साहित्यः नीति सक्सेना की कहानी भटकन

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 17-09-2022
साहित्यः नीति सक्सेना की कहानी भटकन
साहित्यः नीति सक्सेना की कहानी भटकन

 

साहित्य/ लघुकथा

भटकन

लेखकः नीति सक्सेना

स्मिता के जीवन में आजकल कुछ ज़्यादा अच्छा नहीं चल रहा था. पिछले एक-दो महीनों से उथल-पुथल सी मची हुई थी उसके मन मस्तिष्क में. यूं तो आठ वर्ष से सुखी,संपन्न वैवाहिक गृहस्थ जीवन जी रही थी वो अपने पति अतुल के साथ. पांच वर्षीय प्यारा-सा बेटा पार्थ भी था जोकि अत्यंत कुशाग्र बुद्धि का सुंदर बालक था.

अतुल किसी अच्छी प्राइवेट कंपनी में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर की पोस्ट पर था और वह इस मुकाम पर इतनी कम उम्र में अपनी मेहनत और लगन के बल पर ही पहुंचा था. अतुल स्मिता और पार्थ को जी-जान से प्यार करता था.

दो महीने पहले अतुल की ही कंपनी में काम करने वाला उनका पारिवारिक मित्र और स्मिता का मुंह बोला राखी भाई सुबोध दोपहर में अचानक उनके घर आया था. अतुल उस समय कंपनी टूर पर चेन्नई गया हुआ था. सुबोध ने चाय पीते समय बातों-बातों में ही स्मिता को आगाह कर दिया था कि अतुल का झुकाव आजकल उसकी नई सेक्रेट्री शीना के प्रति ज़्यादा ही होता जा रहा है. ऑफिस के लोग भी उन दोनों के बारे में कानाफूसी करने लगे हैं. यहां तक कि शीना को फ्लैट दिलवाने के लिए डाउन पेमेंट का काफी हिस्सा अतुल ने ही दिया है.

शीना आधुनिकता के रंग में रंगी हुई एक सुंदर युवती थी,पर साधारण परिवार से थी. बड़ी कोशिशों के बाद उसको यह नौकरी मिल पाई थी.

यह सब सुनकर स्मिता स्तब्ध रह गई थी. उसको बिलकुल विश्वास नहीं हुआ था सुबोध की बातों का और नाराज़ होकर उसने सुबोध की डांट भी लगा दी थी कि ज़रूर उसको कोई गलतफहमी हुई है. अतुल उसको बहुत प्यार करता है,वह पूरी तरह परिवार के प्रति समर्पित है और उससे कभी विश्वासघात नहीं कर सकता.

पर सुबोध उसके दिल में एक संदेह का बीज तो अंकुरित कर ही गया था. अब थोड़ा ध्यान से सोचा तो स्मिता को लगा कि पिछले कुछ समय से अतुल उसपर कुछ ज़्यादा ही प्यार लुटा रहा था. ज़्यादा ही खुश लग रहा था पिछले  दो महीनों से. उसके आगे पीछे घूमकर मुंह से सीटी बजा कर रोमांटिक गानों की धुन निकालता रहता. आए दिन उसको छोटा-मोटा उपहार देता रहता. ऐसा उसने कभी पहले नहीं किया था.

स्मिता कभी कभी हैरान भी हो जाती उसके इस अप्रत्याशित बदले हुए व्यवहार से. पर उसको तनिक भी आभास नहीं था कि ऐसा करके वह अपने मन के अपराध बोध को कम करना चाहता है और ऐसा इसलिए भी करता है ताकि उसको उसके अफेयर के बारे में कुछ पता न चले.

फिर उसने जब अलमारी से अतुल की पासबुक निकालकर उसके बैंक अकाउंट से रुपयों के ट्रांजेक्शन का निरीक्षण किया तो पाया कि पिछले महीने ही उसने करीब 5 लाख रुपए निकाले हैं अपने अकाउंट से.

