‘वैक्सीन पासपोर्ट’ में भारत कहां !

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 12-04-2021
‘वैक्सीन पासपोर्ट’
‘वैक्सीन पासपोर्ट’

 

 हरजिंदर
 
कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच लोगों को टीके लग रहे हैं और उसके डिजिटल सर्टिफिकेट भी लगातार जारी हो रहे हैं. यह कहा जा सकता है कि देश में कोरोना वैक्सीनेशन का काम काफी तेजी से चल रहा है. दुनिया के कईं देशों के मुकाबले ज्यादा तेजी से. इस अभियान के पहले 84 दिनों में तकरीबन 10 करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है, हालांकि इनमें साढ़े आठ करोड़ से ज्यादा वे लोग हैं  जिन्हें अभी तक वैक्सीन की केवल एक ही डोज दी जा सकी है.
 
अगर इस गति से वैक्सीनेशन जारी रहता है तो पूरे देश के वैक्सीनेशन में तीन साल से भी ज्यादा का समय लग सकता है. अगर हम दुनिया के कईं दूसरे देशों को देखें तो यह गति काफी धीमी है. अमेरिका ने जून के अंत तक सभी को टीका लगा देने का लक्ष्य तय किया है.
 
ब्रिटेन इसके कुछ महीने बाद ही यह लक्ष्य हासिल कर लेगा. तब शायद पश्चिमी यूरोप के देशों में भी सभी को टीका लगाने का काम पूरा हो चुका होगा. यानी भारत भले ही दुनिया में सबसे तेजी से टीकाकरण की कोशिश कर रहा हो लेकिन इतनी बड़ी आबादी के लिए जिस तेजी की जरूरत है, उससे वह अभी बहुत दूर है. पिछले कुछ दिनों की घटनाएं यह बता रही हैं कि इस गति को बहुत ज्यादा बढ़ाना आसान नहीं.
 
पिछले दिनों सरकार ने यह फैसला किया कि 45 साल से उपर की उम्र वाले सभी लोगों का वैक्सीनेशन होगा और यह काम हफ्ते में सातों दिन चलेगा. नतीजा यह हुआ कि लोग बड़ी संख्या में उमड़े और वैक्सीन की कमी पड़ने लगी. लेकिन यह मामला प्रोडक्शन और सप्लाई का है जिसे उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में सुलझा लिया जाएगा. इसके आगे जो मसला खड़ा है वह ज्यादा बड़ा है.
 
दुनिया भर में वैक्सीन का इस्तेमाल इस सोच के साथ हो रहा है कि लोगों को महामारी से बचाव की काफी हद तक इम्युनिटी देकर हालात को सामन्य किया जा सके. यानी चीजों को फिर उसी हाल में पहंुचा दिया जाए जहां वे डेढ़ साल पहले थीं. लोग दुकानों, कारखानों में जा सकें, वे कारोबार कर सकें और मनोरंजन भी और बच्चे फिर से स्कूल काॅलेजों में पढ़ने के लिए बेखौफ पहंुच सकें. 
 
वैक्सीनेशन की जरूरत के मुकाबले धीमी रफ्तार होने के कारण भारत के सामने सवाल यह खड़ा है कि हालात दुरुस्त करने के लिए वैक्सीन लगवा लेने वालों की भूमिका कैसे बनाई जाए ? वैक्सीन का टीका लगवा लेने के बाद लोगों को जो सर्टिफिकेट दिया जा रहा है, उसका इस लड़ाई में इस्तेमाल कैसे किया जाए ?
 
दुनिया में यह इस्तेमाल शुरू हो गया है, और कुछ में इसकी तैयारी भी चल रही है. इसे वैक्सीन पासपोर्ट का नाम दिया जा रहा है. यानी अगर आपके पास वैक्सीन सर्टिफिकेट है तो आप सिनेमा देखने जा सकते हैं, आप नाइट क्लब में जा सकते हैं, आप किसी मेले-ठेले का हिस्सा बन सकते हैं और सबसे बड़ी बात है कि आप तभी सफर कर सकते हैं अगर आपके पास वैक्सीन का सर्टिफिकेट है.
 
कंपनियां ऐसे सर्टिफिकेट वाले लोगों को ही दफ्तर आने दे सकती हैं. इजराएल ने तो ग्रीन पास नाम से इसे शुरू भी कर दिया है. आस्ट्रेलिया, डेनमार्क और स्वीडन भी इसे शुरू करने जा रहे हैं. यूरोपियन यूनियन ने भी इसकी तैयारी कर ली है. अमेरिका के कुछ राज्यों में तो यह आंशिक रूप से शुरू भी हो चुका है.
 
