सलमा डेम पर हमलाः समझिए कितनी घिनौनी है तालिबान और पाक की यह रणनीति

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 25-07-2021
सलमा डेम
सलमा डेम

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली

दुनिया को इस भ्रम में रखा जा रहा है कि तालिबान और पाकिस्तान अलग-अलग चीजें हैं. किंतु राजनीतिक विश्लेषकों का हमेशा से मानना रहा है कि तालिबान और पाकिस्तान अलग-अलग इदारों के बावजूद मानव सभ्यता के ध्वंस के लिए एक बिंदु पर आकर मिल जाते हैं. तबाही के मोड़ पर तालिबान और पाकिस्तान में कोई फर्क नहीं रह जाता. अब खबर है कि तालिबान ने अफगानिस्तान के सलमा बांध पर हमला किया है.

पहले खबर की बात

पत्रकार और राजनीतिक विश्लेष हिजबुल्ला खान ने एक ट्वीट किया हैं, जिसमें कहा गया है कि तालिबान ने सलमा डेम पर हमला किया है और क्षतिग्रस्त कर दिया है. यह अफगानिस्तान कां सबसे बड़ा डेम है. यह अफगानिस्तान की तरक्की के लिए बहुत जरूरी 42 मेगावाट बिजली पैदा करता है और इस डेम के पानी से 75 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है. इसे 290 मिलियन डॉलर की लागत से बनाया गया था और यह पिछले 20 वर्षों में अफगान सरकार की सबसे बड़ी परियोजना है.

इस तरह, तालिबन ने एक बार फिर से अफगानिस्तान के बुनियादी ढांचे की तबाही शुरू कर दी है, जैसा कि उसने 1990 के दशक में अपने शासन के दौरान किया था.

तालिबान एक सप्ताह पहले इस बांध पर मोर्टार दाग चुका है.

तालिबान कौन है

तालिबान कौन है, जो अफगानिस्तान पर हुकूमत करना चाहता है और शरीयत के मुताबिक राज करना चाहता है.

तालिबान अफगानिस्तान पर हुकूमत करने के अपने मंसूबे के लिए वह पिछली सदी में लाखों लोगों का बेरहमी से कत्ल कर चुका है. और अब फिर से लाखों लोगों का कत्ल कर चुका है. उसके बाद भी उसके खून की प्यास बुझी नहीं है. उसकी कत्लो-गारद और खून खेल जारी है.

सलमा डेम पर हमले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या तालिबान वाकई हुकूमत के लिए जायजा रुतबा या इख्तयार रखता है और क्या शरीयत इसकी इजाजत देती है.

अगर तालिबान हुकूमत के लायक होता, तो हरगिज सलमा डेम पर हमला न करता.

सलमा डेम अफगान नागरिकों की जीवन रेखा है. पठारी भू-भाग में बसे अफगानिस्तान में जल-संसाधन पहले ही बहुत कम है.

अफगान जन-जीवन में पानी की अहमियत सोने से भी ज्यादा है.

ऐसे में तालिबान सलमा डेम को नष्ट करके क्या सीधे-सीधे अफगानियों को प्यास से तड़पता हुआ नहीं मारना चाहता है?

तालिबान कितने पानी में

पिछली सदी की तरह तालिबान के लिए इस बार अफगानिस्तान पर हुकूमत करना उतना आसान नहीं रह गया है.

तालिबान का दावा है कि उसने एक-तिहाई जिले कब्जा लिए हैं.

इसके उलट अमेरिका का मानना है कि तालिबान अभी सिर्फ आधे जिलों तक पहुंच पाया है.

और अभी अफगान सुरक्षा बलों से उसकी क्लोज फाइट पूरी तरह शुरू नहीं हुई है. अफगान सुरक्षा बल अभी शक्ति का संचयन और मूल्यांकन रहे हैं.

अफगान बलों से तालिबान का भीषण मुकाबला अभी बाकी है. तब तालिबान के हौसले पस्त होने की पूरी उम्मीद नजर आ रही है.

तालिबान के कथित 70 हजार लड़ाकों के दांत खट्टे करने के लिए अफगानिस्तान के तीन लाख फौजी बहुत-बहुत काफी हैं.

दोयम अमेरिकी और मित्र देशों के फौजी ही वापस गए हैं. उनकी रणनीति वापस नहीं हुई है. अमेरिकी के तालिबान पर ताजा हवाई हमले इसकी बानगी हैं.

साफ-साफ दिख रहा है कि अमेरिकी हवाई हमले तालिबान का पीछा नहीं छोड़ने वाले.

इसके अलावा अभी तालिबानी रूस गए थे. बहुत अच्छी-अच्छी बातें की, लेकिन रूस ने उनकी चिकनी-चुपड़ी बातों को गौर से सुना जरूर, लेकिन उसने अगला कदम यह उठाया कि अफगानिस्तान से लगते ताजकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान में फौजी जवान और अमला तैनात करके अपनी सामरिक स्थिति मजबूत करना शुरू कर दी है.

