एफएटीएफ के पास पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने के लिए पर्याप्त सबूत

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
एफएटीएफ के पास पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने के लिए पर्याप्त सबूत
एफएटीएफ के पास पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने के लिए पर्याप्त सबूत

 

नई दिल्ली. वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) के 19 अक्टूबर से होने वाले पूर्ण सत्र से पहले रविवार को पाकिस्तान और आईएमएफ की विफल वार्ता, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए अच्छी खबर नहीं है. यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हो रहा है, जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री खान देश की जासूसी एजेंसी आईएसआई के प्रमुख की नियुक्ति के मुद्दे पर शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान के साथ टकराव की स्थिति में हैं.

2019 के आईएमएफ सौदे के अनुसार, इमरान खान सरकार दस्तावेज में धन-शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के औपचारिक उल्लेख के लिए सहमत हो गई थी और इस प्रकार आईएमएफ किश्तों को सीधे वित्तीय कार्रवाई कार्य बल से जोड़ दिया गया था.

2018 से एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में मौजूद पाकिस्तान को इस साल जून में बाकी शर्तों को पूरा करने के लिए अक्टूबर तक तीन महीने का समय दिया गया था. एफएटीएफ की पूर्ण बैठक 19-21 अक्टूबर तक पेरिस में होगी.

आतंकवाद पर नवीनतम अमेरिकी कांग्रेस की ‘पाकिस्तान में आतंकवादी और अन्य आतंकवादी समूह’, शीर्षक वाली रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका द्वारा ‘विदेशी आतंकवादी संगठन’ के रूप में नामित कम से कम 12 समूह पाकिस्तान में स्थित हैं, जिनमें से पांच भारत-केंद्रित हैं. अमेरिकी प्रशासन के अनुसार, इस्लामाबाद कई नॉन-स्टेट आतंकवादी समूहों के लिए संचालन का आधार बना हुआ है, जिनमें से कई वैश्विक पहुंच के साथ बने हुए हैं.

रिपोर्ट का हवाला देते हुए, अमेरिकी विदेश विभाग ने बताया था कि पाकिस्तान इसके विपरीत दावों के बावजूद आतंकवाद के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बना हुआ है. आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से किए गए वादों के बावजूद, पाकिस्तान ने आतंकवादी समूहों और उनके पनाहगाहों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है.

पिछले हफ्ते, बाइडेन प्रशासन ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरा खेल खेलने के लिए पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों को डाउनग्रेड यानी कम कर दिया था. एक तरफ पाकिस्तान को ‘आतंक के खिलाफ युद्ध’ में अमेरिका का सहयोगी माना जाता था, लेकिन साथ ही, यह तालिबान को अफगानिस्तान पर कब्जा करने में मदद कर रहा था.

अगस्त के मध्य में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से, पाकिस्तान सार्वजनिक रूप से तालिबान सरकार की भविष्य की मान्यता के बारे में बात कर रहा है, जिसका पाकिस्तान की शक्तिशाली सैन्य खुफिया सेवाओं, आईएसआई से घनिष्ठ संबंध है.

रिपोर्ट से पता चलता है कि पाकिस्तान एक क्लासिक हाइब्रिड राष्ट्र बन गया है, जिसमें सेना और आतंकी राष्ट्र और उसके कार्यों को प्रभावित कर रहे हैं.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एच. आर. मैकमास्टर ने कहा कि अमेरिका को अगस्त में काबुल के पतन के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को उनकी कुछ टिप्पणियों के लिए जवाबदेह ठहराना चाहिए और श्जिहादी आतंकवादियों के समर्थनश् के कारण पाकिस्तान को व्यापक रूप से अंतरराष्ट्रीय अलगाव का सामना करना चाहिए.

एक पाकिस्तानी पत्रकार ने माना है कि पाकिस्तान पर प्रतिबंध बड़े पैमाने पर बढ़ रहे हैं. पत्रकार ने कहा, ‘यह देखते हुए कि वाशिंगटन ने हमेशा पाकिस्तान को तालिबान के प्रमुख प्रायोजक के रूप में देखा है, पाकिस्तान को हक्कानी को नियंत्रित करने के लिए कहने की जिद ने इस्लामाबाद के लिए बहुत सारी जटिलताएं पैदा कर दी हैं.’

रिपोर्ट का हवाला देते हुए, थिंक-टैंक सेंटर ऑफ पॉलिटिकल एंड फॉरेन अफेयर्स के संस्थापक और अध्यक्ष फैबियन बॉसार्ट ने टाइम्स ऑफ इजराइल पर लिखा है कि एफएटीएफ को अफगानिस्तान में एक निर्वाचित सरकार को उखाड़ फेंकने वाले एक आतंकवादी समूह तालिबान की मदद करने में पाकिस्तान की भूमिका के विभिन्न देशों द्वारा एकत्रित किए गए सबूतों को भी रिकॉर्ड में रखना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा है कि अलकायदा जैसे समूहों की मेजबानी के लिए मशहूर  हक्कानी नेटवर्क जैसे वैश्विक आतंकवादी संगठनों के साथ पाकिस्तान के संबंध को रिकॉर्ड में लाने की जरूरत है.

बॉसार्ट ने चेतावनी जारी करते हुए कहा, ‘अगर एफएटीएफ पाकिस्तान को उसके आतंकवादी प्रायोजन के लिए ब्लैक लिस्ट (काली सूची) में डालने में देरी करता है, तो वह अपने कर्तव्य का पालन करने में विफल हो जाएगा.’

जून में हुई पिछली बैठक में, एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने पाकिस्तान को अपनी ग्रे सूची में बनाए रखने का फैसला किया था और उसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी समूहों के वरिष्ठ नेताओं पर मुकदमा चलाने और उन्हें टारगेट करने के लिए कहा था.