्थिति का सामना करता है और कई बार हालात का शिकार भी हो जाता है. पिछले एक वर्ष से जारी कोरोना की सुनामी  भारत में कई दिग्गत पत्रकारों को बहा ले गई. उनमें एक बड़ा नाम रोहित सरदाना का भी है.
 
अंतरराष्ट्रीय मीडिया निगरानी संगठन के एक आंकड़े के अनुसार, 1 मार्च 2020 से अब तक केवल कोरोना के कारण 602 पत्रकारों की मौत हुई है. लातिनी अमेरिका में सर्वाधिक 303, एशिया में 145, यूरोपीय देशों में 94, उत्तरी अमेरिका में 32 और अफ्रीका में 28 मौतें दर्ज की गईं. अन्य देशों का तो पता नहीं, पर भारत में स्थिति है कि ड्यूटी के दौरान मारे जाने वाले पत्रकारों के परिजनों को संस्थान की ओर से कोई खास मदद नहीं मिलती.
 
यही नहीं इस कोरोना ने मीडिया मालिकों को पत्रकारों को घर बैठाने का भी मौका दे दिया है. महामारी की आड़े में पिछले वर्ष करीब तीन हजार पत्रकार नौकरी से बाहर कर दिए गए थे. मीडिया घराने  पत्रकारों के वेतन आयोग की सिफारिशों का भी उल्लंघन करते रहे हैं. सरकारें मीडियाकर्मियों की मदद को नहीं आतीं.
 
अमेरिका में भी अच्छी स्थिति नहीं

यह तो कोरोना की बात थी. आम दिनों में भी पत्रकारों की स्थिति कुछ बेहतर नहीं होती. अमेरिका जैसे अति विकसित देशों में भी पत्रकारों की दशा खराब है.ईरानी मूल के अमेरिकी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या कर दी गई थी.
 
उनकी हत्या का आरोप एक देश के प्रिंस पर है. 2020 की अमेरिकी सुरक्षा समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, मैक्सिको और अफगानिस्तान में रिपोर्टिंग के दौरान बड़ी संख्या में पत्रकार मारे गए, जबकि चीन, तुर्की और मिस्र में पिछले साल सर्वाधिक पत्रकार गिरफ्तार किए गए.
 
रिपोर्ट में कहा गया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब प्रेस पर भारी पड़ रही है. पत्रकारों को धमकाने, दुर्व्यवहार करने की बात आम है. पत्रकार यदि किसी के कहने पर न चलें तो उनकी हत्या कर दी जाती है. संयुक्त राज्य अमेरिका का कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बचाए रखना है तो पत्रकारों  और मीडियाकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करना होगा.
 
पाकिस्तान में स्थिति सबसे खराब

17 मार्च 2021 की बात है. युवा पत्रकार अजय कुमार लालवानी की पाकिस्तान के सुक्कुर में हत्या कर दी गई. उसे तीन गोलियां मारी गई थीं. घायल पत्रकार को अस्पताल ले जाया गया, पर उसकी जान नहीं बचाई जा सकी. अजय कुमार लालवानी एक टीवी चैनल के लिए काम किया करते थे.
 
साथ में एक स्थानीय अखबार के लिए रिपोर्टिंग भी. अपनी मौत से पहले, वह एक फर्जी पुलिस मुठभेड़ में मारे गए सिंध विश्वविद्यालय जमशोरो के छात्र इरफान जतोई को लेकर जांच-पड़ताल में लगा था. इस दौरान उसे धमकियां भी मिल रही थीं, जिसका जिक्र उसने अपने साथी पत्रकारों से किया था. 
 
पाकिस्तान में पत्रकारों को धमकियाँ मिलना आम बात है. कभी-कभी धमकियां कुछ पर काम कर जाती हैं और कुछ पर नहीं. अजय लालवानी ने भी धमकी को नजरअंदाज किया और मारा गया. जब पत्रकार समुदाय ने हत्या का विरोध किया, तो स्थानीय पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया.
 
मारे गए पत्रकार के परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिस असली दोषियों को गिरफ्तार नहीं कर रही है, इसलिए अजय कुमार लालवानी की हत्या के मामले में जांच अधिकारी को स्थानांतरित कर दिया गया.
 
जैसे ही जांच अधिकारी बदल गया. आरोपी भी बदल गया. पुलिस ने दो स्थानीय राजनेताओं के अलावा एक पुलिस अधिकारी को अजय कुमार लालवानी के हत्यारे के रूप में पहचान की. वैसे अभी तीनों छूटे हुए हैं.
 
पाकिस्तान में पत्रकारों के अधिकांश हत्यारे या तो भगोड़े हैं या अज्ञात हैं. 16 फरवरी, 2020 को, सिंध टीवी चैनल से जुड़े पत्रकार अजीज मेमन का शव मेहराबपुर, सिंध में एक स्थानीय नहर में पाया गया. पुलिस ने इस घटना को आत्महत्या घोषित कर दिया.
 
