मेहमान का पन्नाः मुश्किल हुई हज यात्रा

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 20-11-2021
मुश्किल हुई हज यात्रा
मुश्किल हुई हज यात्रा

 

मेहमान का पन्ना । हज यात्रा

wasayप्रो. अख़्तरुल वासे
कोरोना महामारी के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर हज 2022 की घोषणा अहले ‎ईमान वालों के लिए निश्चित रूप से अच्छी ख़बर है, लेकिन सरकार की पॉलिसी और ‎प्रशासनिक सुधारों के नाम पर बदलाव, हज यात्रा करने वालों के लिए किसी कांटों भरी राह से ‎कम नहीं है. सरकार की ज़िम्मेदारी होती है कि वह लोगों के लिए चीज़ों को आसान बनाए, ‎लेकिन भारत की मौजूदा सरकार ने सुधार के नाम पर मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.
 
सरकार दावा ‎कर रही है कि उसने हज के अनावश्यक ख़र्चों को ख़त्म करने और यात्रा को आसान बनाने की ‎दिशा में प्रगति की है. हज प्रक्रिया को शत-प्रतिशत डिजिटल बनाने के लिए ‘हज मोबाइल एप’ ‎को अपग्रेड किया गया है. आवेदक अब ऑनलाइन और अत्याधुनिक हज मोबाइल ऐप के माध्यम ‎से आवेदन कर सकते हैं.
 
सभी हज यात्रियों को ई-मसीहा डिजिटल हेल्थ कार्ड, मक्का-मदीना ‎आवास/परिवहन के बारे में ई-सामान टैगिंग के माध्यम से सूचित किया जाएगा. कोरोना ‎प्रोटोकॉल एवं स्वास्थ्य तथा स्वच्छता पर विशेष प्रशिक्षण का प्रबन्ध होगा. इन सबके बावजूद, ‎दावे और बहलावे की बुनियाद पर खड़ी सरकार ने जिस तरह से बोर्डिंग प्वाइन्ट्स की संख्या में ‎कमी की घोषणा की है, उसने पूरे देश में मुसलमानों में बेचैनी की लहर दौड़ा दी है.

सरकार ने अहमदाबाद, बंगलुरू‎, कोच्चि, दिल्ली, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ, ‎मुंबई और श्रीनगर सहित हज 2022 के लिए 21 के बजाय 10 बोर्डिंग स्थल निर्धारित किए हैं. ‎वाराणसी, गुवाहाटी, पटना, गया, श्रीनगर, रांची, इंदौर, नागपुर, औरंगाबाद और अन्य सभी बोर्डिंग ‎स्थलों को बंद करने की घोषणा कर दी गई है.
 
स्पष्ट है कि बोर्डिंग स्थलों की संख्या में कमी ‎का सीधा असर यात्रियों पर पड़ेगा. हवाई अड्डों के कम होने से किराए में वृद्धि होगी. हज ‎सब्सिडी की समाप्ति की मार झेल रहे दूर-दराज़ के रहने वाले हज यात्रियों को अपने राज्य ‎और अपने शहरों से जाने के लिए जो सुविधाएं थीं वह भी ख़त्म हो गईं. जिन इलाकों से ‎उड़ानों को बन्द करने की घोषणा की गई है, वहां के यात्रियों में निराशा और हताशा देखी जा ‎रही है.
 
सेंट्रल हज कमेटी ने इस साल हज यात्रा का खर्च 3,42,994.40 रुपये प्रति व्यक्ति तय ‎किया है. सरकार का दावा है कि उनकी सरकार हज को सस्ता और आसान बनाने के लिए ‎प्रतिबद्ध है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही कहानी बयां करती नज़र आ रही है.
 
इस बार के हज में मोदी सरकार के ‘वोकल फॉर लोकल’ की छाप भी देखने को मिलेगी ‎और यह प्रशंसनीय भी है कि अब हज यात्री देश में तैयार किए गए सामान को साथ लेकर ही ‎हज पर जाएंगे. इससे पहले हज यात्री विदेशी मुद्रा में चादर, तकिए, तौलिये, छतरियां और ‎अन्य सामान सऊदी अरब में खरीदते थे.
 
वहीं, भारत के इतिहास में पहली बार बिना महरम के ‎महिलाएं भी इस बार हज पर जाएंगी. पिछले साल आवेदन करने वाली तीन हज़ार महिलाओं ‎और इस बार आवेदन करने वाली गैर-महरम महिलाओं को हज पर जाने का मौका मिलेगा. ‎वैश्विक महामारी से उत्पन्न सभी चुनौतियों को देखते हुए हज यात्रियों की चयन प्रक्रिया कोरोना ‎वैक्सीन की दोनों खुराक लिए जाने और कोरोना प्रोटोकॉल, नियमों और मापदंडों के तहत ‎आयोजित करने का निर्णय लिया गया है.
 
