अर्जुमंद आरा को उर्दू अनुवाद के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड

Story by  ज़ाहिद ख़ान | Published by  [email protected] | Date 25-06-2022
अर्जुमंद आरा को उर्दू अनुवाद के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड
अर्जुमंद आरा को उर्दू अनुवाद के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड

 

ज़ाहिद ख़ान

साहित्य अकादेमी ने अनुवाद पुरस्कार 2021 का ऐलान कर दिया है. राजधानी दिल्ली के रवींद्र भवन में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष डॉ चंद्रशेखर कंबार की अध्यक्षता में कार्यकारी मंडल की बैठक में इसके लिए 22 पुस्तकों को अनुमोदित किया गया. जिसमें मशहूर-ए-ज़माना मुसन्निफ़ अरुंधति रॉय के अंग्रेजी नॉवल 'द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस' के शानदार उर्दू अनुवाद 'बेपनाह शादमानी की मुम्लिकत' के लिए तख़्लीककार—तंकीद निगार-तर्जुमा निगार अर्जुमंद आरा को उर्दू ज़बान के लिए 'साहित्य अकादमी अवार्ड 2021' पुरस्कार देने का ऐलान किया है.

अनुवाद पुरस्कार के लिए पुस्तकों का चयन समितियों की अनुशंसा के आधार पर किया गया. संबद्ध भाषाओं में पुरस्कार 1 जनवरी 2015 से 31 दिसंबर 2019 के मध्य प्रकाशित किताबों पर दिए गए हैं. अवार्ड के तहत 50 हजार रुपए की नक़द रकम और एक तांबे का मेडल दिया जाएगा.

गौरतलब है कि 'द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस', अरुंधति रॉय का दूसरा उपन्यास है. इस नॉवल का अब तक दुनिया भर की 49 ज़बानों में अनुवाद हो चुका है. राजकमल प्रकाशन से इस उपन्यास का हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हुआ है.

उपन्यास 'बेपनाह शादमानी की मुम्लिकत', हमें कई सालों की यात्रा पर ले जाता है. यह एक ऐसी कहानी है, जो वर्षों पुरानी दिल्ली की तंग बस्तियों से खुलती हुई फलते-फूलते नए महानगर और उससे दूर कश्मीर की वादियों और मध्य भारत के जंगलों तक जा पहुँचती है, जहां युद्ध ही शान्ति है और शान्ति ही युद्ध है., और जहां बीच-बीच में हालात सामान्य होने का ऐलान होता रहता है. एक लिहाज से कहें तो 'बेपनाह शादमानी की मुम्लिकत' एक साथ दुखती हुई प्रेम-कथा और असंदिग्ध प्रतिरोध की अभिव्यक्ति है.

उर्दू तनक़ीद और तर्जुमे दोनों शोबे में सरगर्म अर्जुमंद आरा, फ़िलवक्त दिल्ली यूनिवर्सिटी के उर्दू महकमे में प्रोफ़ेसर हैं. उनकी आला तालीम जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से हुई है. छात्र-जीवन से ही प्रगतिशील लेखक संघ से वाबस्ता रहीं हैं. तरक़्क़ीपसंद तहरीक से जुड़े तमाम बड़े अफ़साना निगार और शायरों के लेखन पर उन्होंने बेशुमार आलोचनात्मक लेखन किया है.

उन्होंने अरुंधति रॉय के अलावा धर्मवीर भारती के उपन्यास 'सूरज का सातवाँ घोड़ा', विभूति नारायण राय—'हाशिमपुरा : 22 मई', मुशीरुल हसन—'द नेहरुज़: पर्सनल हिस्ट्रीज़', गार्गी चक्रवर्ती—‘पी सी जोशी : एक जीवनी, राल्फ़ रसल की आत्मकथा 'फ़ाइंडिंग्स,कीपिंग्स और लोसेज़, गैन्ज़' का 'जुइंदा याबिन्दा' और 'कुछ खोया, कुछ पाया' (2013) शीर्षकों से अनुवाद. अतीक़ रहीमी (अफ़ग़ानिस्तान मूल के फ़्रांसीसी उपन्यासकार), हसन ब्लासिम (इराक़ी कहानीकार), तय्यब सालिह (सूडानी उपन्यासकार), ताहर बिन जल्लून (मोरक्को मूल के फ़्रांसीसी उपन्यासकार) वगैरह के अनेक उपन्यास और जीवनियों का भी उन्होंने उर्दू में तर्जुमा किया है.

अर्जुमंद आरा ने हाल ही में पाकिस्तान की मक़बूल शायरा सारा शगुफ़्ता की नज़्मों के संग्रह– ‘आंखें’ और ‘नींद का रंग’ का हिंदी लिप्यंतरण किया है. यही नहीं शायर—नग़मा निगार साहिर लुधियानवी पर केन्द्रित 'नया पथ' के चर्चित विशेषांक का भी उन्होंने ही संपादन किया था. यह बतलाना लाज़िमी होगा कि अनुवाद के लिए उर्दू अकादमी, दिल्ली उन्हें साल 2013 में सम्मानित कर चुकी है.