भारतीय मुस्लिमों में उच्च शिक्षाः एक सकारात्मक स्थिर विकास

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 23-06-2021
भारतीय मुस्लिमों की उच्च शिक्षा में स्थिति बेहतर हुई
भारतीय मुस्लिमों की उच्च शिक्षा में स्थिति बेहतर हुई

 

साकिब सलीम

आजादी के बाद से ही भारतीय मुसलमान शिक्षा व्यवस्था से हाशिये पर ही रहे हैं. यह एक सामान्य अनुभव है कि बड़ी संख्या में भारतीय मुसलमान स्कूल छोड़ देते हैं और कभी कॉलेज में प्रवेश नहीं करते हैं. सच्चर समिति की रिपोर्ट-2006 ने इस अनुभव की पुष्टि की और शिक्षा के मामले में मुसलमानों और अन्य सामाजिक-धार्मिक समूहों के बीच एक बड़ा अंतर दिखाया. मुसलमानों के लिए सकारात्मक कार्रवाई की मांग उठाई. सरकार को समुदाय को शैक्षिक रूप से ऊपर उठाने के लिए उपाय अपनाने के लिए कहा गया था.

सरकारी नीतियां बड़े पैमाने पर शिक्षा का निर्धारण करती हैं, जो किसी भी आबादी के समूह को प्राप्त होगी. प्रमुख कारक जैसे - शैक्षणिक संस्थानों का स्थान, शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता, अन्य संसाधनों तक पहुंच, जनसंख्या के किसी विशेष समूह के बीच शिक्षा के प्रसार को निर्धारित करते हैं. इसलिए, मुस्लिम समूहों ने भारतीय मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए आजादी के बाद से देश पर शासन करने वाली सरकार और राजनीतिक दलों को दोषी ठहराया. तब से, शासन द्वारा उपायों को अपनाया गया और आगे बढ़ाया गया, जिस पर अक्सर मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह होने का ‘कथित’ दोषारोपण किया जाता है.

2012 से, उच्च शिक्षा के लिए अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआईएसएचई) सालाना आयोजित किया जाता है. सर्वेक्षण देश के सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्टैंड अलोन संस्थानों से डेटा एकत्र करता है. 2020 के सर्वेक्षण में 1043 विश्वविद्यालय, 42343 कॉलेज और 11779 स्टैंड अलोन संस्थान शामिल थे.

कुल 3 करोड़ 85 लाख छात्र उन पाठ्यक्रमों में नामांकित हैं, जो वरिष्ठ माध्यमिक परीक्षा यानी अंडर-ग्रेजुएशन, पोस्ट-ग्रेजुएशन, पीएचडी, डिप्लोमा आदि के बाद किए जाते हैं. इनमें से केवल 21 लाख मुस्लिम समुदाय के थे, जो कुल नामांकन का 5.5 प्रतिशत है. जनसंख्या में लगभग 14 प्रतिशत अनुपात के साथ उच्च शिक्षा में नामांकन में हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है. लेकिन, यह अनुपात 2013 के बाद से लगातार वृद्धि दर्शाता है, जब 12.5 लाख मुस्लिम (या, कुल नामांकन का 4.2 प्रतिशत) उच्च शिक्षा में नामांकित हुए.

(तालिका-1)

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जब हम 2013 में प्रकाशित पहले सर्वेक्षण के विपरीत 2020 में प्रकाशित सर्वेक्षण का अध्ययन करते हैं, तो मुसलमानों के बीच वृद्धि स्पष्ट है.

2012-13 में किए गए पहले सर्वेक्षण के दौरान, भारत में उच्च शिक्षा में नामांकित कुल छात्रों में से 4.20 प्रतिशत मुस्लिम थे, जो 2017-18 में बढ़कर 5.00 प्रतिशत हो गए और अब 5.5 प्रतिशत हो गए हैं.

देश के लगभग हर राज्य ने भी मुसलमानों के नामांकन के मामले में सकारात्मक वृद्धि दिखाई है. गुजरात में उच्च शिक्षा में मुस्लिम अनुपात पिछले सात वर्षों के दौरान 1.83 प्रतिशत से बढ़कर 2.85 प्रतिशत हो गया. यह राज्य में गैर-मुसलमानों के बीच 16.95 प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले नामांकन में 83.94 प्रतिशत की वृद्धि है. इसी तरह, उत्तर प्रदेश में मुस्लिम नामांकन में 75.32 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि अन्य के नामांकन में 34.99 प्रतिशत की वृद्धि हुई. जबकि, पश्चिम बंगाल धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है, जहां इसी अवधि के दौरान उच्च शिक्षा में मुसलमानों का अनुपात 10.00 प्रतिशत से बढ़कर 10.85 प्रतिशत हो गया.

(तालिका-2)

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नामांकन और डिग्री प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं है, व्यक्ति को उसके अनुसार रोजगार प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए. 2012-13 में, केवल 2.9 प्रतिशत शिक्षण स्टाफ, या 38,388 शिक्षक मुस्लिम पाए गए. यह अनुपात अब बढ़कर 5.6 प्रतिशत या 83,494 हो गया है. यह भारत में उच्च शिक्षा स्तर पर शिक्षण स्टाफ के बीच 117 प्रतिशत की वृद्धि है. देश में शैक्षिक रूप से सबसे पिछड़े समुदाय के लिए यह प्रवृत्ति स्वस्थ है.

भले ही सकारात्मक वृद्धि हुई हो, उच्च शिक्षा में मुसलमानों का अनुपात प्रत्येक राज्य में जनसंख्या में उनके अनुपात से बहुत कम है. राष्ट्र को विकसित करने के लिए अन्य सामाजिक-धार्मिक समूहों के साथ समुदाय को समता में लाने के लिए सरकार जो दिशा ले रही है, उसमें तेजी लाने की जरूरत है.