रावी द्विवेदी
सबसे पहले तो देश के वैज्ञानिक समुदाय को सलाम, जिन्होंने दुनियाभर में कहर ढाने वाली कोरोना महामारी से मुकाबले को इतनी जल्दी टीका बनाकर भारत को अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन जैसे चुनींदा देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया.
भारत में स्वदेश विकसित कोवैक्सीन समेत तीन टीकों के इस्तेमाल को मंजूरी मिल चुकी है. तीसरे चरण का टीकाकरण अभियान भी शुरू हो गया. इसमें 18 से 44 वर्ष आयु वर्ग के लोगों को टीका लगाया जाना है. आंकड़ों की बात करें तो दुनियाभर में अब तक करीब डेढ़ अरब लोगों को टीके लग चुके है. टीके की खुराक पूरी कर लेने वाली आबादी 36 करोड़ के आसपास यानी करीब 4.6 फीसदी है.
टीकाकरण में अमेरिका सबसे आगे है,जहां टीके की कुल 27.4 करोड़ से ज्यादा खुराक दी जा चुकी हैं. 12.3 करोड़ लोगों यानी 37.6 फीसदी आबादी को टीके की पूरी खुराक मिल चुकी है. अमेरिका अब अपने यहां बच्चों के टीकाकरण का अभियान शुरू करने की तैयारी में है.
इधर, हमारे यहां अब तक 18 करोड़ के करीब लोगों को ही टीके की खुराक दी जा सकी है. इसमें दूसरी खुराक लगवाने वालों का आंकड़ा 4.05 करोड़ यानी कुल आबादी का महज तीन फीसदी ही है. तीसरा चरण शुरू होने के साथ टीकों की उपलब्धता को लेकर संकट के बादल मंडराने लगे हैं.
कई राज्यों में टीकों की कमी हो गई है. इसकी कोई गारंटी नहीं रह गई कि एक खुराक ले चुके लोगों को दूसरी खुराक समय पर मिल जाएगी. वहीं, 18-44 आयु वर्ग के टीकाकरण का अभियान पूरी तरह सिरे नहीं चढ़ पाया है.
कारण, 135 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश में एक साथ इतना बड़ा अभियान चलाना कोई आसान काम नहीं. कुछ रिपोर्टों की मानें तो जिस गति से टीकाकरण चल रहा है, उसमें पूरी आबादी को वैक्सीन लगने में साढ़े-तीन से चार साल का वक्त लगेगा. इस महामारी ने दूसरी लहर में अपना जो भयावह चेहरा दिखाया है, उसके बाद टीकाकरण में इतना समय तो सदियों के इंतजार जैसा हो जाएगा.
वैक्सीन हमारी इम्युनिटी कितने समय तक के लिए और कितनी ज्यादा बढ़ाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा,लेकिन अभी तो कोविड से बचाव का यही एक उपाय है. जाहिर है, आज सबसे बड़ी जरूरत टीकाकरण अभियान को गति देने की है. इसमें मुफ्त टीका गरीबी की रेखा से नीचे (बीपीएल) रहने वालों के लिए ही सीमित रखने का विकल्प अपनाना संभवतः ज्यादा कारगर हो सकता है.
मुफ्त वैक्सीन देने में दिक्कत क्या है?
कोरोना की वैक्सीन दुनियाभर में मुफ्त लगाई जा रही है. भारत में भी अन्य सभी तरह के टीके मुफ्त ही लगाए जाते हैं. तर्क है कि जब बाकी टीके मुफ्त लगते हैं तो कोरोना के लिए इसे मुफ्त रखने में दिक्कत क्या है. इसमें दो राय नहीं कि टीकाकरण सरकार की जिम्मेदारी है.
इसका खर्च उसे ही वहन करना चाहिए. सवाल उठता है कि क्या कमजोर बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे और स्वास्थ्य पर जीडीपी के महज 3.5 फीसदी खर्च के साथ इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है?
फिर, अन्य सभी टीके मुफ्त लगने की बात करें तो इन अभियानों को चलाने के लिए बुनियादी ढांचा एक दिन में तो नहीं बना है.
फिर एक साथ इतनी बड़ी आबादी के टीकाकरण की जरूरत भी नहीं पड़ती है. ऐसा नहीं कि कोविड का टीका अभी भी सब लोगों को मुफ्त लग रहा है. सीमित संख्या में निजी केंद्रों को टीकाकरण की मुहिम में शामिल किया गया है. जो लोग वहां टीके लगवा रहे हैं, उन्हें इसके लिए भुगतान करना पड़ता है. जरूरत है कि इस दायरे को बढ़ाया जाए ताकि जो लोग समर्थ हैं और टीके की कीमत वहन कर सकते हैं, उनसे शुल्क लिया जा सके.