रूस का यह कदम तालिबान की शहद पगी बातों में आए बिना अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए है, जिससे साबित होता है कि रूस को तालिबान की बातों पर रत्ती भर भी यकीन नहीं है.

एक बात और हुई है कि ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, रूस, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान आदि दर्जन भर यूरेशियान देशों ने साफ संकेत दिया है कि वे तालिबान सरकार के हक में नहीं है.

शिनझिंयाग में उइगर मुस्लिमों का विद्रोह भड़ने के डर से चीन का भी दम फूला हुआ है.

ईरान के लिए तालिबान की रोशनी में इधर कुआं और उधर खाई है.

कल्पना करो कि ऐसे में किसी तरह तालिबान हुकूमत पर काबिज हो भी गया और उसे सचमुच अफगानिस्तान की मिट्टी, संस्कृति और लोगों से लेशमात्र भी हमदर्दी है, तो वह सलमा डेम जैसी आधारभूत संरचनाओं का दुश्मन क्यों बना हुआ है, जो अफगानिस्तान की जीवन रेखा है.

तालिबान कह रहा है कि अब पहले जैसा नहीं रहा और अब बदल गया है. पहले यानि 1990 के दौर में उसने अल कायदा को खुराक देकर तंदुरुस्त किया. अब वह ऐसा नहीं करेगा.

तालिबान का बयान कि अन्य देशों के विरुद्ध आतंक के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगा.

यह बयान वह तंजीम दे रही है, जो खुद आतंक में आकंठ डूबा हुई है.

उसकी कथनी और करनी में भी स्पष्ट अंतर दिखाई पड़ रहा है. 90 के दशक में भी उसने अफगानिस्तान की आधारभूत संरचनाओं को तोड़कर कंगाल बनाया और बामियान में बौद्ध प्रतिमाएं नष्ट करके संस्कृति के साझा मूल्यों को नष्ट किया और अब सलमा डेम पर हमला बताता है कि उसके जुल्म और नापाक इरादों में अब भी कोई बदलाव नहीं आया है.

पाकिस्तान कनेक्शन

तालिबान के खूनी खेल में पाकिस्तान भी पूरी तरह मुब्तिला है.

इसकी पुष्टि कोई और नहीं, बल्कि अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी कर चुके हैं.

वे अफगानिस्तान के खैरख्वाह मुल्कों के वैश्विक मंच से विश्व बिरादरी के सामने और पाक पीएम इमरान खान की मौजूदगी में बेलाग बयान दे चुके हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान और आतंक के लिए पाकिस्तान सीधे तौर पर जिम्मेदार है, क्योंकि पाकिस्तान ने 10 हजार लड़ाके तालिबान के समर्थन में अफगानिस्तान भेजे हैं.

बाद में सूत्रों ने खबर दी कि पाकिस्तान ने अपने 10 हजार लड़ाकों को यह हिदायत भी दी है कि वे फकत तालिबान की ओर से न लड़े, वरन भारत ने अफगानिस्तान में जो भी बुनियादी विकास कार्य किए हैं, उन संरचनाओं को भी नष्ट करें.

नीचता की हद

पाकिस्तान कितनी नीचता तक गिर सकता है कि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने हाल ही में बयान दिया था कि अब अफगानिस्तान में भारत का विकास कार्यों को कोई नहीं बचा सकता.

कुरैशी का यह बयान इस मूड और मोड में था कि जैसे, अफगानिस्तान का मुस्तकबिल सुनहरा करने के लिए भारत ने वहां दोस्ती की खातिर जो बुनियादी सहूलियतें खड़ी की हैं, उनके टूटने से पाकिस्तान बेहद खुश होगा और कुरैशी अपने शब्दों के ऐसे भावों को छुपा पाने में भी नाकाम रहे हैं.

भारत की चिंता

सलमा डेम पर प्रहार से भारत की चिंताए सही सिद्ध होती दिख रही हैं.

भारत की चिंता है कि तालिबान और पाकिस्तान मिलकर भारत द्वारा विकसित की गई बुनियादी सहूलियतों को केवल अपनी नफरत और एजेंडे के कारण नष्ट करके अफगान जनता को जिंदा दोजख में झोंकना चाहते हैं.

क्या है सलमा डेम

सलमा डेम भारत और अफगानिस्तान के निश्छल प्रेम और मैत्री का प्रतीक है.

पश्चिमी अफगानिस्तान के हेरात प्रांत के चिस्त-ए-शरीफ में स्थित सलमा डेम का जून, 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने संयुक्त रूप से लोकार्पण किया था.

सलमा डेम चेश्त जिले के पास हरि रोड नदी पर बना बना हुआ है, जो 107 मीटर ऊंचा और 550 मीटर लंबा है.

बांध में 24 मीटर चौड़ा वाल्व और तीन जलाशय हैं, प्रत्येक 10 मीटर लंबा और 8 मीटर चौड़ा है. इसका जल भंडारण बेसिन लगभग 22 किमी लंबा और 3 किमी चौड़ा है.

सलमा डेम एक जलाशय ही नहीं है, बल्कि वह हैरात सूबे के चेश्त और कहसन सहित आठ जिलों का जीवन और आजीविका भी है.