परदे के पारः कंबोडिया का सिनेमा वहां के सियासी तजुर्बों का आईना है

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 05-11-2022
कंबोडिया का सिनेमा
कंबोडिया का सिनेमा

 

परदे के पार/ अजित राय

कंबोडिया—जिसे पहले कंपूचिया कहा जाता था—के  साथ भारत का शताब्दियों पुराना रिश्ता रहा है और अंकोरवाट के मंदिरों के भग्नावशेष भारतीय और विदेशी पर्यटकों की पसंदीदा जगहें है. शताब्दियों से यह हिंदू राष्ट्र रहा है जो बाद में बौद्ध राष्ट्र बन गया.

सितंबर के पहले हप्ते में भारतीय अखबारों में एक छोटी सी खबर छपी कि कंबोडिया में खमेर रूज का जेलर कियांग गुएका की मौत हो गई है. उसने जेल में अमानुषिक प्रताड़ना देकर करीब सोलह हजार लोगों को मार दिया था. वहां के कम्यूनिस्ट तानाशाह पोल पोट (जिसका असली नाम सलोथ सार था) के नेतृत्व में खमेर रूज के शासन (1975-79) में हुए भीषण नरसंहार में करीब बीस लाख लोग मारे गए थे जो उस समय की कंबोडिया की आबादी का एक चौथाई था.

विश्व सिनेमा में कंबोडिया की फिल्मों की चर्चा तब शुरू हुई जब 1994 में पेरिस बसे कंबोडियाई फिल्मकार रिथी पान की फिल्म  "राइस पीपुल" को कान फिल्म समारोह के मुख्य प्रतियोगिता खंड में दिखाया गया. कंबोडिया की यह पहली फिल्म थी जिसे कान फिल्म समारोह के सबसे महत्वपूर्ण खंड में ' पाम डि ओर" के मुकाबले के लिए जगह मिली थी.

यह फिल्म इसके अगले ही  साल 1995 में  67वें एकेडमी अवार्ड में विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म की श्रेणी में आस्कर अवार्ड के लिए नामांकित होनेवाली पहली कंबोडियाई फिल्म भी  बन गई.

"राइस पीपुल" कंबोडिया में खमेर रूज के शासन के अंत के बाद एक ग्रामीण परिवार के जीवन संघर्ष की कथा है.कंबोडिया में वैसे तो 1920 से ही विदेशी लोग फिल्में बनाते रहे हैं, पर वहां का अपना फिल्म उद्योग 1950 से विकसित होना शुरू हुआ जो आज भी जारी है.

"राइस पीपुल" की अपार सफलता के बाद रिथी पान विश्व के महत्त्वपूर्ण  फिल्मकार मान लिए गए. उनकी बहुचर्चित फिल्म  "द मिसिंग पिक्चर" को 2013 के 66 वें कान फिल्म समारोह के अन सर्टेन रिगार्ड खंड में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का "पाम डि ओर" पुरस्कार मिला. उसी साल कंबोडिया के चाय बोरा की फिल्म "लोस्ट लव" को आस्कर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया. रिथी पान की एक दूसरी फिल्म " एग्जाइल " को 2016 के 69 वें कान फिल्म समारोह में विशेष रूप से प्रर्दशित किया गया.

अभी पिछले ही साल  उन्हें 72वें कान फिल्म समारोह में " कैमरा डि ओर" खंड की अंतरराष्ट्रीय जूरी का अध्यक्ष बनाया गया था. यह पुरस्कार कान फिल्म समारोह के सभी खंडों में प्रर्दशित किसी युवा फिल्मकार की पहली फिल्म को दिया जाता है.

"एग्जाइल" बिना एक शब्द कहे कई वजहों से देश निकाला सह रहे लोगों की चीख है. रिथी पान पेरिस  मे रहते है और कंबोडिया मे तानाशाही के खिलाफ लगातार फिल्में बना रहे है. यह फिल्म अपने कलात्मक सुंदरता मे अद्वितीय है.

जिस तरह से अपने देश को तरस रहे नायक की यादों के साथ हम यात्रा करते है, जल,जमीन, अग्नि,  हवा, आकाश , पशु, पंछी, पेड़, घास, घर और चलते लोगो को अविस्मरणीय तरीके से कैमरा दिखाता है.बचपन में रिथी पान ने अपने परिवार और जान पहचान के  अनेक लोगों को अपने सामने मरते देखा है. उन सबकी चीखें आज भी उनका पीछा करती है. कंबोडिया से पलायन के करीब 25 साल बाद उन्होंने " एग्जाइल " (2016) में अपने बचपना की छूट गई यादों को सिनेमा में उकेरा है.