उल्लेखनीय है कि पहले लोग हज कमेटी के माध्यम से हज करना चाहते थे क्योंकि यह ‎निजी टूर ऑपरेटरों की तुलना में काफ़ी सस्ता था, लेकिन सरकार की नई नीति और नई ‎व्यवस्था ने सब कुछ समान कर दिया है. सुविधाओं की कमी के बावजूद, हज यात्री हज कमेटी ‎से जाने को ही प्राथमिकता देते थे जिसका कारण था आसानी और कम ख़र्च.
 
नए उलटफेर का ‎‎एक कारण यह है कि हज यात्रा की ज़िम्मेदारी अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को सौंप दी गई ‎है, जबकि किसी भी मुल्क की तरह सऊदी अरब में भी जब कोई समस्या सामने आती है तो ‎उसे विदेश मंत्रालय ही देखता है.
 
ऐसी स्थिति में समस्या और बढ़ जाती है. इस लिए जिस ‎प्रकार दूसरी विदेशी यात्राओं की ज़िम्मेदारी विदेश मंत्रालय के अधीन है उसी प्रकार हज यात्रा ‎की पूरी ज़िम्मेदारी भी विदेश मंत्रालय के पास ही रहनी चाहिए थी. इससे हज यात्रियों की ‎समस्याएं कम होतीं.
 
‎ख़र्च में कमी को देखते हुए, सरकार ने पिछले साल हज के लिए समुद्री यात्राओं को ‎फिर से शुरू करने की घोषणा की थी. इस संबंध में सरकार की क्या रणनीति है इसका अभी ‎तक कुछ पता नहीं. ज्ञात रहे कि वर्ष 1992-94 के मध्य केन्द्र सरकार के कहने पर समुद्र के ‎रास्ते हज यात्रा पर पूर्ण रोक लगा दी गई थी.
 
मुंबई और जेद्दा के बीच एम. वी. अकबर पोत ‎को 1995 में बंद कर दिया गया था, जिसमें यात्रा करने में 10-15 दिन लगते थे. भारत सरकार ‎ने समुद्री रास्ते से हज यात्रा को फिर से शुरू करने की घोषणा की है. जहाज़रानी मंत्रालय ने ‎इस निर्णय को मंज़ूरी भी दे दी है, और सऊदी अरब ने भी इस निर्णय का स्वागत किया है.
 
‎सब्सिडी समाप्त होने के बाद, हवाई यात्रा की लागत काफ़ी बढ़ गई है लेकिन समुद्री यात्रा की ‎लागत केवल 60,000/- रुपये होगी जो आर्थिक रूप से कमज़ोर एक बड़े वर्ग के लिए राहत का ‎स्रोत होंगे.
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हज के दौरान दुआ में हाथ उठाए एक हज यात्री. फाइल फोटो

भारत में सरकार ने हज सब्सिडी यानी हज के लिए मिलने वाली सरकारी सहायता पर ‎रोक लगा दी है, मुसलमानों को इस पर कोई आपत्ति नहीं है. मुस्लिम समुदाय ने कभी सब्सिडी ‎की मांग ही नहीं की थी. पूर्व सांसद मरहूम (स्वर्गीय) सैयद शहाबुद्दीन से लेकर मौलाना महमूद ‎मदनी तक और असदुद्दीन ओवैसी से लेकर ज़फ़रुल इस्लाम ख़ान और हमारे जैसे अनगिनत ‎लोगों समेत अनगिनत मुस्लिम नेता और विद्वान लगातार हज सब्सिडी ख़त्म करने की मांग कर ‎रहे हैं. दूसरे यह कि सालों से किसी भी मुस्लिम हज यात्री को सीधे तौर पर सब्सिडी नहीं ‎मिली.
 
भारत सरकार सऊदी अरब की उड़ानों के लिए हवाई टिकट पर एयर इंडिया को ‎सब्सिडी देती थी. भारत से हज के लिए जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सब्सिडी के नाम पर दी ‎जाने वाली राशि लगभग दस हज़ार रूपये थी लेकिन व्यवहारिक रूप में यह हज यात्रियों को ‎कभी दी ही नहीं गई बल्कि एयर इंडिया को हस्तांतरित कर दिया गया.
 
दूसरे शब्दों में, इस ‎आर्थिक सहायता का उपयोग एयर इंडिया के बोझ को कम करने के लिए किया गया था, ना ‎कि हज यात्रियों के लिए. यह वह समय था जब तेल की वैश्विक समस्या के कारण हज की ‎हवाई यात्रा बहुत महंगी हो गई थी और हवाई जहाज़ का किराया आसमान छू रहा था.
 
ऐसे ‎समय में इस सब्सिडी को ‘स्टॉप-गैप’ के रूप में प्रस्तुत किया गया लेकिन इस पर हमेशा के ‎लिए अल्पसंख्यकों की चापलूसी का निशान चिपका दिया गया.
 
‎लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफ़ेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज़) हैं.