पत्रकारों ने पुलिस की स्थिति को खारिज करते हुए कहा कि यह आत्महत्या नहीं, हत्या थी. शहर-दर-शहर विरोध प्रदर्शनों के दौरान, अजीज मेमन हत्या मामले की जांच बदली गई और फिर आत्महत्या के बजाय मौत को हत्या घोषित किया गया. 
 
हत्या के मामले में मुख्य संदिग्ध अभी भी परदे के पीछे है. मार्च 2018 में, दैनिक नवा-ए-वक्त से जुड़े पत्रकार जीशान अशरफ बट की सांभरियल में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. जब उसे गोली मारी गई, वह फोन पर एक स्थानीय पुलिस अधिकारी को अपने हत्यारे का नाम बता रहा था जो उस पर हमला करने वाला था.
 
फोन कॉल के दौरान उन पर गोलियां चलाई गईं. सियालकोट पुलिस के पास अभी भी इस फोन कॉल की रिकॉर्डिंग है, लेकिन मुख्य आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है. 23 जनवरी, 2020 को बलूचिस्तान के बरखान में एक पत्रकार अनवार जन खेतान की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
 
अनवर जन खेतरण की हत्या में एफआईआर में बरखान के एक प्रांतीय मंत्री का नाम था, लेकिन पुलिस मंत्री के एक अंगरक्षक को गिरफ्तार करने के लिए तैयार थी. असली अपराधी को नहीं छुआ.
 
पिछले साल इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि 1990 और 2020 के बीच पाकिस्तान में ड्यूटी के दौरान 138 पत्रकार मारे गए. पाकिस्तान में पत्रकारों के खिलाफ अपराध बढ़े है. जब अमेरिकी दबाव में जनरल परवेज मुशर्रफ की सरकार ने अपनी नीति बदली तो पाकिस्तान में राज्य के खिलाफ उग्रवाद की घटना बढ़ गई.
 
एक ओर, राज्य ने मीडिया को राष्ट्रहित और देशभक्ति के नाम पर तथ्यों को छिपाने के लिए मजबूर किया, दूसरी ओर, उग्रवादियों ने मीडिया को साम्राज्यवादी शक्तियों का एजेंट कहना शुरू कर दिया. मीडिया दोनों पक्षों के लिए एक लक्ष्य बन गया. हयात खान, उत्तरी वजीरिस्तान के एक पत्रकार, 2006 में इस्लामाबाद आए और उन्होंने बताया कि वह बहुत दबाव में हैं.
 
उन्होंने मीडिया में मीर अली के अमेरिकी ड्रोन हमले का खुलासा किया था. सरकार ने ड्रोन हमले को बमबारी कहा, लेकिन हयातुल्ला खान ने हमले में इस्तेमाल अमेरिकी मिसाइल के टुकड़े की तस्वीरें जारी कीं, जिसमें लिखा था, ‘‘मेड इन यूएसए.‘‘ हयात खान को सरकार के साथ सहयोग करने या पत्रकारिता छोड़ने के लिए कहा गया.
 
हयात खान ने तब पूछा, ‘‘मुझे क्या करना चाहिए?‘‘ क्या मुझे पत्रकारिता छोड़ देनी चाहिए? ” तक पाकिस्तानी मीडिया ने उन्हें प्रोत्साहित किया और कहा कि उसे पत्रकारिता नहीं छोड़नी चाहिए. वह वापस चले गए. कुछ दिनों बाद हयात खान का अपहरण कर लिया गया. इसपर इस्लामाबाद में बहुत शोर मचा गया.
 
संसद भवन के बाहर प्रदर्शन हुए. प्रदर्शनकारियों को लग रहा था कि हयात खान को छोड़ दिया जाएगा. तब यह विश्वास चकनाचूर हो गया. हयात खान की बुलेट से छेदा शरीर सड़क पर फेंका मिला. पत्रकारों ने घटना की जांच की मांग की. तत्कालीन आंतरिक मंत्री आफताब शेरपाओ के इशारे पर जांच आयोग का गठन किया गया था.
 
जब हयात खान की पत्नी ने आयोग को सच्चाई बताने का फैसला किया, तो पीड़ित महिला को उसके घर में मार दिया गया. तब उनके एक और भाई को मार दिया गया था. उसके बाद हयात खान के सबसे छोटे  मीर अली  छोड़कर पेशावर चले गए. जांच आयोग चुप रहा, पीड़िता को न्याय नहीं मिला, लेकिन हत्या के 15 साल बाद, 23 मार्च, 2021 को राष्ट्रपति ने हयात खान को मेडल ऑफ करेज का पुरस्कार देने की घोषणा की, जो उनके उत्तराधिकारी कमल हयात को मिली.
 
हयात खान के परिवार को न्याय नहीं मिला. मेडल ऑफ करेज से सम्मानित किया गया. यह नहीं बताया गया कि हयात खान ने किसके खिलाफ बहादुरी दिखाई. पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर कहते हैं, हम स्वात में जियो न्यूज के संवाददाता मूसा खान खेल के हत्यारों को न्याय नहीं दिला सकते. पाकिस्तान में पत्रकारिता एक खतरनाक पेशा बन गया है.