साहित्यः रचना यदुवंशी की कविता 'वहीं से उजाले हैं'

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

 

साहित्य/ कविता 

रचना यदुवंशी/ वहीं से उजाले हैं

 

नादां हो गर समझते हो कि क़ाबिल हो

ये वक़्त की मुरव्वत है जो तुम्हें सम्हाले है

 

तुम समझते हो इसको ये हुनर है तुम्हारा

ये तो गर्दिशों की मिट्टी ने साँचे में ढाले हैं 

 

हवाओं की ठंडक में कहीं बह न जाना

इनके आग़ोश में कुछ बादल भी काले हैं

 

तुमने महल भी बनाऐ फ़ानूस भी लगाऐ

झरोखे देख लेना वहाँ मकड़ी के जाले हैं

 

सुबह उठके दौड़ना रात थक के सो जाना

जीवन नहीं है ये बस राज रोग कुछ पालेहैं

 

अगर कुन्द हो जाएँ तो चौंकना नहीं तुम

बड़ी शान से तुमने ये तरकश जो ढाले हैं

 

वो सब भी कहां कम हुनरमंद हैं किसी से

बस इतना समझ लो कि नसीबों पे ताले हैं

 

न मंदिर की घंटी न मस्जिद की अजानों में

नज़र करमों पे रखना वहीं से उजाले हैं