मोराराजी देसाई से नरेंद्र मोदी: केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकारों का गठन

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 17-08-2022
मोराराजी देसाई से नरेंद्र मोदी: केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकारों का गठन
मोराराजी देसाई से नरेंद्र मोदी: केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकारों का गठन

 

शेखर अय्यर

जब हम अपनी राजनीति को पिछले 75 वर्षों में प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं, तो दो बातें सामने आती हैं.1966से 1977के बीच इंदिरा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय परिदृश्य पर कांग्रेस का दबदबा रहा, इस दौरान आपातकाल 19 महीने तक चला.

मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने जब आपातकाल हटने के बाद लोकसभा चुनाव हुए. इंदिरा गांधी की शर्मनाक हार हुई थी.इसलिए इस अवधि ने 1947के बाद पहली बार भारत की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन को चिह्नित किया. कांग्रेस पूरी तरह से सत्ता से बाहर हो गई थी.

यदि वह पहली गैर-कांग्रेसी सरकार केवल दो साल से अधिक समय तक चलती, तो शायद, राष्ट्रीय राजनीति का पाठ्यक्रम अलग हो सकता था.यही नहीं होना था. मोरारजी देसाई के साथ अपनी महत्वाकांक्षा और प्रतिद्वंद्विता के कारण चरण सिंह ने केवल 24सप्ताह के लिए पीएम बनने के लिए इंदिरा गांधी की मदद ली.

चतुर इंदिरा गांधी ने 1980 में लोकसभा के लिए एक नया चुनाव कराया, जिसे उन्होंने आसानी से जीत लिया क्योंकि जनता पार्टी के शासन को लोगों ने पूर्ण विफलता के रूप में देखा था.

इंदिरा गांधी के खिलाफ केस दर्ज कराने में बहुत समय बिताने के अलावा, विभिन्न पृष्ठभूमि से आए जनता पार्टी के नेता एक-दूसरे के गले मिले. मोरारजी देसाई भी अपने अधिकांश सहयोगियों के साथ नहीं मिल सके, जिन्होंने उन्हें असहनीय और जिद्दी पाया.

चरण सिंह और "समाजवादी" पृष्ठभूमि के अन्य नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे जनसंघ के नेताओं के साथ तालमेल नहीं बिठा सके. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ उनका जुड़ाव एक अड़चन बन गया और उन्हें अपने वैचारिक गुरु और जनता पार्टी के बीच चयन करने के लिए कहा गया.

जैसा कि पहला विपक्षी प्रयोग अपना इकबाल खो रहा था, वाजपेयी और आडवाणी और अन्य पूर्व जनसंघ के नेताओं ने 1980में एक नए नाम: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ अपने राजनैतिक संगठन को पुनर्जीवित करने का फैसला किया. उन्होंने जम्मू और कश्मीर की स्थिति और एक आदर्श वाक्य के साथ एक अंतर के साथ शासन प्रदान करने का वादा किया: सभी को न्याय और किसी को तुष्टीकरण नहीं.

जनवरी 1980में इंदिरा गांधी की पीएम पद पर वापसी उनके प्रतिद्वंद्वियों की पृष्ठभूमि के खिलाफ हुई, जो जनता पार्टी के असफल प्रयोग के टुकड़ों को लेने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि, छह महीने के भीतर, उसने दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे के पास एक हवाई दुर्घटना में अपने बेटे संजय गांधी को खो दिया.

यह उनके लिए एक भयानक व्यक्तिगत आघात था और उन्हें अपने सबसे बड़े बेटे राजीव गांधी की जरूरत थी. इसलिए उन्होंने इंडियन एयरलाइंस के पायलट का पद छोड़ दिया और कांग्रेस महासचिव के रूप में कार्यभार संभाला. उन्होंने अमेठी लोकसभा सीट से अपने छोटे भाई संजय की मृत्यु के कारण हुई रिक्ति को भरने के लिए उपचुनाव में चुनाव लड़ा.

