मेहमान का पन्ना । हज यात्रा
प्रो. अख़्तरुल वासे
कोरोना महामारी के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर हज 2022 की घोषणा अहले ईमान वालों के लिए निश्चित रूप से अच्छी ख़बर है, लेकिन सरकार की पॉलिसी और प्रशासनिक सुधारों के नाम पर बदलाव, हज यात्रा करने वालों के लिए किसी कांटों भरी राह से कम नहीं है. सरकार की ज़िम्मेदारी होती है कि वह लोगों के लिए चीज़ों को आसान बनाए, लेकिन भारत की मौजूदा सरकार ने सुधार के नाम पर मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.
सरकार दावा कर रही है कि उसने हज के अनावश्यक ख़र्चों को ख़त्म करने और यात्रा को आसान बनाने की दिशा में प्रगति की है. हज प्रक्रिया को शत-प्रतिशत डिजिटल बनाने के लिए ‘हज मोबाइल एप’ को अपग्रेड किया गया है. आवेदक अब ऑनलाइन और अत्याधुनिक हज मोबाइल ऐप के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं.
सभी हज यात्रियों को ई-मसीहा डिजिटल हेल्थ कार्ड, मक्का-मदीना आवास/परिवहन के बारे में ई-सामान टैगिंग के माध्यम से सूचित किया जाएगा. कोरोना प्रोटोकॉल एवं स्वास्थ्य तथा स्वच्छता पर विशेष प्रशिक्षण का प्रबन्ध होगा. इन सबके बावजूद, दावे और बहलावे की बुनियाद पर खड़ी सरकार ने जिस तरह से बोर्डिंग प्वाइन्ट्स की संख्या में कमी की घोषणा की है, उसने पूरे देश में मुसलमानों में बेचैनी की लहर दौड़ा दी है.
सरकार ने अहमदाबाद, बंगलुरू, कोच्चि, दिल्ली, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई और श्रीनगर सहित हज 2022 के लिए 21 के बजाय 10 बोर्डिंग स्थल निर्धारित किए हैं. वाराणसी, गुवाहाटी, पटना, गया, श्रीनगर, रांची, इंदौर, नागपुर, औरंगाबाद और अन्य सभी बोर्डिंग स्थलों को बंद करने की घोषणा कर दी गई है.
स्पष्ट है कि बोर्डिंग स्थलों की संख्या में कमी का सीधा असर यात्रियों पर पड़ेगा. हवाई अड्डों के कम होने से किराए में वृद्धि होगी. हज सब्सिडी की समाप्ति की मार झेल रहे दूर-दराज़ के रहने वाले हज यात्रियों को अपने राज्य और अपने शहरों से जाने के लिए जो सुविधाएं थीं वह भी ख़त्म हो गईं. जिन इलाकों से उड़ानों को बन्द करने की घोषणा की गई है, वहां के यात्रियों में निराशा और हताशा देखी जा रही है.
सेंट्रल हज कमेटी ने इस साल हज यात्रा का खर्च 3,42,994.40 रुपये प्रति व्यक्ति तय किया है. सरकार का दावा है कि उनकी सरकार हज को सस्ता और आसान बनाने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही कहानी बयां करती नज़र आ रही है.
इस बार के हज में मोदी सरकार के ‘वोकल फॉर लोकल’ की छाप भी देखने को मिलेगी और यह प्रशंसनीय भी है कि अब हज यात्री देश में तैयार किए गए सामान को साथ लेकर ही हज पर जाएंगे. इससे पहले हज यात्री विदेशी मुद्रा में चादर, तकिए, तौलिये, छतरियां और अन्य सामान सऊदी अरब में खरीदते थे.
वहीं, भारत के इतिहास में पहली बार बिना महरम के महिलाएं भी इस बार हज पर जाएंगी. पिछले साल आवेदन करने वाली तीन हज़ार महिलाओं और इस बार आवेदन करने वाली गैर-महरम महिलाओं को हज पर जाने का मौका मिलेगा. वैश्विक महामारी से उत्पन्न सभी चुनौतियों को देखते हुए हज यात्रियों की चयन प्रक्रिया कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक लिए जाने और कोरोना प्रोटोकॉल, नियमों और मापदंडों के तहत आयोजित करने का निर्णय लिया गया है.