रिथी पान की फ्रेंच फिल्म  " द मिसिंग पिक्चर " (2013) विश्व सिनेमा में एक नया प्रयोग है. आधी फिल्म खमेर रूज के शासन (1975-79)  के दौरान हुए भयानक नरसंहार की खबरों और वीडियो फुटेज पर आधारित वृत्तचित्र की तरह है और बाकी आधे हिस्से में मिट्टी की मूर्तियों और कलाकृतियों के सहारे नाट्य रूपांतरण किया गया है. इस तरह हर फ्रेम एक कलाकृति बन जाता है, नरसंहार की कलाकृति.

यह फिल्म एक तरह से खमेर रूज नरसंहार में मारे गए निर्दोष नागरिकों के प्रति एक सिनेमाई श्रद्धांजलि है.

खमेर रूज के शासन में रिथी पान के परिवार को  1975 की गर्मियों में कंबोडिया की राजधानी फोम पेन से निकाल कर सुदूर ग्रामीण बंजर इलाके के लेबर कैंप में फेंक दिया गया जहां उनके माता-पिता, बहन और चचेरे भाई एक एक कर भूख से मर गए.

1979 में पंद्रह साल की उम्र में वे किसी तरह जान बचाकर वहां से भागने में सफल हुए. कुछ दिन थाईलैंड के शरणार्थी शिविरों में भटकने के बाद वे पेरिस आने में सफल हो गए. यहां बढ़ई का काम करने लगे. एक दिन उन्हें किसी के साथ एक नाइट पार्टी में वीडियो रिकॉर्डिंग का काम मिला. बस यहीं से उनकी किस्मत बदली और सिनेमा का जुनून पैदा हुआ.

उन्होंने किसी तरह मिहनत मजदूरी करके पेरिस के एक नामी संस्थान इंस्टीट्यूट फॉर द एडवांस्ड सिनेमैटोग्राफिक स्टडीज  से  फिल्म निर्माण का प्रशिक्षण लिया . यहां से ग्रेजुएशन करने के बाद 1990 में वे कंबोडिया लौटे और अपनी पहली फिल्म बनाई - " साइट 2" . यह फिल्म अस्सी के दशक में कंबोडिया- थाईलैंड सीमा पर स्थित शरणार्थी शिविर में दिन काट रहे एक परिवार की संघर्ष गाथा है.

दरअसल यह रिथी पान के अपने अनुभवों का ही एक आइना है जो उन्हें शरणार्थी शिविरों में हुए थे. इसे फ्रांस के एक फिल्म समारोह में पुरस्कार मिल गया. इसके बाद रिथी पान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

स्टीवन स्पीलबर्ग, ओलिवर स्टोन, एंजलीना जोली ( फर्स्ट दे किल्ड माई फादर,2016, रिथी पान के साथ),  मैट डिलान ( सिटी आफ घोस्ट), वांग कार वाई ( इन द मूड फार लव) जैसे दिग्गज फिल्मकारों के अलावा कंबोडिया में और खासकर अंकोरवाट के मंदिरों में अनेक अमेरिकी-यूरोपीय फिल्मकार शूटिंग करते रहे हैं.

न्यूयार्क टाइम्स के विश्व प्रसिद्ध फोटो पत्रकार ने सबसे पहले कंबोडिया के नरसंहार और मारे गए निर्दोष नागरिकों की सामूहिक कब्रों- समाधियों की तस्वीरें उजागर की. वह भी किसी तरह बच निकला था. उसे लेकर 1984 में एक मशहूर फिल्म भी बनी थी, - " द किलिंग फील्ड्स ."

कंबोडिया 11अगस्त 1863 से 9 नवंबर 1963 तक फ्रांस के अधीन रहा. कम्यूनिस्ट पार्टी आफ कंपूचिया के सदस्यों को खमेर रूज कहा जाता है जो पुराने खमेर हिंदू राजवंश के आधुनिक अवतार थे.  

उन्होंने भी हिटलर की तरह एक विशुद्ध कंबोडियाई नस्ल की श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए बीस लाख विरोधियों और दूसरे नागरिकों का नरसंहार किया था. उन्होंने घरों से छीनकर जवान बच्चों का ब्रेन वाश करने के लिए उन्हें कम्यून में रखा .

7 जनवरी 1979 को वियतनामी फौजों ने कंबोडिया की राजधानी फोम पेन पर कब्ज करके पोल पोट के आतातायी शासन का अंत कर दिया था हालांकि अमरीका खमेर रूज को  अंत तक समर्थन देता रहा ताकि उनकी मदद से वह वियतनाम से युद्ध में हुई शर्मनाक हार का बदला ले सके. युद्ध, तानाशाही, अमेरिकी बमबारी झेलते हुए कंबोडिया में अंततः 23 अक्टूबर 1991 को हुए पेरिस शांति समझौते के बाद स्थिरता और शांति बहाल हुई. वहां के प्रधानमंत्री सुन सेन भी खमेर रूज के सदस्य रहे हैं. 

आज कहने को तो वहां बहुदलीय संसदीय लोकतंत्र है पर वास्तव में वहां चीन की तरह  एक ही दल का शासन हमेशा से रहा है.