जैसे ही इंदिरा गांधी ने अर्थव्यवस्था की अनिश्चित स्थिति को ठीक करने पर ध्यान केंद्रित किया, उनकी राजनीतिक समस्याएं फिर से बढ़ने लगीं. पंजाब उबल रहा था. नरमपंथी अकालियों का मुकाबला करने के लिए शुरू में स्थानीय कांग्रेस नेताओं द्वारा प्रोत्साहित किए जाने के बाद, धार्मिक चरमपंथियों ने ताकत हासिल की. उन्होंने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर अधिकार कर लिया.

एक आईपीएस अधिकारी अवतार सिंह अटवाल, जो पंजाब पुलिस में एक उप महानिरीक्षक थे, की 1983में पूजा के बाद स्वर्ण मंदिर की सीढ़ियों पर जरनैल सिंह भिंडरावाले के अनुयायी द्वारा हत्या कर दी गई, जिससे घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई. इसके कारण 1से 10जून, 1984के बीच ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू हुआ. सेना को उग्रवादियों को खदेड़ने के लिए कहा गया. हालांकि, सिखो केसबसे पवित्र मंदिर में सैन्य कार्रवाई के बाद के प्रभाव काफी समय तक बने रहे. इंदिरा गांधी 31अक्टूबर 1994को दिल्ली में अपने सरकारी आवास में उनके सुरक्षा गार्डों द्वारा चलाई गई गोलियों की चपेट में आ गईं.

सबसे खराब सिखविरोधी दंगों में से एक को देखने वाली अराजकता के बीच राजीव गांधी पीएम बन गए. इंदिरा गांधी की हत्या पर जनता के गुस्से ने भीड़ को निडर होते देखा. दिसंबर 1980में, राजीव गांधी ने कांग्रेस को अब तक का सबसे बड़ा लोकसभा बहुमत हासिल करने के लिए नेतृत्व किया, जिसमें 542में से 411सीटें जीतीं. उनकी मां की हत्या से उत्पन्न राजनीतिक सुनामी में विपक्ष का नाश हो गया था.

हालांकि, राजीव गांधी का कार्यकाल एक के बाद एक विवादों में घिरा रहा. दिसंबर 1984में भोपाल गैस कांड हुआ था. 1987में, स्वीडन से फील्ड गन की खरीद के लिए भुगतान पर बोफोर्स घोटाले ने उन्हें और कांग्रेस को घेरे में ले लिया. बाहरी मोर्चे पर, उन्होंने 1987में भारतीय शांति सैनिकों को श्रीलंका भेजा, जिससे लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के साथ खुला संघर्ष हुआ. लेकिन बोफोर्स कांड ने उनकी भ्रष्टाचार मुक्त छवि को नुकसान पहुंचाया, जिसके परिणामस्वरूप 1989के संसदीय चुनावों में उनकी पार्टी को एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा.

इस प्रकार केंद्र में दूसरी गैर-कांग्रेसी सरकार का जन्म हुआ. विश्वनाथ प्रताप सिंह या वीपी सिंह जो कांग्रेस विरोधी आंदोलन (बोफोर्स कांड के मद्देनजर) का चेहरा बने, पीएम बने. ऐसा इसलिए था क्योंकि बोफोर्स घोटाला सामने आने पर सिंह ने राजीव गांधी मंत्रालय से रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. 1988में, उन्होंने और अन्य नेताओं ने जनता पार्टी के विभिन्न गुटों को मिलाकर जनता दल का गठन किया.

1989 के चुनावों में, वी पी सिंह ने राष्ट्रीय मोर्चा का नेतृत्व किया और अगले पीएम बनने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और वामपंथियों का समर्थन लिया. भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़े युद्ध का वादा करने वाले सिंह के साथ यह वास्तव में एक अनूठा प्रयोग था. हालांकि,अपने कार्यकाल के दौरान, उन्हें एक महत्वाकांक्षी देवी लाल के साथ संघर्ष करना पड़ा, जो डिप्टी पीएम थे.

