आशा खोसा
बांग्लादेश के मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) इमानुल जमां को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ढाका यात्रा का काफी इंतजार है क्योंकि उनके दौरे से उन्हें उस दौर की याद आती है जब वह पाकिस्तानी फौज मे लेफ्टिनेंट थे और अपने वरिष्ठों के हाथों मरने से बाल-बाल बचे थे और आखिरकार उन्होंने भारतीय फौज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी थी.
मोदी के दो दिवसीय ढाका यात्रा पर जमां कहते हैं, “हमारी दोस्ती बहुत मजबूत है.”
उन जैसे बहुत सारे बांग्लादेशियों के मन में युद्धकाल के ऐसे तजुर्बे हैं जो दोनों देशों के बीच रिश्तों को पारिभाषित करते हैं.
अपनी यादों में डूबते हुए मेजर जनरल जमां एक घटना के बारे में बताते हैं जिसे सेना में सबसे जघन्य अपराध माना जाता है.
23 मार्च को उनके वरिष्ठों ने उन्हें और उनके तीन अन्य साथियों को एक कमरे में जाने को कहा था. ढाका से फोन पर बातचीत करते हुए जमां ने आवाज-द वॉयस को बताया, “उसने हमें कहा कि देश में कुछ मुश्किलें दरपेश हैं और शेख मुजीबुर्रहमान और जुल्फिकार अली भुट्टो गिरफ्तार कर लिए गए हैं.”
अपने परिवार के साथ मेजर जनरल इमानुल जमां
जमां के साथ कैप्टन सिद्दिकी, कैप्टन इस्लाम और मेजर हसीब को कोमिला आर्मी कैंप के एक कमरें में बंद कर दिया गया. यह कैंप ढाका और चटगांव के बीच स्थित है. यह महज संयोग नही था कि यह चारों फौजी बंगाली थे. उन्हें बांग्लाभाषी फौजियों की बगावत के अंदेशे को जड़ से खत्म करने के लिए ही गिरफ्तार किया गया था.
जमां कहते हैं, “हम उस कमरे में चार या पांच दिन बंद रहे थे.”
30 मार्च को एक फौजी अफसर उनके कमरे में आया उसने इनपर गोलियां दागनी शुरू कर दी. जमां को माथे पर और बांह में गोलियां लगी थी और वह बेहोश हो गए. जब कोई उनकी सांस जांचने के लिए आया तो उन्होंने अपनी सांस रोक लीं और मरने का नाटक करने लगे. आधी रात तक वह उसी स्थिति में पड़े रहे.
आधी रात को वह खिड़की के रास्ते भाग निकले और अंधेरा का फायदा उठाते हुए एक गांव तक पहुंच गए. वह कहते हैं, “गांववालों ने तीन-चार दिनों तक मुझे छिपाए रखा और फिर मुझे सलाह दी कि मैं भारतीय सीमा चौकी से संपर्क करूं क्योंकि हिंदुस्तान हमारी मदद कर रहा था.”
जमां ने बीएसएफ की पोस्ट संपर्क किया जहां उनका स्वागत कैप्टन आर्या ने किया. उन्हें वहां से जी बी अस्पताल अगरतला भेज दिया गया और वहां उनका उपचार किया गया.
इस बीच, उनके कमांडिंग अफसर ने उन्हें मुक्ति वाहिनी जॉइन करने के लिए बुलाया. मुक्तिवाहिनी पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने के लिए बांग्लाभाषी लोगों की सेना थी.
अक्तूबर में भारतीय सेना चटगांव की तरफ बढ़ी थी जहां वह मुक्तिवाहिनी के सदस्य के तौरप पर तैनात थे. वह कहते हैं, “मैं वहां जनरल वीके सिंह से मिला, जो तब जूनियर अधिकारी थे.”हमने भारतीय सेना के साथ मिलकर लड़ाई की, 16 दिसंबर को चटगांव पर कब्जा कर लिया गया.
वह कहते हैं, “मैं उस वक्त कौपिला में थे जब पाकिस्तानी सेना की हार की खबर आई थी. हर कोई खुशी में डूब गया.”
मेजर जनरल जमां कहते हैं वह पाकिस्तानी युद्धबंदियों को चिंतित देख रहे थे जो अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित थे. और वह सोच रहे थे कि वह अपने घर कैसे लौटेंगे.
उनका देश उस दौर से काफी आगे निकल आया है. शेख मुजीब एक महान नेता थे जिन्होंने वह पुल बनाए जिसे पाकिस्तानी फौज ने ध्वस्त कर दिया था. जमां कहते हैं, “वह 10 जनवरी, 1972 को ढाका आए थे और उन्होंने उन सारे मिलों और कारोबारों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जिसे पाकिस्तानी छोड़कर गए थे. वह बंगालियों की एकता के प्रतीक थे.”
हालांकि, बंगबंधु ने देश की मजबूत नींव रखी थी लेकिन देश में राजनैतिक और आर्थिक स्थिरता लाने के लिए जमां प्रधानमंत्री शेख हसीना की खूब तारीफ करते हैं. बांग्लादेश अगला एशियाई टाइगर बनने की राह पर है क्योंकि यहां की अर्थव्यवस्था तेजी से विकास कर रही है.
हाल ही में यह देश, अल्पविकसित देशों की सूची से बाहर आया है और इसको विकासशील देशों की फेहरिस्त मे शामिल किया गया है.
जमां कहते हैं, “यह सब प्रधानमंत्री के मिशन और विजन की वजह से मुमकिन हो पाया है.”जमां की बात में ईमानदारी इसलिए भी है क्योंकि वह खुद सेवानिवृत्त हैं और उनका कोई सियासी झुकाव भी नहीं है.
वह शेख हसीना की मुद्दों पर वैज्ञानिक नजरिए से देखने के लिए तारीफ करते हैं. जमां कहते हैं, “उन्होंने देश का डिजिटलीकरण किया है इससे संसाधनों के प्रबंधन में सुधार आया है और सबसे अहम बात यह कि उन्होंने देश में बिजली की स्थिति को सुधारा है.”
इसके साथ ही उन्होंने जमीनी स्तर पर लोकतंत्र के बीज पुख्ता किए हैं और नगरपालिकों और ग्राम पंचायतों में चुनाव करवाए.
मोदी के बांग्लादेश दौर पर मेजर जनरल जमां कहते हैं कि बांग्लादेशियों का भारत का साथ रिश्ते बहुत मजबूत हैं. वह कहते हैं, “एक फौजी के तौर पर मैं यह याद करता हूं कि सिर्फ 13 दिनों में युद्ध खत्म करने में भारतीय फौज कितनी असरदार थी. मैं उनकी क्षमता और पेशेवर रुख को लेकर बहुत प्रभावित हुआ.”
अधिकतर लोगों के लिए हिंदुस्तान अत्य़धिक संसाधनों और समृद्ध संस्कृति का देश है. बांग्लादेश का एक आम आदमी भारतीयों गानों, संगीत और फिल्मों से मुहब्बत करता है.
जमां को उम्मीद है कि दोनों देश अधिक से अधिक संयुक्त उपक्रमों पर मिलकर काम करें और मोदी के दौरे के वक्त अधिक से अधिक मुद्दों पर सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर हों.
वह कहते हैं, दोनों देशों के रिश्तों के खिलाफ सोचने वाले लोग हाशिए पर हैं.