मैं पुरुषों के खिलाफ नहीं, पितृसत्ता के खिलाफ लिखती हूं- तसनीम खान

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 20-11-2022
तसनीम खान और इरा टाक (फोटो सौजन्यः तसनीम खान का फेसबुक)
तसनीम खान और इरा टाक (फोटो सौजन्यः तसनीम खान का फेसबुक)

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

हिंदी की युवा पीढ़ी में अपनी अलग पहचान रखने वाली लेखिका तसनीम खान शनिवार को दिल्ली में एक मीडिया हाउस के साहित्य के आयोजन में शिरकत करने पहुंची थी. इस खास सत्र में हालांकि, चार लेखक शामिल थे लेकिन भगवंत अनमोल, इरा टाक और तनसीम खान युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.

तसनीम खान ने कहा कि आज के युवा भाषा की प्रयोगधर्मिता को समझना चाहते हैं.

गौरतलब है कि तसनीम खान का उपन्यास 'ऐ मेरे रहनुमा' काफी चर्चित रहा है और इसको स्त्री विमर्श में युवा लेखन की मिसाल बताया जा रहा है.इस किताब के बारे में तसनीम खान ने कहा कि मेरी किताब पितृसत्ता को खिलाफ है, पुरुषों के खिलाफ नहीं.

उन्होंने कहा कि हमारा जीवन तभी चल सकता है कि जब हम एक दूसरे के सहयोगी बनें, न कि रहनुमा. आज भी समाज में ऐसी बहुत सारी महिलाएं हैं, जिनको अभी भी गैर-बराबरी का सामना करना पड़ता है, हालांकि काफी बदलाव आ चुका है, जो सुकून देने वाला है.

साहित्य आजतक में एक सत्र में शामिल होकर अपनी बात रखती हुई तसनीम खान ने कहा कि कैसा लेखन पसंद किया जाएगा, यह हम तय नहीं कर सकते. अगर हम एक वाक्य में कोई बात नहीं कह पाए तो सौ पंक्तियां लिखकर भी हम अपनी बात नहीं समझा सकते.

लेकिन उन्होंने इशारा किया कि श्रेष्ठ साहित्य कालजयी होता है और पुराने लेखकों को भी आजकल के युवा खोज-खोजकर पढ़ रहे हैं. शब्दों का सफर कभी खत्म नहीं होता.

लेखक रत्नेश्वर सिंह ने कहा कि वह युवाओं को ध्यान में रखकर लिखते हैं और उन्होंने अपने उपन्यास 'मीडिया लाइव' और 'जीत का जादू' तथा '32 हजार साल पहले' में विज्ञान के साथ लेखन में प्रयोग किए हैं.

अनछुआ ख्वाब, रिस्क-ए-इश्क लिखने वाली लेखिका, फिल्म मेकर इरा टाक ने कहा कि मोहब्बत और इश्क से खूबसूरत कुछ भी नहीं है. उन्होंने कहा कि लेखक का कोई जेंडर नहीं होता. अच्छे लेखन के लिए संवेदनशीलता, अनुभव और समझ होनी चाहिए.