विश्व धर्मों में मानवीय मूल्य- भाग एक

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 22-04-2022
विश्व धर्मों में मानवीय मूल्य
विश्व धर्मों में मानवीय मूल्य

 

 

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डॉ. ओबैदुर रहमानीनदवी

आज, हम में से अधिकांश पाप, दोष, अपराध, भ्रष्टाचार और असामाजिक गतिविधियों में डूब गए हैं. मानवता ने अपने सबसे निचले स्तर को छू लिया है. वह जो पवित्रता रखता है वह लुप्त हो गया है. मौजूदा कानून नापाक तत्वों में डर पैदा करने में नाकाम रहे हैं. कानून लागू करने वाली एजेंसियां ​​बेअसर हो गई हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची हुई है. भौतिकवाद ने जीवन के सूक्ष्म पहलुओं पर छाया डाला है. हर तरह का भ्रष्टाचार अब जीवन का एक तरीका बन गया है.

एक विख्यात विद्वान ने ठीक ही कहा है: “जीवन की भौतिकवादी अवधारणा के परिणामस्वरूप मानव जाति आज संकट का सामना कर रही है, जिसका शायद इतिहास में कोई समानान्तर नहीं है. मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त इस संकट ने धर्म के विरुद्ध सार्वभौम विद्रोह का रूप धारण कर लिया है.

इस स्थिति के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से पता चलता है कि यह असुरक्षा की मूल भावना का अंतिम उत्पाद है. विश्व आज विनाश के कगार पर खड़ा है. हमारे सिर पर परमाणु युद्ध का खतरा मंडरा रहा है.

यह मानवता, यदि जीवित रहना चाहती है, तो उसके पास भौतिकवाद की अवधारणा से अलग होने और दुनिया में शांति और समृद्धि के लिए विनम्रतापूर्वक ईश्वरीय मार्गदर्शन की ओर देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. विनाश और उत्तरजीविता के बीच चुनाव किसी न किसी दिन अवश्य ही करना चाहिए."

यह खुशी की बात है कि आज मानवीय मूल्यों और धन की लालच के अभाव में हम सीरिया, फिलिस्तीन, इराक, अफगानिस्तान और म्यांमार सहित पूरी दुनिया में नरसंहार, नरसंहार, तबाही और नरसंहार देखते हैं.

यह धर्म है जो हमें ईश्वर का भय और नैतिक शक्ति प्रदान करता है. यह हमारे लिए उन रेखाओं को निर्धारित करता है जिन पर हमें स्वयं आचरण करना होता है. इसके अलावा यह हमें मानवीय मूल्य और उदात्त मानदंड सिखाता है. यह हमें मोक्ष, प्रगति और समृद्धि के मार्ग की ओर भी ले जाता है.

मानवीय मूल्य मानव जाति की अधिक विशेषता हैं. अगर हमारे पास वे नहीं हैं, तो हम असली इंसान नहीं हैं. इसलिए, प्रत्येक मनुष्य के लिए यह आवश्यक है कि वह विचारशीलता, नैतिक मूल्यों, दया और करुणा के गुणों का विकास करे. इन गुणों के बिना हम केवल मानव पशु हैं, नरपशु, उससे अधिक नहीं.

मानवीय मूल्यों का दायरा सिर्फ इंसानों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह दुनिया की उन सभी चीजों तक फैला हुआ है, जो मानव जाति के लाभ के लिए बनाई गई हैं. माता-पिता के अधिकार, बच्चों के अधिकार, पति-पत्नी के अधिकार, रिश्तेदारों के अधिकार, पड़ोसियों के अधिकार, अनाथों के अधिकार, विधवाओं के साथ परोपकारी व्यवहार, गरीबों के अधिकार, रोगियों के अधिकार, दासों और नौकरों के अधिकार, मेहमानों के अधिकार, मुस्लिम पर मुस्लिम के अधिकार, मानवीय संबंध, जानवरों के अधिकार और इसी तरह के अधिकार मानवीय मूल्यों के अंतर्गत हैं.

अपनी पुस्तक "ट्रू नॉलेज" में डॉ. एस. राधाकृष्णन कहते हैं: "उपनिषद में यह एक छोटा सा संवाद है कि एक प्रश्न रखा गया है: अच्छे जीवन का सार क्या है? शिक्षक उत्तर देता है: "क्या आपने उत्तर नहीं सुना"? एक गड़गड़ाहट हुई: दा दा दा. तुरंत शिक्षक ने समझाया कि ये अच्छे जीवन का सार हैं. - दामा, दाना, दया. वे अच्छे जीवन की अनिवार्यता का गठन करते हैं. दम या आत्मसंयम, संयम रखना चाहिए, जो मनुष्य की पहचान है."

हर धर्म शिक्षा पर बहुत जोर देता है. शिक्षा का मूल उद्देश्य अल्लाह के साथ मनुष्य के संबंध को समझना है. पूर्व-इस्लामिक युग में ज्ञान की ओर बहुत कम ध्यान दिया जाता था. यह पैगंबर मुहम्मद थे जिन्होंने जीवन की वास्तविकताओं को समझने के लिए ज्ञान को एक आवश्यक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया.

पैगंबर मुहम्मदके लिए पहला रहस्योद्घाटन "इकरा बिस्मे रब्बी कल्लाज़ी खलक़" (अपने भगवान के नाम पर पढ़ें) था. कहने की जरूरत नहीं है कि कुरान शब्द का अर्थ ही पाठ, व्याख्यान और प्रवचन है."

(डॉ. ओबैदुर रहमानी नदवी दारुल उलूम नदवतुल उलमा, लखनऊ के फैकल्टी मेंबर हैं)