उत्पादन बढ़ेगा,आसानी से टीका लगेगा
भारत में बनने वाले टीके भूटान, नेपाल, मालदीव समेत कई देशों को निर्यात किए जा रहे हैं. हालांकि, देश की जरूरतें ही पूरी न हो पाने पर निर्यात में कमी लानी पड़ी है. टीकों की अनुपलब्धता का एक बड़ा कारण निर्माता कंपनियों का अपनी उत्पादन क्षमता पूरी तरह नहीं बढ़ा पाना भी है.
निर्माता कंपनियों का कहना है कि अगर उनका वित्तीय ढांचा मजबूत हो तो टीकों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में मदद मिल सकती है. वैसे सरकारी नीति में हालिया बदलाव इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है.
केंद्र ने वैक्सीन निर्माताओं को 50 फीसदी टीके सीधे राज्यों और निजी क्षेत्र को बेचने की अनुमति दी है. इससे निर्माता कंपनियों को बड़ी राहत मिल सकती है, जो राज्यों और निजी क्षेत्रों को तीन-गुना ज्यादा कीमत पर वैक्सीन बेच पाएंगी.
जाहिर है इससे निर्माता कंपनियों को अपनी लागत निकालने और उत्पादन क्षमता के विस्तार में काफी मदद मिलेगी. जैसा कि इसी महीने कोवैक्सीन की नई दरें निर्धारित किए जाने के बाद भारत बायोटेक के प्रबंध निदेशक और अध्यक्ष कृष्णा एम एल्ला ने संकेत दिए थे कि वैक्सीन की लागत वसूल होने लगे तो सितंबर-अक्टूबर तक निजी क्षेत्र को बड़े पैमाने पर टीके उपलब्ध कराना संभव होगा.
टीकों की उपलब्धता के साथ उनके लगने की समुचित व्यवस्था करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है. इस काम में निजी क्षेत्र की भागीदार बढ़ाना एक कारगर उपाय साबित हो सकता है. ऐसे में जाहिर है कि मुफ्त टीकाकरण की व्यवस्था के साथ मजबूत ढांचा तैयार करना तो संभव नहीं होगा.
वैसे हाल में कोविड की दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडर आदि की कालाबाजारी की घटनाएं जिस तरह सामने आई हैं, उन्हें देखते हुए यह सुनिश्चित करना जरूरी होगा कि टीके सभी को आसानी से उपलब्ध हों और इन्हें लगवाने की कीमत जेब पर जरूरत से ज्यादा भारी न पड़े.
समर्थ लोग क्या पैसे देकर टीकाकरण कराना पसंद करेंगे
एक रिपोर्ट के मुताबिक, निजी क्षेत्र को वैक्सीन सीधे निर्माताओं से मिलने की व्यवस्था होने के बाद इसी माह प्राइवेट अस्पतालों ने करीब 80 लाख खुराक खरीदी हैं. ऐसी संभावनाएं भी जताई जा रही हैं कि जल्द ही वैक्सीन दवा की दुकानों में भी उपलब्ध होने लगेगी.
इससे 18-44 आयुवर्ग के लोगों को सरकार के मुफ्त टीके के लिए रजिस्ट्रेशन कराने और इंतजार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यह तो इसके बाद ही पता चलेगा कि कितने लोग टीके लगवाने के लिए शुल्क चुकाने को प्राथमिकता देंगे. हालांकि, अभी भी निजी अस्पतालों में टीका मुफ्त नहीं लगता है.
ऐसा तो नहीं लगता है कि अगर सरकार सिर्फ बीपीएल के लिए ही मुफ्त टीकाकरण की व्यवस्था करे तो समर्थ लोग अपना खर्च वहन करने का बहुत ज्यादा विरोध करेंगे. एक अपील पर स्वेच्छा से गैस सब्सिडी छोड़ देने वाले समर्थ लोग शायद निराश नहीं करेंगे.
लेकिन गांव में 781 रुपये प्रतिमाह और शहरों में 965 रुपये प्रतिमाह तक अधिकतम कमाने वाले के लिए तीन-चार सौ रुपये की टीके की खुराक लगवाना भी किसी एक और आपदा से कम नहीं होगा. लेकिन टीकों को करीब 40.7 करोड़ बीपीएल आबादी, योजना आयोग की तरफ सुप्रीम कोर्ट को बताई गई संख्या, के लिए ही सीमित कर दिया जाए तो बुरी तरह चरमराए स्वास्थ्य ढांचे पर बोझ जरूर कम हो सकता.