कमाल खानः गंगा जमुनी तहजीब का एक पत्रकार चला गया

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 14-01-2022
नहीं रहे कमाल खान
नहीं रहे कमाल खान

 

विमल कुमार

लोकप्रिय टीवी पत्रकार कमाल खान का शुक्रवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन होने की जैसे ही खबर मिली,दिल को बहुत गहरा धक्का लगा. कुछ उसी तरह जब विनोद दुआ नहीं रहे. दोनों की पत्रकारिता का शुरू से गवाह रहा हूँ, विनोद जी बड़े थे लेकिन कमाल तो मेरी ही उम्र के थे लेकिन जिस पत्रकार से कभी मुलाकात नहीं हुई न बात हुई हो आखिर वह कैसे मेरा अज़ीज़ हो गया? कैसे वह दिल के करीब हो गया? सोशल मीडिया पर जिस तरह उनको श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा है उसे देखते हुए कहा जा सकता है केवल मेरा ही नहीं बल्कि सबका उनसे एक अजीज रिश्ता था.

आखिर उनमें क्या खूबी थी कि लोग उनको बेपनाह चाहते थे?

दरअसल वह गंगा-जमुनी तहजीब के पत्रकार थे. टीवी की दुनिया में उनके जैसे पत्रकार बहुत कम हैं. मथुरा के एक मुस्लिम ठेलेवाले ने जब कृष्ण के नाम का बोर्ड लगाया तो लफंगों ने उसका बोर्ड उजाड़ दिया. इस पर कमाल खान की रिपोर्टिंग लाजवाब थी. उन्होंने रसखान से लेकर नज़ीर अकबराबादी, हसरत मोहानी, हफ़ीज़ जालंधरी, कैफ़ी आज़मी, निदा फ़ाज़ली के कलामों का जिक्र किया जिसमें कृष्ण के प्रति गहरा प्रेम और प्यार तथा सम्मान व्यक्त किया गया. उन्होंने गीता के श्लोकों का भावार्थ बताकर दर्शकों को बताया कि लफंगों की यह नीच हरकत किस तरह हिन्दू धर्म के विरुद्ध है.

एक बार एनडीटीवी ने ‘कमाल के राम’शीर्षक से एक रिपोर्ट दिखाई थी. कमाल खान ने मर्यादापुरुषोत्तम राम को जिस रूप में पेश किया, वह देखने और सुनने लायक था. उनका कहना था, “राम केवल हिंदुओं के नहीं उनके भी हैं.”उनकी रिपोर्ट हिन्दू ही नहीं, बल्कि कट्टरपंथी मुस्लिमों पर भी चोट करती थी.

इस तरह की रिपोर्टिंग की उम्मीद आज किसी टीवी पत्रकार से नहीं की जा सकती. गुरुवार की रात जब वह अपने चैनल पर कांग्रेस द्वारा 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने पर चर्चा कर रहे थे तो उन्होंने एक सुंदर वाकए का जिक्र किया. आमतौर पर यह देखा गया है कि प्रदर्शनकारी किसी नेता को कायर निकम्मा ठहराते हुए चूड़ियां पेश करते हैं लेकिन कमाल ने इस घटना की एक नई व्याख्या की और कहा कि यह स्त्रीविरोधी घटना है. चूड़ी को कायरता निकम्मेपन का प्रतीक नहीं बनाया जा सकता और कमाल ने इसके लिए पितृसत्ता को आड़े हाथ लिया और इसकी जड़ में विवाह और पैतृक संपत्ति की अवधारणा को दोषी ठहराया.

कमाल छोटी से छोटीऔर सामान्य घटना को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखते थे और उसके अनुसार उसकी व्याख्या करते थे. दरअसल वह अपने नाम के अनुरूप कमाल के पत्रकार थे. बेहद संजीदा और समझदार. वे अपनी रिपोर्टिंग मे कभी नाटकीय और लाउड नहीं हुए जबकि आज अधिकतर पत्रकार लाउड हैं. चीखते-चिल्लाते अधिक हैं.

लेकिन कमाल अलग थे सबसे. उनकी भाषा भी कमाल की थी. हिंदी-उर्दू के मेल से वे एक हिंदुस्तानी जुबान में अपनी बात कहते थे. वे पत्रकारिता को बेहद जिम्मेदार काम मानते थे और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी समझते थे. उनमें विनम्रता भी थी और गहरी मानवीयता भी. उनमें अहंकार और आत्मप्रदर्शन नहीं था बल्कि उनकी आवाज़ में एक करुणा थी. लगता है उसमें एक पीड़ा छिपी है एक बेचैनी.

बेशक, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने उनके आकस्मिक निधन पर दुख व्यक्त किया है. लेकिन वह किसी पार्टी के पत्रकार नहीं थे. कमाल जनता के पक्षकार थे.