और उस दिन शनिवार को उसका शक हकीकत में तब बदल गया जब पार्थ के स्कूल से पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग से लौटते समय उसने बीकानेर रेस्टोरेंट में अतुल को शीना के साथ बैठे हुए देख लिया. दोनों खूब हंस-हंस कर बातें कर रहे थे और किसी प्रेमी जोड़े की तरह वहां बैठे हुए थे. पार्थ ने पेस्ट्री और कोल्ड ड्रिंक्स लेने की ज़िद की थी इसलिए उसने ड्राइवर को गाड़ी इस रेस्टोरेंट के बाहर रोकने को बोल दिया था.

गनीमत थी कि पार्थ कार में ही बैठा था. अतुल ने ऑफिस में काम ज़्यादा होने का बहाना बना के पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग में उसके साथ जाने से मना कर दिया था. बिना पेस्ट्री खरीदे वह जल्दी से वहां से बाहर निकल गई थी.

सोमवार को स्मिता ने मन ही मन एक निर्णय लिया. सुबोध से उसने शीना का फोन नंबर और पता लिया. शनिवार को अतुल की छुट्टी रहती थी और उस दिन स्मिता का जन्मदिन भी था. अतुल से उसने कह दिया कि इस बार वह अपने जन्मदिन पर अपने दोस्तों को लंच पर ही इनवाइट करेगी,दिन में ही. रात में सिर्फ वह,अतुल और पार्थ किसी अच्छे होटल में जाकर डिनर करेंगे,किसी फ्रेंड या रिलेटिव को साथ नहीं ले जायेंगे.

शीना को उसने व्यक्तिगत रूप से फोन करके आमंत्रित कर लिया था. शुरू में तो शीना थोड़ी हिचकिचाई थी पर बाद में राज़ी हो गई थी. स्मिता ने फोन पर उससे झूठ कह दिया था कि अतुल के ऑफिस के कुछ खास लोगों को बुला कर वह अतुल को सरप्राइज़ देना चाहती है अतः वह अतुल को कुछ न बताए. अतुल को भी उसने बोल दिया था कि आज उसके लिए एक सरप्राइज है.

दोपहर 12 बजे तक शीना,सुबोध, अतुल के ऑफिस के दो सहयोगी और स्मिता के घर के पास रहने वाली उसकी दो फ्रेंड्स सब उसके घर पहुंच गए. पार्थ स्कूल गया हुआ था.

शीना को अपने घर आया देख अतुल हैरान रह गया और थोड़ा सकपका भी गया. पर सबके सामने स्मिता से वह कुछ पूछ नहीं सकता था. सुबोध को भी हैरानी हुई. केक कटिंग के बाद लंच करके सब अपने घर चले गए पर शीना को ज़िद करके स्मिता ने वहीं रोक लिया यह कह कर कि अतुल कार से उसको घर तक छोड़ आएगा.

तीनों के लिए कॉफी बना कर एक एक मग उसने शीना और अतुल के हाथों में थमा दिया और वे वहीं ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ गए.

"देखो अतुल और शीना, तुम दोनों के बीच जो चल रहा है,उसके बारे में मैं सब जानती हूं. पर मैं उन औरतों में से नहीं जो चीखें-चिल्लाएं,दुनिया भर को गा गा के सब बता दें. अतुल के विश्वासघात से मैं आहत तो बहुत हुई, छुप-छुपकर रोई भी बहुत, पर बहुत सोच-समझ के मैंने एक निर्णय लिया है. मैं अपनी इच्छा से अतुल तुमको तलाक़ देना चाहती हूं और चाहती हूं कि तुम दोनों शादी कर लो. जब मन ही न मिले तो साथ रहने का,संबंध निभाने का बोझ क्यों उठाएं जबरदस्ती. बेहतर है हम दोनों संबंध विच्छेद कर लें.

