आशा खोसा
कारगिल की श्योक नदी की घाटी में तुरतुक गांव स्थित है. नियंत्रण रेखा पर स्थित इस गांव में रहने वाले लोग बाल्टी भाषा बोलते हैं और ये लोग नरेंद्र मोदी सरकार को आधुनिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण तारीख की याद दिलाना चाहते हैं. लगता है कि इस तारीख को देश बहुत जल्दी भूल गया है.
1971 में 13/14 दिसंबर की रात को, भारतीय सेना ने चार दिनों तक चले एक ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तानी सेना को हराने के बाद नुब्रा के निकट तुरतुक गांव की ओर कूच किया था. तब यह इलाका पाक अधिकृत कश्मीर का हिस्सा था, जिसे भारतीय सेना ने इसके रणनीतिक महत्व को देखते हुए कब्जा लिया था.
तब ये छह गांव पाकिस्तान के उत्तरी इलाके का हिस्सा थे. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से बाल्टी भाषी लोगों के इलाके को बाल्टिस्तान कहा जाता है.
14 दिसंबर की सुबह, जब भारतीय सेना के लद्दाख स्काउट्स के मेजर रिनचेन ने तुरतुक गांव में उन लोगों से संपर्क किया, जो अपने घरों में छिपे हुए थे. दो सेनाओं के बीच लड़ाई रात भर हुई थी. इसलिए यहां के लोग डरे हुए थे और मेजर रिनचेन ने लोगों के स्वाभाविक डर को दूर किया.
इस सैनिक अधिकारी ने लोगों को आश्वासन दिया कि उन सभी को ‘हमारे लोग’ माना जाएगा. इस आश्वासन के बाद गांव के पास एक नाले में छिपी महिलाएं और बच्चे अपने घरों में लौट आए थे.
14 दिसंबर की सुबह लद्दाखी भाषा में बोलने वाले मेजर रिनचेन की बातें अधिकांश ग्रामीणों के दिमाग में अब भी छपी हुई हैं, जो या तो तब छोटे बच्चे थे या फिर उन्होंने अपने बुजुर्गों से उसके बारे में सुना है.
मेजर रिनचेन ने लद्दाखी में कहा था, ‘भारतीय सेना आपकी हर तरह से मदद करेगी. अपनी महिलाओं और बच्चों को वापस लाएं. वे हमारी माताओं और बहनों की तरह हैं. यदि उनके साथ कोई भी दुर्व्यवहार होता है, तो मैं उनकी सुरक्षा के लिए खुद जिम्मेदार रहूंगा. सैनिक या नागरिक जो हमारे साथ आए हैं, उनमें से किसी भी दुर्व्यवहार करने वाले व्यक्ति के खिलाफ मैं अनुशासनात्मक कार्रवाई करूंगा.”
उसके बाद भारतीय सेना ने अगले दो दिनों में किसी भी प्रतिरोध का सामना किए बिना अन्य गांवों पर कब्जा कर लिया था. पाकिस्तानी सेना के लोग अपनी चौकियां छोड़कर भाग गए थे और भारतीयों द्वारा इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया गया था.
ये छह गांव चुलुन्खा, तुरतुक तुम, तुरतुक फरूल, त्यक्शी ग्राउंड एवं त्यक्शी पंथांग, थांग हैं, जिसमें आज लगभग 6,000 लोग बसे हुए हैं.
यहां शिरीन फातिमा बाल्टी युवा गायिका हैं, जिनके गीतों से नियंत्रण रेखा के पार बाल्टिस्तान में लोग उत्साहित हैं और वे इस इलाके की सबसे मशहूर और मकबूल शख्सियत बन गई हैं.
लोगों ने प्रधानमंत्री को 16 दिसंबर को ‘तुरतुक मुक्ति दिवस’ घोषित करने के लिए एक पत्र भेजा है.
त्यक्शी पंथांग के नंबरदार अब्दुल हमीद, त्यक्शी ग्राउंड के नम्बरदार हाजी अब्दुल कादिर और स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता गुलाम हुसैनी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में हस्ताक्षर किए हैं.
पत्र में कहा गया है कि ‘यह दिन’ विजय दिवस और अन्य स्मारणोत्सवों की तरह है महत्वपूर्ण है. पत्र में कहा गया है, “16दिसंबर को उन सैनिकों की याद में तुरकुक मुक्ति दिवस के रूप में घोषित किया जाना चाहिए, जिन्होंने उस लड़ाई में अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी.”
हालांकि ‘उसी दिन’ एक मानवीय त्रासदी भी हो गई थी, क्योंकि तब इन गांवों के कई परिवार विभाजित हो गए थे.
पत्र लिखने वाले तीनों नेताओं ने भारत सरकार से पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ एक तंत्र विकसित करने के लिए कहा है, ताकि विभाजित परिवार श्योक नदी के तट पर किसी निर्दिष्ट स्थान पर कभी-कभार मिल सकें. वर्तमान में, स्थानीय लोगों को या तो अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए पाकिस्तान जाने के लिए दिल्ली या अमृतसर के रास्ते फ्लाइट लेनी होती है या ट्रेन पकड़नी पड़ती है.
उन्होंने त्यक्शी पंथांग गांव और सियान फार्नी (पीओके की तरफ) के बीच के क्षेत्र में मिलन बिंदु प्रस्तावित किया है. पत्र में कहा गया है कि विभाजित परिवारों की बैठकें सेना या सुरक्षा बलों की निगरानी में भी हो सकती हैं.