सेना के खिलाफ इमरान खान अब ‘अल्लाह’ की शरण में

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 15-10-2021
इमरान खान
इमरान खान

 

नई दिल्ली. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने स्पष्ट कर दिया है कि वह रबर स्टैंप प्रधानमंत्री नहीं हैं और वे कानून के अनुसार निर्णय लेंगे.

एक टीवी शो में राजनीतिक मामलों पर प्रधानमंत्री खान के विशेष सहायक आमिर डोगर ने यह दावा किया है. हालांकि, कुछ ही घंटों बाद उन्हें उनकी सत्ताधारी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) द्वारा अपना मुंह ‘बंद’ रखने और अपने आचरण की व्याख्या करने के लिए कहा गया.

पीटीआई का कहना है कि डोगर की टिप्पणियों ने राजनीतिक रूप से ‘गलत धारणा’ पैदा की है. लेकिन पीटीआई के समर्थकों द्वारा ऐसी धारणाओं को हवा दी जा रही है, जिनमें दावा किया जा रहा है कि यह जनरल कमर जावेद बाजवा के नेतृत्व वाले पाकिस्तान के सर्व-शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान पर इमरान खान के नेतृत्व वाली नागरिक सरकार की ‘अभूतपूर्व’ जीत है.

साथ ही पाकिस्तानी सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने इस मुद्दे को सावधानी से संभालते हुए दावा किया कि ‘पीएम इमरान खान कभी भी पाकिस्तानी सेना और सेना प्रमुख के सम्मान को कम नहीं करेंगे.’

लेकिन यह भी गौर करने वाली बात है कि पाकिस्तान जैसे देश में पाकिस्तानी फौज (सेना) ही असली मालिक है और इसे किसी भी नागरिक सरकार द्वारा ‘बहिष्कृत’ या साइडलाइन नहीं किया जा सकता है. इस बीच इमरान खान और जनरल बाजवा के बीच देश की खुफिया एजेंसी इंटर-स्टेट इंटेलिजेंस (आईएसआई) के नए प्रमुख की नियुक्ति को लेकर एक हफ्ते से गतिरोध बना हुआ है.

पाकिस्तानी पत्रकार फहद हुसैन देश के प्रमुख समाचार पत्र डॉन में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में कहते हैं, ‘यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि यह मुद्दा किस तरह से सुलझेगा. अगर यह सुलझ भी जाता है तो यह स्पष्ट नहीं है कि अंत में नए आईएसआई डीजी के रूप में कौन कार्यभार संभालेगा. यह काफी अभूतपूर्व स्थिति है.’

पाकिस्तानी सूत्रों का दावा है कि पाकिस्तानी सेना जहां इस मुद्दे पर खामोश है, वहीं मंगलवार की रात हुई बैठक के दौरान बाजवा ने इमरान खान को साफ कर दिया कि वह सैन्य मामलों में दखल देकर अपनी हदें पार न करें और लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को जाने दें. दरअसल खान चाहते हैं कि आईएसआई प्रमुख के रूप में हमीद ही पद पर बने रहें. खान की ‘इच्छा’ के अनुसार, उन्हें तीन संभावितों की एक सूची सौंपी गई है. उनमें से एक लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम का नाम है, जिन्हें पहले सेना ने नए आईएसआई प्रमुख के रूप में घोषित किया था.

पाकिस्तान पर नजर रखने वालों का दावा है कि अंजुम तीनों में सबसे वरिष्ठ हैं और उन्हें आश्चर्य है कि खान आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति को नोटिफाइड क्यों नहीं कर रहे हैं. लेकिन खान इस नाम के साथ सहमत नहीं हैं. वह चाहते हैं कि हमीद अगले साल मार्च तक बने रहें, जो बाजवा को मंजूर नहीं है.

पाकिस्तानी पत्रकार नजम सेठी का कहना है, ‘पीएम इमरान खान किसी की नहीं सुन रहे हैं. इसी वजह से अभी तक नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया है.’

यह वास्तव में पाकिस्तान के विशेषज्ञों और मीडिया के लिए पेचीदा है, क्योंकि इमरान खान, जिन्हें बाजवा द्वारा ‘चुना’ गया था, न केवल उनकी अवहेलना कर रहे हैं, बल्कि सार्वजनिक रूप से उन्हें अपमानित और चुनौती दे रहे हैं.

एक पाकिस्तानी पत्रकार के अनुसार, खान का सबसे महत्वपूर्ण दांव यह है कि वह तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) जैसे चरमपंथी धार्मिक कट्टरपंथियों को आकर्षित करते हुए अपना राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा रहे हैं. वह बाजवा के खिलाफ ताजा धार्मिक हमलों के पीछे भी हैं, जिसे कुछ कट्टरपंथियों ने ‘अहमदी’ करार दिया है.

जनरल बाजवा को अतीत में उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण अहमदी होने के ‘आरोपों’ का सामना करना पड़ा है और पाकिस्तान में अहमदिया संप्रदाय को गैर-मुस्लिम घोषित किया गया है. यह एक खुला रहस्य है कि टीएलपी का हमीद के साथ घनिष्ठ संपर्क है और इमरान खान अपने फायदे के लिए टीएलपी का इस्तेमाल करते रहे हैं. हमीद की बदौलत टीएलपी पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के कारण अगला चुनाव नहीं लड़ पाएगी, लेकिन वह इमरान खान को पूरा समर्थन देने जा रही है.

हाल ही में खान ने पाकिस्तान के लोगों को पश्चिमी संस्कृति से बचाने के लिए रहमतुल-लील-अलामीन प्राधिकरण, मुल्लाओं और धार्मिक मौलवियों की एक परिषद की घोषणा की है.

पाकिस्तान में एक और अफवाह है कि इमरान खान अगले साल मार्च / अप्रैल में आम चुनाव टाल सकते हैं और इसीलिए वह चाहते हैं कि फैज हमीद मार्च तक आईएसआई प्रमुख बने रहें.

तो अब सवाल यह है कि इमरान बनाम बाजवा के गतिरोध में अब और क्या सामने आने वाला है? देश के इतिहास का हवाला देते हुए, विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान अल्लाह और सेना द्वारा चलाया जाता है और अब खान अल्लाह को अपने पक्ष में करने के लिए बहुत कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने चेताया है कि रावलपिंडी जीएचक्यू और इस्लामाबाद के बीच की दूरी बहुत कम है और बाजवा को कम करके आंकना इमरान खान की एक बड़ी भूल साबित हो सकती है.