ढाई-चाल : ये दो राज्यों की सीमाएं हैं, दो देशों की नहीं

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 05-12-2022
ढाई-चाल : ये दो राज्यों की सीमाएं हैं, दो देशों की नहीं
ढाई-चाल : ये दो राज्यों की सीमाएं हैं, दो देशों की नहीं

 

हरजिंदर

महाराष्ट्र की सीमा पर कर्नाटक का एक कस्बा है – बेलागावी.हो सकता है कि आपको यह नाम कुछ नया सा लगे.दरअसल यह नया है भी.इस शहर को यह नाम आठ साल पहले ही मिला है.इससे पहले इसका नाम था बेलगाम, या बेलगांव.मराठी लोग तो इसे आज भी बेलगांव ही कहते हैं.यह एक अच्छा और स्मृद्ध नगर है.इसे स्मार्ट सिटी का दर्जा भी मिला हुआ है और कर्नाटक सरकार ने तो इसे अपनी दूसरी राजधानी भी घोषित किया है.

हर बार जब कर्नाटक या महाराष्ट्र में चुनाव होते हैं तो यह शहर सुर्खियों में आ जाता है.यह ऐसा शहर है जहां मराठी और कन्नड़ भाषी दोनों ही रहते हैं और मराठी लोगों का कहना है कि यह जगह महाराष्ट्र का ही हिस्सा होनी चाहिए क्योंकि अतीत में यह बांबे प्रेसीडेंसी में शामिल थी.

एक बार तो बेलगाम नगर निगम ने यह प्रस्ताव ही पास कर दिया था कि इस शहर को महाराष्ट्र में शामिल किया जाए। जबकि कन्नड़ लोगों का कहना है कि यह कर्नाटक का ही अभिन्न अंग है.दोनों राज्यों का यह विवाद सुप्रीम कोर्ट भी पहंुच चुका है.

 

अगले साल कर्नाटक में चुनाव हैं इसलिए इस विवाद ने अपनी परंपरागत चुनावी भूमिका निभानी शुरू कर दी है.छोटी-मोटी झड़पें, छात्रों के संघर्ष और स्थानीय संगठनों के विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं.यह कर्नाटक का एक औद्योगिक जिला भी है.इन सब गतिविधियों का उद्योगों पर भी असर पड़ा है, जिसकी वजह से कुछ उद्योगपतियों ने यह क्षेत्र छोड़ देने की धमकी भी दी है.दूसरी ओर महाराष्ट्र के संगठन भी सक्रिय हो गए हैं.वहां पर एक मरााठी महासम्मेलन की घोषणा हुई है जहां प्रदेश सरकार के दो मंत्रियों ने जाने की सहमति दी है.अगर ये दो मंत्री वहां पहंुचते है तो मामले का गर्माना तय है.

राजनीति में चर्चा यही है कि अगर दोनों राज्यों के बीच तनाव फिर एक बार बढ़ता है तो इसका चुनावी फायदा किसे मिलेगा.दिलचस्प बात यह है कि कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों ही जगह भाजपा के गंठबंधन की ही सरकार है.

बेशक, यह मसला काफी उलझा हुआ है और इस तरह के दबावों से इसका समाधान नहीं होने वाला.लेकिन फिलहाल इसके समाधान से ज्यादा दिलचस्पी इसका राजनीतिक फायदा उठाने में ही दिखाई जा रही है.ज्यादा खतरा इसी से है.

फायदा उठाने की कोशिश में ऐसे मसलों को अक्सर लोगों की भावनाओं से जोड़ा जाता है और फिर एक राजनीतिक उबाल पैदा किया जाता है.ऐसे राजनीतिक उबाल किस हद तक जा सकते हैं इसे हम कुछ ही दिन पहले असम और मेघालय की सीमा पर देख चुके हैं.

इन दोनों राज्यों की पुलिस के बीच जिस तरह से गोलीबारी हुई और कईं लोगों की जान गई वह बताता है कि इस तरह के खतरों को समय रहते नियंत्रित करना कितना जरूरी है.यहां भी स्थिति काफी कुछ वैसी ही थी.असम में भाजपा की सरकार है जबकि मेघालय में जो सरकार है उसे भी भाजपा का समर्थन हासिल है.

ऐसे विवाद और भी राज्यों के बीच हैं.मसलन हरियाणा और पंजाब के बीच अबोहर और फाजिल्का जिलों के कुछ हिस्सों को लेकर विवाद कभी ठीक से नहीं सुलझ पाया.बेहतर होता कि ऐसे मसलों पर राजनीतिक दलों और संगठनों के बीच एक राष्ट्रीय आम सहमति बनाई जाती और सभी यह तय करते कि इसे राजनीति का मुद्दा नहीं बनाया जाएगा.लेकिन बात जब चुनावी फायदा लेने की हो तो आम सहमति पर कौन ध्यान देगा?

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)


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