इसलिए उन्होंने मंडल आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशे लागू कर दी और ओबीसी वर्ग को आरक्षण दे दिया.जिसके कारण आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर बड़े विरोध प्रदर्शन हुए. उनके कार्यकाल के दौरान, केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद का अपहरण हुआ और उनकी रिहाई के लिए आतंकवादियों को छोड़ दिया गया. 1990में कश्मीरी हिंदुओं का कुख्यात पलायन भी कश्मीर की घाटी से हुआ.

"मंडल राजनीति" के उदय ने भाजपा को "कमंडल" उठाते देखा. भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी अयोध्या में राम मंदिर के लिए रथ यात्रा पर निकले. अंतत: आडवाणी की यात्रा रोक दी गई और उन्हें लालू प्रसाद यादव ने गिरफ्तार कर लिया, जो उनके राज्य में बिहार के मुख्यमंत्री थे. भाजपा ने नेशनल फ्रंट से अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद, वी पी सिंह की सरकार अविश्वास मत हार गई और उन्होंने 7नवंबर, 1990को इस्तीफा दे दिया. सिंह का पीएम कार्यकाल केवल 343दिनों तक चला.

इसके बाद, राजीव गांधी ने, विपक्ष के नेता के रूप में, चंद्रशेखर को, जो वीपी सिंह के अपने से आगे निकल जाने से परेशान थे, पीएम बनने के लिए प्रलोभित किया. उन्होंने कांग्रेस के बाहरी समर्थन के साथ अपने 64सांसदों (जनता दल के एक अलग गुट के) के समर्थन से अगली सरकार शुरू की. उनका कार्यकाल भी केवल सात महीने तक चला, चरण सिंह के बाद दूसरा सबसे छोटा कार्यकाल. कांग्रेस ने मामूली बहाने से उनका समर्थन वापस ले लिया. वह 1991में लोकसभा चुनाव तक कार्यवाहक पीएम के रूप में बने रहे.

लेकिन जैसे ही चुनाव के लिए प्रचार शुरू हुआ और पहले तीन दौर का मतदान हुआ, राजीव गांधी की हत्या एक मानव बम से कर दी गई. ऐसे में चुनावी नतीजे खंडित जनादेश लेकर आए. अगला पीएम एक आश्चर्यजनक विकल्प था. यह पी वी नरसिम्हा राव थे जो राजनैतिक जीवन से लगभग सेवानिवृत्त हो चुके थे. लेकिन राजीव गांधी की हत्या ने उन्हें एक अल्पमत सरकार का नेतृत्व करने वाले के रूप में फिर से सक्रिय कर दिया. वह बड़े आर्थिक सुधारों सहित कई चीजें हासिल करने में कामयाब रहे.

राव नेहरू-गांधी परिवार के बाहर लगातार पांच वर्षों तक प्रधान मंत्री के रूप में सेवा करने वाले पहले व्यक्ति थे, आंध्र प्रदेश के पहले व्यक्ति थे, और दक्षिण भारत से भी पहले व्यक्ति थे. राव को मजबूरी में सुधारों की शुरुआत करनी पड़ी. भारत को आर्थिक संकट से उबारना था.

डॉ मनमोहन सिंह को अपने वित्त मंत्री के रूप में नियुक्त करते हुए, राव ने देश को विदेशी निवेश के लिए खोल दिया, पूंजी बाजारों में सुधार किया, घरेलू व्यापार को नियंत्रित किया और व्यापार व्यवस्था को बदल दिया. राव राजकोषीय घाटे में कटौती, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण और बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाना चाहते थे.

हालांकि, उनके कार्यकाल का एक स्याह पक्ष 1992में बाबरी मस्जिद का विध्वंस था. हर्षद मेहता के इस आरोप के मद्देनजर कि उन्होंने राव को रिश्वत दी थी, इस अवधि के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप भी तेज हो गए. इसलिए 1996के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने सत्ता खो दी.

अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया क्योंकि भाजपा संसद में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, उन्हें पीएम के रूप में शपथ दिलाई. लेकिन वाजपेयी बहुमत हासिल करने में विफल रहे और 13दिनों तक पद पर रहने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.

1996और 1998के बीच, कांग्रेस ने फिर से भाजपा विरोधी सरकारों को आगे बढ़ाया- पहले एच डी देवेगौड़ा को बाहरी समर्थन प्रदान करके और फिर आई के गुजराल को, जिन्होंने संयुक्त मोर्चा का नेतृत्व किया. वामपंथी भी भागीदार थे. लेकिन राजीव गांधी की हत्या में डीएमके की कथित भूमिका का जैन आयोग की रिपोर्ट में जिक्र होने से मामला गर्म हो गया, जिसने कांग्रेस को गुजराल से समर्थन वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया, जिन्होंने डीएमके मंत्रियों को अपनी सरकार से छोड़ने के लिए कहने से इनकार कर दिया.

1998के लोकसभा चुनावों के बाद, वाजपेयी जयललिता के समर्थन से भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के शीर्ष पर वापस आ गए थे, जिन्होंने एक साल के भीतर समर्थन वापस ले लिया, जिससे नए चुनाव हुए.

1999के चुनावों के बाद वाजपेयी एनडीए के नेता के रूप में सत्ता में लौट आए. उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन पूर्ण बहुमत की कमी के बावजूद वे बहुत कुछ हासिल करने में सफल रहे.

1998में, वाजपेयी ने भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण किया और करगिल में आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया, जिसके पहले वह पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ हाथ मिलाने के लिए लाहौर के लिए एक बस में सवार हुए. 1999का करगिल युद्ध एक महत्वपूर्ण मोड़ था.

वाजपेयी ने 2004में राव युग के उदारीकरण को आगे बढ़ाते हुए अपना कार्यकाल पूरा किया. लेकिन बीजेपी को दूसरा कार्यकाल नहीं मिल सका.

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाईं, जो 2014तक दस साल तक पीएम रहे. वह खुद पीएम हो सकती थीं, लेकिन डॉ सुब्रमण्यम स्वामी के उनके खिलाफ अभियान और भाजपा के उसकी इतालवी पृष्ठभूमि का मुखर विरोध का हवाला देते हुए उनका पीएम बनना मुमकिन नहीं रह गया. डॉ. सिंह का कार्यकाल बड़े पैमाने के घोटालों से प्रभावित रहा, जिसकी भारी कीमत कांग्रेस को चुकानी पड़ी.

अंत में, 2014में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी मुख्य चुनौती के रूप में उभरे. 1984के बाद पहली बार, भाजपा ने उस वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत हासिल किया.

मोदी ने शासन की गुणवत्ता में बड़े बदलाव का वादा किया, गरीबों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. उनके बड़े सुधारों ने भी उनके नेतृत्व में कई समस्याओं के बावजूद भाजपा को मजबूती प्रदान की. मोदी ने 2019में फिर से एक नए सिरे से जनादेश जीता, जो विपक्ष के लिए बहुत बड़ा झटका था, जो राहुल गांधी जैसे नेताओं के कारण आधार खो बैठा है.

मोदी के कार्यकाल में जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने, नागरिकता संशोधन अधिनियम और तीन विवादास्पद कृषि कानूनों की शुरुआत हुई, जिन्हें बाद में किसानों के विरोध के कारण वापस ले लिया गया.

तब से, मोदी एक प्रमुख व्यक्ति बने हुए हैं जिसके इर्द-गिर्द भारत की राजनीति घूमती रहती है. पूर्ववर्ती कांग्रेस की तरह ही बीजेपी का दबदबा कायम है. मोदी ने बिजली, गैस कनेक्शन, पाइप जलापूर्ति और शौचालय सहित सभी सुविधाओं के साथ घर बनाने के लिए अपनी सरकार की योजनाओं के साथ लाभार्थियों का एक नया जनाधार कायम किया है. उनके नेतृत्व ने राज्यों में भी बीजेपी की जीत सुनिश्चित की है.