ब्रिटेन में इसे लेकर खासा विचार विमर्श चल रहा है. इसका विरोध भी हो रहा है. एक तो इसलिए कि यह निजता का उल्लंघन करता है, दूसरे इसलिए कि इससे उन लोगों के साथ भेदभाव का रास्ता खुलता है जो किसी वजह से वैक्सीन नहीं लगवा सके हैं.
भारत में क्योंकि वैक्सीन अभी आबादी के एक बहुत छोटे हिस्से को ही लग पाई है इसलिए यहां अगर ऐसा होता है तो यह भेदभाव कुछ ज्यादा बड़ा हो जाएगा. इसका भूगोल और समाजशास्त्र भी परेशान करने वाला हो सकता है.
 
गरीबों, अल्पसंख्यकों, दलित जातियों, आदिवासियों के अलावा देहाती और दूर-दराज के इलाकों में रहने वाली एक बहुत बड़ी आबादी लंबे समय के लिए अपने अधिकारों से बिना किसी गलती के वंचित हो जाएगी.हालांकि पासपोर्ट का यह विचार एक दूसरे तरह से भारत पहुंच भी चुका है.
 
इन दिनों अगर आपको हवाई सफर करना है तो कोविड निगेटिव का सर्टिफिकेट देना ही होगा. इसी तरह शुरू में इनकार के बाद उत्तरखंड सरकार ने अब यह नियम बना दिया है कि अगर कोई हरिद्वार के कुंभ में शामिल होना चाहता है तो कोविड निगेटिव का आरटी-पीसीआर सर्टिफिकेट देना ही होगा.
 
पिछले साल के लाॅकडाउन में कईं राज्यों ने राज्य की सीमा में प्रवेश के लिए इसे जरूरी कर दिया था. पिछले कुछ दिनों कोविड का प्रसार जिस तरह से बढ़ा है अगर वह कुछ और दिन जारी रहता है तो ऐसे नियम फिर लौट सकते हैं. ऐसे में अगर कुछ राज्यों ने वैक्सीन सर्टिफिकेट वालों को आने की इजाजत दी तो फिर वैक्सीन पासपोर्ट शुरू हुआ ही समझिए.
 
यहां एक और खबर पर ध्यान देना जरूरी है. भारत में संक्रमण दुबारा बढ़ने के बाद न्यूजीलैंड ने भारत से आने वाली उड़ानों और भारतीय नागरिकों के वहां पहंुचने पर रोक लगा दी है. यह एक दूसरे संकट की ओर इशारा कर रहा है जिसकी इन दिनों चर्चा भी शुरू हो चुकी है. दुनिया भर में हवाई यातायात फिर से पूरी तरह बहाल करने की जो बात चल रही है उसमें यह कहा जा रहा है कि यात्रा सिर्फ उन्हीं लोगों को करने दी जाए जिनके पास वैक्सीन सर्टिफिकेट हो.
 
अगर ऐसा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है तो भारतीयों के लिए एक नई मुसीबत खड़ी हो सकती है.भारत ने कोविड-19 से लड़ने का अपना पूरा दांव दो वैक्सीन के भरोसे खेला है. एक है आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और आस्ट्राजेंका की कोवीशील्ड और दूसरी भारत बाॅयोटेक की कोवैक्सीन.
 
कोवीशील्ड को तो पूरी दुनिया में मान्यता मिल चुकी है लेकिन कोवैक्सीन को अभी तक किसी भी बड़े अंतराॅष्ट्रीय संगठन, संस्थान या एजेंसी ने मान्यता नहीं दी. ऐसे में कोवैक्सीन का सर्टिफिकेट पूरी दुनिया में मान्य होगा या नहीं यह नहीं कहा जा सकता.
 
इस समय जब पूरी दुनिया में वैक्सीन पासपोर्ट पर चर्चा हो रही है भारत ने इस पर चुप्पी साध रखी है. शायद इसलिए कि यहां अभी पहली प्राथमिकता ज्यादा से ज्यादा लोगों तक वैक्सीन पहंुचाना है. लेकिन यह भी जल्द ही तय करना होगा कि इसके आगे की रणनीति क्या हो.
 
जिन्हें वैक्सीन दी जा चुकी है उन्हें किस तरह से कईं चीजों में प्राथमिकता दी जाए. यह प्राथमिकता वैक्सीन को लेकर लोगों की हिचकिचाहट को भी खत्म कर सकती है, और लोगों को टीका लगवाने के लिए प्रेरित भी कर सकती है. लेकिन यह तभी हो सकेगा जब टीकों की पर्याप्त सल्पाई हो और उन्हें लगाने की बहुत सारी व्यवस्थाएं भी. अगला रोडमैप तैयार करने का समय आ गया है.