अपने मामा जी के वकील लड़के कौशल भैया से मैने कागज़ भी तैयार करवा लिए हैं. मैंने उसपर हस्ताक्षर कर दिए हैं,बस तुम्हारे हस्ताक्षर होने बाकी हैं. पढ़ी लिखी हूं मैं. पहले टीचिंग करती थी. अब भी किसी अच्छे स्कूल में जॉब मिल ही जायेगी और मैं अपना और पार्थ का भरण-पोषण अच्छी तरह कर लूंगी." कहते हुए स्मिता ने सेंट्रल टेबल की दराज से कुछ कागज़ निकाल के अतुल के आगे कर दिए.

अतुल और शीना इस परिस्थिति के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे. अचंभित रह गए वे. शीना तो ऊपर से नीचे तक पसीने से भीग गई.

"यह तुम क्या कह रही हो स्मिता,मैं तुमको और पार्थ को छोड़ने की सपने में भी नहीं सोच सकता. तुम लोग मेरी ज़िंदगी हो. हां,शीना के मोहपाश में मैं फंस अवश्य गया था पर वो सिर्फ मौज मस्ती के लिए था. सिर्फ एक टाइमपास. मैं तो कभी भी इससे शादी करने की सोच भी नहीं सकता. यह दो टके की लड़की. पैसों के लिए यह मेरे आगे क्या,किसी के आगे भी बिछ सकती है." अतुल बोला.

"क्या? मैं दो टके की लड़की? तो मैं तुम्हारा टाइमपास थी अतुल? अच्छा हुआ स्मिता मैम ने मेरी आंखें खोल दीं. अतुल सर, मैं सोमवार को अपना रेजिग्नेशन आपको भेज दूंगी. इतनी समझदार और सुंदर बीवी होते हुए आप मेरे चक्कर में कैसे पड़ गए?आपसे नफरत हो रही है अब मुझे. मुझे माफ कर दीजिए मैम,मुझसे गलती हो गई. मुझे समझ आ गया कि कभी एक शादीशुदा औरत का घर नहीं बिगाड़ना चाहिए. मैं गरीब ज़रूर हूं पर इतनी गिरी हुई भी नहीं. मैं नादान थी. मुझे क्षमा कर दीजिए," कहते हुए शीना स्मिता के पैरों में झुकी और उसके चरण स्पर्श कर लिए और अपना पर्स उठा के तुरंत वहां से बाहर निकल गई.

स्मिता ने मेज़ पर पड़ा पेन अतुल की तरफ बढ़ाया,साइन करने के लिए.

अचानक अतुल ने मेज़ पे पड़े सारे कागज़ उठाए और फाड़ के टुकड़े टुकड़े कर दिए और फूट फूट कर रोने लगा.

"मैं जानता हूं तुम मुझे कभी क्षमा नहीं करोगी स्मिता और शायद मैं इस लायक हूं भी नहीं,पर यह भी उतना ही सच है कि मैं तुम्हारे और पार्थ के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता. यह बात मेरा भगवान ही जानता है. मैं भटक गया था पर रास्ते पर लाने वाली भी तो तुम ही हो,मेरी अर्धांगिनी,मेरी जीवनसाथी. अगर तुम मुझको छोड़ के जाना चाहती हो तो रोकने का अधिकार तो नहीं मुझे पर मैं जानता हूं कि तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगा मैं," कहकर अतुल पुनः रोने लगा.

स्मिता ने अतुल की आंखों से गिरते हुए आंसुओं को देखा. ये वाकई पश्चाताप के आंसू थे.

"अपने मन मंदिर में जो तुम्हारी मूरत स्थापित कर रखी थी अतुल मैंने,वह अब खंडित हो चुकी है अतुल,उसको वहां फिर से स्थापित करने में वक्त लगेगा अतुल,तुमको एक मौका  और दे रही हूं. उठो,मुंह धो के आओ,पार्थ भी स्कूल से आता ही होगा. उसको कुछ पता नहीं चलना चाहिए," कहके स्मिता कमरे से बाहर निकल गई और बाहर आकर लॉन में तार पर पड़े कपड़े उतारने लगी.