नई दिल्ली. अफगानिस्तान में हालात पिछले दो दशकों में नाटकीय रूप की तरह पूरी तरह से बदल गए हैं. तालिबान या यहां तक कि पाकिस्तान इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद देश में सरकारी गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका कोई हिसाब नहीं है. विदेश नीति निरीक्षकों ने बताया है कि युवा अफगान जो आमतौर पर 20से 30वर्ष के हैं और अब एक अलग जिंदगी जीने के आदी हो चुके हैं. वे आजाद, लोकतांत्रिक और खुले माहौल के अभ्यस्त हो गए हैं. सवाल यह है कि ऐसे युवा कब तक तालिबान के मध्ययुगीन आदेशों पर अमल करेंगे.
उन्हीं में से एक ने बताया कि तालिबान सरकार की सख्ती मध्यम अवधि में भी युवाओं के लिए आसान नहीं रहने वाली है.
तालिबान के लिए, अफगानिस्तान के लोगों की स्वीकार्यता प्राप्त करने की सबसे बड़ी चुनौती है, जो अब अपनी आजादी के लिए जानी जाती है. पुरुष और महिला दोनों अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो चुके हैं.
चूंकि तालिबान ने काबुल पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया है. उसके बारे में मुख्य चेहरे मुल्ला अब्दुल गनी बरदार और शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई ने चित्रित किया था कि उनके शासन की दूसरी पारी एक मध्यम और समावेशी होगी. हालांकि, तालिबान के उदारवादी चेहरे को आसानी से हटा दिया गया है. अनिवार्य रूप से तालिबान 2.0केवल तालिबान 1.0की दोहराव है, जो आधुनिकता विरोधी है.
आईएसआई प्रमुख फैज हमीद ने काबुल में एक देखभाल करने वाली सरकार बनाने के लिए डेरा डाला था, जिसमें आतंकियों ने अपने हितों के लिए हक्कानी नेटवर्क को शक्ति दिला दी.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा ब्लैकलिस्टेड मुल्लाह मोहम्मद हसन अखुंद के नेतृत्व वाली सरकार ने पहले ही एक फरमान को पास कर लिया है, जिसमें महिलाओं को घर पर रहने के लिए कहा जा रहा है.
अफगानिस्तान परंपरागत रूप से अपनी प्रगतिशील सोच के लिए जाना जाता है, उसने 1964में वहां रहने वाली महिलाओं को समानता का अधिकार दिया था. हालांकि 1990के दशक में तालिबान शासन के तहत, इन अधिकारों को छीन लिया गया, फिर 2004में उन्हें बहाल कर दिया गया.
विश्लेषक ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है. जल्दी या बाद में देश एक गंभीर गृहयुद्ध से टूट जाएगा, जिसके बाद देश के पुरुष और महिलाएं तालिबान शासन को स्वीकार नहीं करेंगे.
विश्वविद्यालय की एक छात्रा रमजिया अब्देखिल ने हुर्रियत डेली न्यूज को बताया कि पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान और अफगान महिलाओं में काफी बदलाव आया है.
उन्होंने कहा कि तालिबान को यह समझना चाहिए कि आज का अफगानिस्तान वैसा नहीं है, जैसा उन्होंने 20साल पहले शासन किया था. उस समय, उन्होंने जो कुछ भी करना चाहा, उन्होंने किया और हम चुप रहे. हम अब चुप नहीं रहेंगे. वे जो कहती हैं, हम उसे स्वीकार नहीं करेंगे, हम बुर्का नहीं पहनेंगे और घर पर नहीं बैठेंगे.
विशेष रूप से, देश भर में महिलाएं तालिबानियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही हैं.
इसके अलावा, विश्व समुदाय अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर करीब से नजर रखे हुए है. चीन और पाकिस्तान और कुछ अन्य लोगों के अलावा, विश्व समुदाय तालिबान के साथ काम करने की इच्छा दिखाने में आगे नहीं आया है.
पिछली बार तालिबान को तत्काल मान्यता देने वाले मध्य पूर्व के कई देशों ने भी चुप्पी साध रखी है.
इतना ही नहीं, भारत सहित कई देशों ने वहां के लोगों और तालिबान शासन के बीच स्पष्ट अंतर किया है.
विश्लेषकों ने कहा, आज के संदर्भ में तालिबान की गणना गलत हो सकती है, हमें अगले कुछ महीनों में सामने आने वाली स्थिति को ध्यान से देखना होगा.