हिंदीवाले भी गोपीचंद नारंग को मिस करेंगे

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 16-06-2022
गोपीचंद नारंग
गोपीचंद नारंग

 

अरविंद कुमार

आजादी के बाद उर्दू  जुबान और तनक़ीद के विकास में अगर किसी एक शख्स का नाम लिया जाए तो वह गोपीचंद नारंग  थे. शम्सुर रहमान फारुकी, मोहम्मद हसन और गोपीचंद नारंग की तिकड़ी उर्दू तनक़ीद के तीन सितारे थे लेकिन दुनियावी अर्थों में शोहरत और बुलंदी सबसे अधिक नारंग साहब को हासिल हुई.

 वे उर्दू अकेडमी के उपाध्यक्ष साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष फिर अध्यक्ष ही नहीं बने, बल्कि उन्हें पद्म श्री और पद्मम भूषण से भी नवाजा गया और पूरी दुनिया में उर्दू जगत में उनका नाम बहुत था. वह पहले ऐसे आलोचक थे जिनको जितना मुल्क के भीतर जाना जाता था उतना भारत से बाहर भी. वे पाकिस्तान, अरब देश, अमेरिका और कनाडा में उर्दू समाज में जाने जाते थे और उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान थी.

अमेरिका के दो विश्वविद्यालय विस्कॉसिन और मिनेसोटा में वे अतिथि प्रोफेसर थे और पाकिस्तान का सितारे इम्तियाज अवॉर्ड भी मिला. भारत में उन्हें ग़ालिब अवार्ड और इकबाल सम्मान से नवाजा गया था. यानी कोई ऐसी उपलब्धि नहीं थी जो उन्हें हासिल न हुई हो.

11 फरवरी, 1930 को बलूचिस्तान के डुक्की में जन्में नारंग साहब का आधिकारिक जन्मदिन 1 जनवरी, 1931 था और इस हिसाब से वह 91 वर्ष के थे .बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी दो बार शादियां हुई थी.पहली बीवी तारा नारंग थी तो दूसरी मनोरमा नारंग. दोनों बीवियों से एक-एक औलाद ही उन्हें थी. वह आजकल न्यूयॉर्क में अपने बेटे के साथ रहते थे.

उनके पिता धर्मचंद नारंग भी एक लेखक थे और जब भारत-पाकिस्तान विभाजन हुआ तो क्वेटा में पहले दंगे के कारण उन्होंने अपने बेटे गोपीचंद को दिल्ली भेज दिया था. नारंग 1947 में ही भारत आ गए थे जबकि उनके पिता बाद में 1956 में भारत आए.

नारंग ने यहीं रहकर दिल्ली कॉलेज से आइए किया और उसके बाद सेंट् स्टीफंस कॉलेज में उर्दू पढ़ाया और वह बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग के रीडर और अध्यक्ष भी बने. वह जामिया में डीन और अतिथि प्रोफेसर बने.

नारंग ने इतनी किताबें लिखी कि उनके नाम याद करना मुश्किल है. उन्होंने छोटी-बड़ी सब मिलाकर करीब 100 किताबें लिखी होंगी जिनमें उर्दू जुबान विभिन्न हस्तियों पर, उर्दू शायरी तथा आलोचना आदि पर लिखी गयी हैं.

उन्होंने जाकिर हुसैन की जीवनी लिखी तो अमीर खुसरो, गालिब, मीर, बलवंत सिंह और फिर कृष्णचन्द्र पर भी लिखी. कई भाषाओं के जानकार नारंग अंग्रेजी में भी फ़र्राटे से लिख लेते थे. हिंदी के लेखको से भी उनका गहरा रिश्ता था और यही कारण था कि वह साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष और बाद में अध्यक्ष चुने गए.

उन्होंने अध्यक्ष पद के चुनाव में महाश्वेता देवी को पराजित किया था जो एकतरफ से डॉ. नामवर सिंह और अशोक बाजपेई की उम्मीदवार थीं. यह हार महाश्वेता ही नहीं बल्कि नामवर और अशोक वाजपेयी की थी क्योंकि ये दोनों पीछे महाश्वेता देवी का विरोध कर रहे थे.

नारंग के नहीं रहने से उर्दू वर्ल्ड में एक मायूसी छा गयी है. वे उर्दू के नामवर सिंह थे. उसी तरह स्कॉलर, उसी तरह जोशीले स्पीकर भी. उर्दू में पोस्ट मॉडरनिज़्म और पाठ केंद्रित आलोचना के वे सिरमौर थे. हिंदी वाले में नारंग साहब को मिस करेंगे.