उल्लेखनीय है कि पहले लोग हज कमेटी के माध्यम से हज करना चाहते थे क्योंकि यह निजी टूर ऑपरेटरों की तुलना में काफ़ी सस्ता था, लेकिन सरकार की नई नीति और नई व्यवस्था ने सब कुछ समान कर दिया है. सुविधाओं की कमी के बावजूद, हज यात्री हज कमेटी से जाने को ही प्राथमिकता देते थे जिसका कारण था आसानी और कम ख़र्च.
नए उलटफेर का एक कारण यह है कि हज यात्रा की ज़िम्मेदारी अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को सौंप दी गई है, जबकि किसी भी मुल्क की तरह सऊदी अरब में भी जब कोई समस्या सामने आती है तो उसे विदेश मंत्रालय ही देखता है.
ऐसी स्थिति में समस्या और बढ़ जाती है. इस लिए जिस प्रकार दूसरी विदेशी यात्राओं की ज़िम्मेदारी विदेश मंत्रालय के अधीन है उसी प्रकार हज यात्रा की पूरी ज़िम्मेदारी भी विदेश मंत्रालय के पास ही रहनी चाहिए थी. इससे हज यात्रियों की समस्याएं कम होतीं.
ख़र्च में कमी को देखते हुए, सरकार ने पिछले साल हज के लिए समुद्री यात्राओं को फिर से शुरू करने की घोषणा की थी. इस संबंध में सरकार की क्या रणनीति है इसका अभी तक कुछ पता नहीं. ज्ञात रहे कि वर्ष 1992-94 के मध्य केन्द्र सरकार के कहने पर समुद्र के रास्ते हज यात्रा पर पूर्ण रोक लगा दी गई थी.
मुंबई और जेद्दा के बीच एम. वी. अकबर पोत को 1995 में बंद कर दिया गया था, जिसमें यात्रा करने में 10-15 दिन लगते थे. भारत सरकार ने समुद्री रास्ते से हज यात्रा को फिर से शुरू करने की घोषणा की है. जहाज़रानी मंत्रालय ने इस निर्णय को मंज़ूरी भी दे दी है, और सऊदी अरब ने भी इस निर्णय का स्वागत किया है.
सब्सिडी समाप्त होने के बाद, हवाई यात्रा की लागत काफ़ी बढ़ गई है लेकिन समुद्री यात्रा की लागत केवल 60,000/- रुपये होगी जो आर्थिक रूप से कमज़ोर एक बड़े वर्ग के लिए राहत का स्रोत होंगे.
हज के दौरान दुआ में हाथ उठाए एक हज यात्री. फाइल फोटो
भारत में सरकार ने हज सब्सिडी यानी हज के लिए मिलने वाली सरकारी सहायता पर रोक लगा दी है, मुसलमानों को इस पर कोई आपत्ति नहीं है. मुस्लिम समुदाय ने कभी सब्सिडी की मांग ही नहीं की थी. पूर्व सांसद मरहूम (स्वर्गीय) सैयद शहाबुद्दीन से लेकर मौलाना महमूद मदनी तक और असदुद्दीन ओवैसी से लेकर ज़फ़रुल इस्लाम ख़ान और हमारे जैसे अनगिनत लोगों समेत अनगिनत मुस्लिम नेता और विद्वान लगातार हज सब्सिडी ख़त्म करने की मांग कर रहे हैं. दूसरे यह कि सालों से किसी भी मुस्लिम हज यात्री को सीधे तौर पर सब्सिडी नहीं मिली.
भारत सरकार सऊदी अरब की उड़ानों के लिए हवाई टिकट पर एयर इंडिया को सब्सिडी देती थी. भारत से हज के लिए जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सब्सिडी के नाम पर दी जाने वाली राशि लगभग दस हज़ार रूपये थी लेकिन व्यवहारिक रूप में यह हज यात्रियों को कभी दी ही नहीं गई बल्कि एयर इंडिया को हस्तांतरित कर दिया गया.
दूसरे शब्दों में, इस आर्थिक सहायता का उपयोग एयर इंडिया के बोझ को कम करने के लिए किया गया था, ना कि हज यात्रियों के लिए. यह वह समय था जब तेल की वैश्विक समस्या के कारण हज की हवाई यात्रा बहुत महंगी हो गई थी और हवाई जहाज़ का किराया आसमान छू रहा था.
ऐसे समय में इस सब्सिडी को ‘स्टॉप-गैप’ के रूप में प्रस्तुत किया गया लेकिन इस पर हमेशा के लिए अल्पसंख्यकों की चापलूसी का निशान चिपका दिया गया.
लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफ़ेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज़) हैं.